कविता
तेरी याद Your memory
कभी तुझसे, कभी खुदा से झगड़ते रहे हम।बिना मतलब यूँ ही ज़िन्दगी से उलझते रहे हम।
तुझमे ख्वाबो का जहां तलासते रहे हम बेवजह।
खामखां बस तकदीर से टकराते रहें हम।।
हर शाम मयखाने में जाम लड़ते रहे है हम।
फुर्सत के पल पैमानों के संग बिताते रहे हम।
कशमश और उलझनों में गुज़रती है हर शाम।
यूँ ही अंधेरो में भी उजालों से लड़ते हैं हम।।
एक मुददत सी हो गयी है चांद को देखे हुए।
अब तो सितारों को गिनकर रात कटती हैं।
हर शाम छत पर तेरे ख्यालों में डूब जाते हैं हम।
जाने क्या वज़ह है कि बिना सांसों के भी ज़िन्दा हैं हम।।
पुरानी यादों को याद कर आंखें भर आतीं हैं।
तुम्हारे दुपट्टे की वो छाओं बहुत याद आती है।
घंटो और मिलों का सफर जैसा थम सा गया हो।
जिंदा हैं मगर ज़िन्दा लाश बन गये हैं हम।।
शिकवा शिकायत खुद से मुझे बहुत है।
तुझसे भी है शिकायत मगर तू कहीं भी नही है।
चल कभी फुर्सत हो तो चले आना ख्वाबों में मेरे।
हकीकत में तो तुझसे भागते ही रहे हम।।
दिनाँक 12 जनवरी 2021 समय 7.00 शाम
रचना(लेखक)
सागर(गोरखपुरी)
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