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गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

दिसंबर 10, 2020

जी.बी रोड अतिंम भाग हिंदी कहानी | G.B पर कहानी | G.B रोड एक प्रेम कहानी | LOVE STORY |

                                     कहानी

                       जी.बी रोड G.B ROAD

                                     
(अभी तक इस कहानी में आपने पढ़ा कि किस तरफ पूरे मुल्क में मजहबी दंगे हो रहे थे,और कैसे आरती नज़ीर एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं,एक रात एक रिपोर्टर नज़ीर को G.B रोड ले जाता है)
                                   (अब आगे)

                                 (अंतिम भाग)

तभी रिपोर्टर रिक्शे से कूदकर भागता हुआ सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने लगता है और नज़ीर गली नम्बर 64 से थोड़ी दूर हटकर रिक्शे को किनारे लगाने लगता है कि कुछ लोग उसके सिर पर जोर से लोहे की सरिया मारते है और उसे बेहोस हालत में खिंचते हुए रोड पर ले जातें है अभी एक महिला ताराबाई(50) छत से आवाज लगती है कौन है वहां छोड़ो उसे कहते हुए छत से भागती हुई नज़ीर के पास पहुंचती है,नज़ीर बेहोस पड़ा था उसके सिर से खून बहुत बह रहा था ताराबाई किसी तरह नज़ीर को अपने कमरे तक ले जाती है।
रिपोर्टर 15 मिनट बाद सीढ़ियों से उतरकर नज़ीर को ढूंढता है और फिर वो सीढियों से भागता हुए ऊपर चला जाता है,मुल्क में हर तरफ कर्फ्यु का आलम था चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था और उन सन्नाटे में मजहबी दरिंदे,नज़ीर जैसे तमाम लोगों को अपना शिकार बना रहे थे पर दिल्ली की हालत तो कुछ और थी जो दिखा उसे ठोक दिया,ऐसे माहौल में एक भी ऐसा दवाखाना नही था जो खुला हो,नज़ीर के सिर से खून लगातार बह रहा था ताराबाई ने अलमीरा से अपना पुराना दुपट्टा निकला और नज़ीर के चोट वाली जगह पर बांध दिया, 24 घंटे बाद जब नज़ीर को होश आता है तो एक छोटे से कमरे में अपने आपको पाता है नज़ीर घबरा सा जाता है नज़ीर उठकर दरवाजे की तरफ जाता है तभी दरवाजा अचानक से खुल जाता है ताराबाई नज़ीर को पकड़कर,तुम्हारी हालत अभी नाजुक है कहकर नज़ीर को बिस्तर पर बिठा देती है नज़ीर ताराबाई का हाथ पकड़र मैं यहां कैसे आया,पूछता है तभी ताराबाई कहती है कल रात तुम्हे दंगाइयों ने मारकर रोड पर फेंक दिया था मैंने तुम्हे डॉक्टर के पास ले जाने की बहुत कोशिश की लेकिन दिल्ली की हालत खराब होने के कारण,डॉक्टर ने तुम्हे देखने से इनकार कर दिया इस लिए मैं तुम्हे यहां अपने घर ले आई,इतना सुनते ही नज़ीर ताराबाई से लिपटकर रोने लगता है ताराबाई अपने आँखे के आँशु को छुपातें हुए,नज़ीर से कहती है तुम यही रुको मैं तुम्हारे लिए कुछ  खाने को लाती हूँ तराबाई जबतक कुछ खाने को लाती इतने ही देर में नज़ीर दरवाजा खोलकर बाहर निकलता है
वहाँ का नज़ारा देखकर नज़ीर घबरा जाता है और वो वहां से भागता हुआ सीढ़ियों दे नीचे उतर कर अपने रिक्शे को ढूंढने लगता है रिक्श उसे वहीं एक किनारे खड़ा मिलता है, नज़ीर अपने रिक्शे को लेकर तेज़ी से चलाता हुआ अपने घर चला जाता है उधर ताराबाई हाथों रोटियां लिये कमरे के अन्दर प्रवेश करती है,पर नज़ीर तो जा चुका था वो मायूस होकर वहीं कमरे में बैठ जाती है।
दो महीने बाद मुल्क की हालात में सुधार था अवागमन भी धीरे धीरे शुरू हो चुका था लेकिन नज़ीर की हालत आरती को लेकर कुछ ठीक नही थी,एक दिन नज़ीर सोनो की तैयारी कर ही रहा था कि तभी उसे किसी ने आवाज लगाई,नज़ीर दरवाजे को खोलकर बाहर निकलता है तो सामने रिपोर्टर खड़ा था नज़ीर कहता है अरे आप यहां कैसे,बहुत दिनों बाद,कहिये कैसे आना हुआ,उस रात के तुम्हरे पैसे रह गये गए थे वही देने आया हूँ रिपोर्टर जेब से पैसे निकालकर देने लगता है तभी नज़ीर अरे इसकी क्या ज़रूरत थी ये तुम्हरे मेहनत के पैसे है रखलो इसे रिपोर्टर कहता है,नज़ीर पैसे को रखते हुए रिपोर्टर से कहता है एक बात पूछ सकता हूँ आपसे,रिपोर्टर हां हां क्यूँ नही पूछो,आप उस रोज G.B रेडलाइट एरिया में मुझे क्यूँ ले लगये थे सिर्फ अपने शौक की खातिर मुझे मौत के मुंह में धकेल दिया,तुम मुझे गलत समझ रहे हो मै एक रिपोर्टर हूँ और सच कह रहा हूँ मैं वहाँ किसी की मददत करने गया था तुम्हे नीचे आके बहुत ढूंढा भी पर तुम वहां नही थे मुझे पता है तुम यकीन नही करोगे,अगर तुम्हारे पास समय हो तो मै तुम्हे वहां फिर ले जाना चाहता हूँ Please मना मत करना,जी ज़रूर चलूंगा मुझे भी वहां किसी से मिलना है जरा दो मिनट ठहरिये बस मैं अभी आया नज़ीर इतना कहकर कमरे के अंदर जाता हैं और हाथों में थैला लिए बाहर आके रिपोर्टर से कहता है अब चलिए सर नज़ीर अपना रिक्शा निकलता है और G.B रोड गली नम्बर 64 की तरफ चल देता है।
30 मिनट के बाद नज़ीर और रिपोर्टर G.B रोड पहुंचते हैं।
 नज़ीर रिक्शे को एक कोने में लगाकर तेज़ी से गली नम्बर 64 की तरफ जाता है तभी रिपोर्टर नज़ीर को कहता है उस तरफ नही इस तरफ चलना है पर मेरी माँ तो इधर रहती है नज़ीर कहता है,पर ये तो रेड लाइट एरिया है और तुम्हारी माँ यहाँ,तभी नज़ीर कहता है माँ सिर्फ माँ होती है चाहे वो रेड लाइट एरिया की हो या मेरे घर की,आप आइए तो मेरे साथ,रिपोर्टर नज़ीर के साथ चल देता हैं नज़ीर सीढ़ियों से चढ़कर दूसरी मंजिल पर पहुंचता है उस वक़्त तकरीबन रात के 11 बजके 15 मिनट हुए थे जब नज़ीर ने एक दरवाजे को खटखटाया था रिपोर्टर नज़ीर के पीछे ही खड़ा था थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है सामने ताराबाई खड़ी थी नज़ीर को देखकर उनकी आंखे भर आईं थी नज़ीर माँ  कहकर ताराबाई से लिपटकर रोने लगता है ताराबाई अपने आँचल से उसके आँशु पोछकर उसे अंदर ले जाती हैं रिपोर्टर सोच में पडजाता है उसे बड़ी हैरानी होती है कि नज़ीर एक मुस्लिम और ताराबाई(50) हिन्दू इतने बड़े रेड लाइट एरिया की वैश्या उसकी माँ,ये कैसे हो सकता है,अभी नज़ीर ने रिपोर्टर साहब कहकर आवाज लगाई,रिपोर्टर अंदर जाते ही नज़ीर उससे कहता है इन्होंने उस वक़्त मेरी जान बचाई थी जब आप मुझे यहां लेकर उस दिन आये थे।
मैं रोड पर बेहोश पड़ा था तब इन्होंने एक मां की तरफ मेरी सेवाकर मेरी जान बचा दी, इतना कहकर नज़ीर अपने थैले से एक खूबसूरत सी साड़ी निकलता है ताराबाई को जैसे ही देता है ताराबाई नज़ीर को सीने लगाकर रोने लगती है नज़ीर उनके हाथों को पकडकर आप परेशान मत हो अम्मी मै हमेशा यहां आता रहूंगा और हर मुश्किल में आपके साथ रहूंगा,इस वक़्त मुझे इजाज्जत दीजिए, कहकर नज़ीर रिपोर्टर के साथ चल देता है सीढ़ियों से उतरकर रिपोर्टर बगल वाली गली के सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर जाने लगता हैं पीछे से नज़ीर कहता है हम जा कहाँ रहे है,चारो तरफ देह व्यापार करने वाली लड़कियां ही लड़कियां दिख रही थी,तभी रिपोर्टर नज़ीर से कहता है तुम कोई सवाल ना करो बस मेरे साथ आओ,नज़ीर जी सर कहकर पीछे पीछे सीढ़ियाँ चढ़ने लगता हैं तीसरी मंजिल पर रिपोर्टर अचानक रुककर अपनी दाईं तरफ मुड़कर एक कमरे के अंदर जाता हैं उसके सामने से एक दस साल की लड़की भागते हुए रिपोर्टर से आकर लिपट जाती है रिपोर्टर नीछे झुककर उस लड़की से पूछता है दीदी कहाँ है लड़की हाथों से इशारा करके बताती है एक लड़की जिसकी उम्र तकरीबन 24 साल रही होगी वो खिड़की पर खड़ी थी।
नज़ीर ने दूर से ही  रिपोर्टर से कहा कौन है ये,उस रात मैं इसी की जान बचाने आया था रिपोर्टर कहता है,मजहबी दंगे में कुछ हैवानो ने इसके चेहरे को तेज़ाब से झुलाश दिया है अब इसकी ज़िन्दगी किसी लाश से कम नही है,नज़ीर हिम्मत करके उस लड़की के पास जाना चाहता था पर उसकी हिम्मत नही हुई,वो दौड़ता हुआ सीढ़ियों से नीचे उतर जाता है और अपने रिक्शे पर जाके बैठ जाता है कुछ देर बाद रिपोर्टर नीचे नज़ीर के पास आता है दोनों रिक्शे बैठ जाते है दो मिनट बाद नज़ीर को जाने क्या हो जाता है वो रिक्शे से उठकर उन्ही सीढियों से उस लड़की के कमरे तक जाता है लड़की खिड़की पर खड़ी थी नज़ीर वहीं दरवाजे से सट कर नीचे बैठ जाता हैं और उस लड़की को देखकर रोने लगता है उसे पता चल गया था कि वो लड़की आरती ही है नज़ीर का दिया हुआ कंगन उस लड़की ने हाथों में पहन रखा था नज़ीर रो ही रहा था कि तभी उस लड़की ने पीछे मुड़कर देखा,वो नज़ीर को देखकर जोर से चीखी और नज़ीर कहकर जोर जोर से रोने लगती है,आरती एक वैश्य की बेटी थी इसी लिए उसने कभी अपना पता ना तो नज़ीर को बताया और ना ही का कभी कॉलेज में सही पता लिखाया।
दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे इस लिए नज़ीर ने आरती से शादी कर ली।
(दो साल बाद नज़ीर और आरती अपने B TECH की पढ़ाई खत्म का करके एक ही कंपनी में बतौर इंजीनियर दोनो नौकरी करने लगते है उनकी एक बेटी है और वो दोनो  अपनी दुनियां में खुश हैं।)।।।।
                            कहानी समाप्त
(इस कहानी से हमे सीखा की मजहब की रंजिश हमेशा इंशान को तकलीफ देते है,हमने ताराबाई जैसे इंशान को भी देखा और प्यार किसी जात पात,ऊंच नीच,भेदभव,का मोहताज नही ये भी जाना।)
 
                  दिनाँक 4 दिसम्बर 2020 11.00 सुबह
                                            रचना(लेखक)
                                          सागर(गोरखपुरी)

       

शनिवार, 5 दिसंबर 2020

दिसंबर 05, 2020

G.B ROAD PART 2 HINDI KAHANI | गली नम्बर 64 कहानी | G.B Road par kahani | LOVE STORY ON G.B ROAD | व्यश्या पर कहानी

                                     कहानी

                    G.B ROAD जी . बी रोड

(अभी तक इस कहानी में आपने पढ़ा की किस तरह नज़ीर G.B Road पर अपने रिक्शे को मोड़ता है और कॉलेज में उसकी मुलाकात आरती से होती हैं मजहबी दंगे में कैसे दोनो बिछड़ जाते हैं और सरकार द्वारा एक कड़ा फैसला)

                                           भाग 2
                                        (अब आगे)

इस फैसले ने देश की हालत को और भी नाजुक बना दिया था चारो तरफ आवाम में कत्लेआम हो रहा था नज़ीर की हालत दिन बा दिन खराब हो रही थी वो हर रोज कालेज जा कर रोशन चाचा(गेटमैन) से पूछा करता था चाचा आरती आयी थी क्या ,कुछ पता चला उसका,एक दिन रोशन चाचा(गेटमैन) ने नज़ीर से कहा,आरती का पता तो मैं लेना भूल गया बेटा लेकिन उसे मैने दो रोज पहले लाइब्रेरी की तरफ जाते हुए देखा था,उस वक़्त मेरे जेहन में नही आया कि मैं उससे उसका पता मांग लूं और तुम्हारे बारे में बताऊं,इतना सुनते ही नज़ीर लाइब्रेरी की तरफ भागता है पर लाइब्रेरी में ताला लगा हुआ था।
नज़ीर बेवजह दरवाजे को थपथपाने लगता है तभी एक कोने से आवाज आती है,अरे कौन है भाई,आवाज सुनते ही नज़ीर पीछे की ओर घूमता हैं तो सामने लाइब्रेरियन खड़ा था वो नज़ीर से कहता है अरे नज़ीर क्यूँ दरवाजा तोड़ रहे हो क्या बात है और क्या हालत बना रखी है तुमने अपनी,नज़ीर घबराते हुए लाइब्रेरियन से पूछता है सर क्या मुझे आरती का पता मिल सकता है हां क्यूँ नही तुम अंदर तो आओ,लाइब्रेरियन अपने रजिस्टर में आरती का पता ढूंढने लगता है और इतेफाक से दो दिन पहले की एंट्री में आरती का पता नज़ीर को मिल जाता है नज़ीर अपने कांपते हुए हाथों से एक पन्ने पर आरती का पता लिखता है और Thanks Sir बोलकर चला जाता है।
नज़ीर कई दिनों तक आरती का पता लिए उसे ढूंढता रहा था,आखिर कर एक महीने बाद नज़ीर को आरती के घर का पता चल ही जाता है नज़ीर,आरती के घर के सामने  खड़ा था वो अपने जेब से एक कागज का टुकड़ा निकलता है जिस पर आरती के घर का पता लिखा हुआ था उसे देखकर नज़ीर घर के नेमप्लेट को देखता है पता वही था जो नज़ीर के पास था वो आगे बढ़कर दरवाज़े को खटखटाने लगता है दरवाजा थोड़ी से बाद खुलता है।
 दरवाजें पर एक (30) साल की लड़की नज़ीर से कहती हैं जी कहिये,नज़ीर घबराते हुए अपने हाथों में लिए हुए कागज के टुकड़े को उस लड़की को देते हुए बोलता है,ये पता यहीं का हैं,जी हां यहीं का है पर आपको किससे मिलना है,मैडम मुझे आरती से मिलना था दरवाजे पर खड़ी लड़की को बड़ी हैरानी होती है और वो नज़ीर से कहती है क्या मैं आपका शुभ नाम जान सकती हूं,मैं नज़ीर हूँ और आप कौन? मैं आरती हूँ ,नज़ीर कहता है पता तो ठीक है ना,जी बिल्कुल सही पता है पर मेरे सिवा यहां कोई और आरती नही रहती,नज़ीर उस लड़की से कागज का टुकड़ा लेता है और अपने रिक्शे को लेकर घर चला जाता है,नज़ीर की हालत अब बात से बत्तर होती जा रही थी दूसरी तरफ पूरे मुल्क में कर्फ्यू लग चुका था और दिल्ली की तो हालत ना पूछिये बड़ी नाजुक बनी हुई थी जो पैसे नज़ीर ने कॉलेज की फीस के लिए इकट्ठा कर रखा था वो भी अब खत्म हो चले थे लोगों का आवागमन बंद होने से नज़ीर को अब सवारी भी बड़ी मुश्किल से मिल रही थी।
15 जनवरी 1993 रात के 12 बजके 30 मिंट हुए थे तभी  किसी ने नज़ीर का दरवाजा खटखटाया,नज़ीर ने अंदर से आवाज लगाई कौन है भाई,बाहर से आवाज आई मैं सचिन गंगवार एक प्रेस रिपोर्टर हूँ अभी नज़ीर जल्दी से दरवाजा खोलता है,जी कहिये क्या मदद कर सकता हूँ मैं आपकी,क्या मुझे G.B ROAD तक छोड़ सकते हो,नज़ीर कहता है इस वक़्त और ऐसे माहौल में ,तभी रिपोर्टर, तुम उसकी चिंता मत करो मै हूँ तू बस ना मत करो,नही तो मैं किसी को इंसाफ नही दिला पाऊंगा,नज़ीर,फिर तो ज़रूर चलूंगा, वो कंबल ओढ़ता है और कमरे को ताला लगाकर नज़ीर रिपोर्टर को अपने रिक्शे पर बिठाकर G.B ROAD की तरफ चल देता हैं जैसे ही नज़ीर रिक्शे को गाली नम्बर 64 की तरफ मोड़ता हैं तभी रिपोर्टर.........

                               (भाग 2 समाप्त)

          (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

           दिनाँक 01 दिसम्बर 2020  समय 11.00 रात
                                                रचना(लेखक)
                                            सागर(गोरखपुरी)





सोमवार, 30 नवंबर 2020

नवंबर 30, 2020

HINDI KAHANI G.B ROAD PART 1 | कहानी गली नम्बर 64 पर कहानी | 1992 दंगे पर हिन्दी कहानी | Love story |

                                  कहानी

                      जी बी रोड G.B ROAD

तारीख     16 दिसम्बर 1992
दिन          बुधवार
स्थान       दिल्ली
मौसम      ठंड का
पात्र         1. नज़ीर(25)
               2. आरती(24)
               3. रोशन(55) गेटमैन
               4. तारा बाई(50)
      
रात के तकरीबन तीन बज रहे थे,चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, सन 1992 दिसम्बर का महीना था उस रात ठंड कुछ जादा ही पड़ रही थी कोहरा कुछ इतना था कि सिर्फ 50 मीटर तक ही दिखाई दे रहा था नज़ीर (25) B TECH फाइनल ईयर का स्टूडेंट था वो अपनी पढ़ाई की खातिर अपना शहर छोड़कर दिल्ली चला आया था नज़ीर हरियाणा के एक छोटे से गांव का रहने वाला था उसके घर मे अम्मी,अब्बा के इलावा उसकी एक छोटी बहन भी थी, घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उसे दिल्ली का रुख करना पड़ा, नज़ीर दिन में पढ़ाई और रात में रिक्शा चलाया करता था।
रात के 3 बजे थे जब नज़ीर ने अपने रिक्शा को अंडर पास के रास्ते से निकालकर G.B ROAD के गली नम्बर 64 की तरफ मोड़ा था  ये पहली बार था जब नज़ीर ने इस रोड पर अपने रिक्शे को घुमाया था उसने एक पुराना कंबल ओढ़ रखा था गले मे मफलर और सिर में टोपी पहन रखी थी, वो रिक्शे को चलाते हुए जा रहा था नज़ीर पहली सवारी को छोड़कर किसी दूसरी सवारी की तलाश में था गली में मुड़ते ही नजारा ही कुछ और था नज़ीर को पता ही नही चला कि उस गली में दिन है कि रात, वो नींद से जैसे जग सा गया हो, हर तरफ सिर्फ खूबसूरत लड़कियां ही दिखाई दे रहीं थी नज़ीर को कुछ पता नही था कि उसने अपने रिक्शे को कहां मोड़ दिया है नज़ीर को दिल्ली आये सिर्फ 2 महीने ही हुए थे और उसके साथ ये पहला वाक्या था। नज़ीर अपने रिक्शे को तेज़ी से चलाकर वहां से निकल जाता है वो थोड़ा घबरा  सा जाता था।
अगले दिन सुबह 11 बजे नज़ीर अपने कॉलेज पहुँचता है उस दिन वो थोड़ा लेट हो गया था नज़ीर ने जल्दी से अपनी साइकिल को पार्क किया और हाथों में बैग को लिए हुए तेज़ी से क्लास रूम की तरफ जाता है तभी पीछे से गेट मैन रोशन(55) आवाज देता है अरे नज़ीर आज कहाँ देर हो गयी, नज़ीर बिना पीछे मुड़े ही बोलता है वापस आके  बताता हूं रोशन चाचा, इतना कह कर नज़ीर क्लास रूम की तरफ चला जाता है,क्लास रूम के दरवाजे पर पहुचकर नज़ीर अपनी घड़ी देखता है ओ sheet 10 मिनट की देर हो गयी कहकर फिर वो धीरे से क्लास रूम के अंदर झांकता है टीचर क्लास ले रहे थे।
नज़ीर निराश होकर कॉलेज की लाइब्रेरी में चला जाता है वहाँ उसकी मुलाकात  आरती(24) से होती हैं,आरती, नज़ीर को  देखकर खड़ी हो जाती है क्योंकि आरती,नज़ीर से एक साल जूनियर थी नज़ीर अपने हाथों से इशारा करके आरती को बैठ जाने को कहता है ये पहली बार था जब आरती और नज़ीर की मुलाक़ात हुई थी।
समय बीत रहा था आरती और नज़ीर की मुलाक़ात भी बढ़ने लगी थी शायद दोनो एक दूसरे को पसंद करने लगे थे लेकिन इन सब के बीच कॉलेज का माहौल भी बदल रहा था आरती और नज़ीर का रिश्ता लोगों को रास नही आ रहा था वो भी सिर्फ इस लिए की नज़ीर मुसलमान था और आरती एक हिन्दू लड़की 
(हमारे  समाज की रूढ़िवादी परम्पराएं हमेशा से इंसानों को तकलीफ पहुचाती रही है) 
उन दिनों देश की  हालत भी मजहबी रंजिशों के कारण खराब चल रही थी और इसका असर  कॉलेज के साथ साथ आरती और नज़ीर के रिश्तों पर भी पड़ा रहा था,दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे लेकिन मजहबी रंजिशों ने उन्हें अलग कर दिया,कालेज में हर तरफ तोड़ फोड़ होने लगी और इसी बीच सरकार ने एक कड़ा फैसला लेते हुए मुल्क के सारे स्कूल,कालेज,विश्वविद्यालय को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा कर दी इस फैसले ने..............

                               (भाग 1 समाप्त)
          (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

            दिनाँक 29 नवम्बर 2020 समय 2.45 दोपहर
      
                                                रचना(लेखक)
                                             सागर(गोरखपुरी)












रविवार, 18 अक्टूबर 2020

अक्टूबर 18, 2020

कहानी सुनिका अंतिम भाग

                                        सुनिका


(अभी तक इस कहानी के भाग एक मे आपने पढ़ा कि किस तरह से लोगों ने सुनीता के ना सुन पाने के कारण उसका नाम सुनिका रख देतें है और
दूसरे भाग में अपने पढ़ा कि
शाम वक़्त था तकरीबन 6.00 बज रहे थे भरत काम करके घर लौटा ही थी कि।।...............)

                                        "अब आगे"

तभी अंजू,भरत के पास घबराते हुए पहुंचती है उसके माथे पर पसीने की बूंदे उभर आई थीं भरत हैरान होकर,क्या हुआ तुम्हे इतनी घबराई हुई क्यूँ हो सब ठीक तो है ना,अंजू ने अपने हाथों से कमरे के दरवाजे की तरफ इशारा किया,भरत बिना कुछ पूछे ही कमरे की तरफ भागता है और दरवाजे को खोलने की कोशिश करता है पर दरवाजा अन्दर से बंद था भरत अपने हाथों से दरवाजा थपथपा कर सुनिका को आवाज लगाने लगता है पर अंदर से कोई आवाज नही सुनाई दी,अंजू रोने लगती है और भरत भी परेशान होने लगता था अंजू के रोने की आवाज को सुनकर उनके पड़ोस में रहने वाला 30 साल एक युवक ताहिर अंसारी दौड़कर उनके पास पहुँचता है।
ताहिर से लिपटकर अंजू रोने लगती है और रोते हुए वो ताहिर से बार बार एक ही बात बोल रही थी कि सुनिका अंदर है ताहिर और भरत दरवाजे को तोड़ने लगतें है 5 मिनट बाद जब दरवाजा टूटता है तो नज़ारा ही कुछ और था अंजू भागती हुई कमरे के अंदर जाती है तो वो कांपने लगती है और वहीं एक कोने में सिमटकर ज़मीन पर बैठ जाती है भरत ना तो कुछ बोल रहा था और नही ही उसके आंशु निकल रहे थे चौखट पर बैठकर वो सिर्फ कमरे के अंदर देख रहा था ताहिर को बड़ी हैरानी होती है कि कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था तो सुनिका गयी कहाँ ताहिर कमरे के चारो तरफ नज़र घूमता है तभी उसकी नज़र खिड़की के ऊपर पड़ती है ताहिर खिड़की के करीब जाता है तो वो चोंक जाता है खिड़की में फंसी सुनिका की चुन्नी और बिखरा हुआ खून देखकर वो घबरा सा जाता हैं वो दौड़ता हुआ खिड़की के पीछे की तरफ जाता हैं पर उसे कोई फायदा नही होता है ना तो वहां सुनिका मिली और ना कोई सुबूत मिला,ताहिर भरत से कहता है कि सुनिका का कुछ पता नही चल रह है हमें पुलिस स्टेशन मे एफ़आईआर दर्ज करानी चाहिए,लेकिन भरत और अंजू इस हालत में नही थे कि वो कुछ कर सकें,ताहिर ने एक अच्छे इंशान का फर्ज निभाया,उसे सुनिका की फिक्र थी इसी लिए उसने बिना भरत को बताए ही पुलिस स्टेशन में जाके एफआईआर दर्ज करा दी।
वक़्त बीतता चल जा रहा था पर सुनिका का कुछ पता नही चल रहा था पुलिस भी हार चुकी थी और ताहिर भी थक चुका था भरत और अंजू की हालत भी दिन ब दिन बिगड़ रही थी भरत हर रोज चौखट पर बैठकर सुनिका का इंतेजार करता था और अंजू के आँशु कभी थामें ही नही।
तारीख 22 दिसम्बर 2019 सुबह के 10 बजे थे जब ताहिर अपनी दुकान का शटर गिराकर तेज़ी के साथ अपनी साइकिल चलता हुआ भरत के घर पहुँचता है वो अपनी साइकिल को बिना स्टैंड पर लगये ही दीवार के साथ खड़ाकर देता है और भागता हुआ भरत के पास जाता है भरत की हालत को देखकर लग रहा थी कि जैसे वो कितना बुढा हो गया हो वो दिन रात सुनिका के ही बारे में सोचता रहता था अन्दर पहुंचकर ताहिर भरत को बाहर ले आता है भरत जब बाहर निकलता है।
 तो उसके सामने नीले रंग की कोट पहने एक 5 फिट 6 इंच की लड़की जिसके कोट की जेब पर इंडिया बैच लगा हुआ था और चेहरे पर चोट का निशान था वो उसके सामने खड़ी थी उसके आंखों में आँशु भर आये थे पर भरत उस लड़की को पहचान नही पा रहा था वो ताहिर से पूछता है कौन है ये लड़की, तभी ताहिर ने भरत से कहा,फिर से देखो उसे,भरत उसे गौर से देखे जा रहा था और उसके आंखों से आँशु बहते जा रहे थे लम्हा जैसे थम सा गया हो भरत अपने कमीज के अस्तीन से अपने आँशु पोछ कर इशारों में पूछता है कहां चली गयी थी हमें छोड़कर इतना पूछते ही सुनिका भरत के गले लग जाती हैं और चिपक कर रोने लगती है भरत भी बहुत देर तक सुनिका को अपने सीने से लगाकर रोता रहा।
तभी अचानक से सुनिका को अपनी माँ का ख्याल आता है और वो कमरे की तरफ भागती है पर कमरें में उसकी माँ अंजू कहीं नज़र नही आती है वो मां को चारों तरफ ढूंढती है तभी उसकी नज़र दीवार पर पड़ती हैं जहाँ सुनिका और उसकी माँ की तस्वीर एक साथ लगी होती हैं सुनिका जोर से बाबा बुलाती है और वहीं दीवार से सटकर नीचे बैठ जाती हैं उसे यकीन नही था कि सिर्फ 6 सालों में इतना कुछ बदल जायेगा कि सोचने के लिए केवल यादें रह जाएगी और कुछ नही।
सुनिका का एक सपना था कि वो एथेलेटिक्स में इंडिया के लिए गोल्ड जीते इसी लिए उनसे अपने सपनो के लिए अपना घर छोड़ दिया और स्पोर्ट होस्टल में दाखिला ले लिया और बीते 6 सालों में सुनिका ने 400 और 800 मीटर की रेस में अनगिनत मेडल्स जीते और देश का नाम किया।

पर वो भरत और अंजू की तकलीफें,दर्द,इंतेज़र,विश्वास
त्याग,उनका प्यार और बेटी के लिए उनका लम्बा इंतेज़र वो कभी नही जीत सकी, अंजू ने सुनिका के इंतेज़र में दो साल पहले ही दम तोड़ दिया और भरत की भी हालत कुछ अंजू जैसी हो चली हैं।

सुनिका को खेल से ही सरकारी नैकरी मिली और सरकार द्वारा ही सरकारी आवास भी जिसमें अब भरत और सुनिका रहतें हैं।।....

                             कहानी समाप्त।।

(इस कहानी से हमने सीखा की अपने सपनों से ज़्यादा ज़रूरी उनके सपने हैं जो हमें इस दुनियां में लेकर आतें है।
जो सिर्फ हमारे लिए सपनें देखतें है और ताहिर जैसे नेक दिल मुसलमान भी होते हैं इस दुनिया में)


          
           दिनाँक 16 अक्टूबर 2020  समय 2.45 दोपहर
                                          रचना(लेखक)
                                 अमित सागर(गोरखपुरी)



गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

अक्टूबर 15, 2020

Sunika kahani in Hindi bhag 2 | Hindi Story on sunika | कहानी खिलाड़ी | Story of sunika

                                 हिन्दी कहानी

                              सुनिका sunika

                                      भाग 2

(अभी तक आपने इस कहानी में पढ़ा कि किस तरह सुनीता लकड़ा का नाम लोगो ने सुनिका रख दिया)

लेकिन लोगों को क्या पता ये.............  
               
                                   
                                        "अब आगे"

नाम ही इसकी पहचान बनेगी,वक़्त तेज़ी से बदल रहा था
और इस बदलते वक्त ने भरत और अंजू की ज़िन्दगी तो बदली ही थी साथ ही साथ सुनिका की ज़िन्दगी को भी एक नया मुकाम दिया,सुनिका 14 साल की हो चुकी थी।
 लेकिन जब सुनिका 6 साल की थी तभी भरत और अंजू ने सोच लिया था कि हमने जो तकलीफ और ज़िल्लत की ज़िन्दगी गुजार दी,ऐसी ज़िन्दगी हम सुनिका को नही जीने देंगे,हम उसे अच्छी तालीम और एक बेहतर इंशान बनाएंगे।
बस इसी ख्वाहिश में भरत और अंजू अपना सब कुछ बेचकर शहर की तरफ रुख कर लेतें हैं पर उन्हें क्या पता था जो सपना वो लेकर आये थे वो कभी पूरा हो पायेगा की नही उन्हें ये भी खबर नही थी बस एक उम्मीद की किरण थी जिसे उन्होंने कभी बुझने नही दिया और इस दौरान उन्हें हर ऐसी मुश्किलों से गुज़रना पड़ा जिसका खयाल हमारे जहन में आता ही नही है और इतना सब कुछ सहने की शक्ति सिर्फ उन्हें उनकी बेटी से मिली थी सुनिका सुन तो नही सकती थी लेकिन उसने कभी भी भरत और अंजू को निराश नही किया हमेशा कक्षा के प्रथम स्थान हासिल किया भरत ने सुनिका को शुरुआत से ही अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया था भरत और अंजू ने कभी भी सुनिका को किसी चीज की तकलीफ तक नही होने दी थी।
सुनिका 14  साल की हो चुकी थी और उसी साल सुनिका ने दसवीं की परीक्ष दी थी उसके माता पिता का सपना था की सुनिका हमेशा की तरह इस बार भी दसवीं की परीक्षा में प्रथम आये पर ये सुनिका से बेहतर कौन जान सकता था वक़्त क्या था वो तो बीत रहा था लेकिन बीते वक़्त के साथ सुनिका के चेहरे पर परेशानी साफ नजर आ रही थी भरत और अंजू दिन रात सुनिका के लिए ऊपर वाले से दुआ करते थे ताकी सुनिका अच्छे नम्बरों से पास हो जाये।
भरत जब अपनी 6 साल की बेटी सुनिका को लेकर सिर्फ पुरानी यादें को समेटें हुए शहर आया था तो उसने कभी सोचा नही था कि इस तरह से ज़िन्दगी जीनी पड़ेगी भरत यही सब बैठे सोच रहा थी कि तभी अंजू उसके बगल में आकर बैठ जाती है भरत बिना पलकें झपके ही सामने की तरफ देख रहा था तकरीबन 15 मिनट हो चुके थे तभी अंजू उसके कंधे को हिलते हुए कहती हैं क्या सोच रहे हो,भरत ने कहा नही कुछ नही बस ऐसे ही,अंजू ज़िद करने लगती है और कहती चलो बताओ क्या सोच रहे थे ये कहकर अंजू अपना हाथ भरत के बांहों में डाल देती हैं भरत बिना अंजू की तरफ देखे ही उसके सारे सवालों का जबाब दे  रहा था तभी अंजू ने कहा क्यूँ परेशान हो सुनिका अच्छे नम्बरों से पास हो जाएगी और हमने कोई गलती नही की अपना घर और गांव छोड़कर तुम परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा।

20 जून 2013 ये एक ऐसी तारीख थी जिसने भरत और अंजू को झकझोर कर रख दिया था और इसी तरिख ने सुनिका की जिंदगी को एक नया मोड़ दे दिया,जिस सोच की वजह से सुनिका के माथे पर चिंता की सिकन रहती थी
वो यही तारीख थी।
शाम वक़्त था तकरीबन 6.00 बज रहे थे भरत काम करके घर लौटा ही थी कि।।...............

                                        भाग 2 समाप्त

                (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)


                  दिनाँक 13 अक्टूबर 2020  समय  10.00 रात
                                                रचना(लेखक)    
                                        अमित सागर(गोरखपुरी)




सोमवार, 12 अक्टूबर 2020

अक्टूबर 12, 2020

सुनिका हिंदी कहानी भाग 1 | खिलाड़ी पर कहानी | हिंदी कहानी सुनिका |Sunika hindi story | Story on the player | Hindi story sunika |

                                हिंदी कहानी

                            सुनिका Sunika

                                    भाग 1

चारो तरफ  भीड़ उसमे से गूंजता हुआ एक नाम एक चीख और चारो तरफ अचानक सन्नाटा।

(ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है इसका किसी जाति, धर्म,प्रान्त,समुदाय,क्षेत्र से कोई वास्ता नही है अगर ऐसा लगता है तो ये सिर्फ महज इतेफाक है उसके लिए मुझे छमा करे)

स्थान                      कुनकुरी
प्रदेश                       छत्तीसगढ़
दिनाँक                    21 दिसम्बर 1998
दिन                        सोमवार
समय                      दोपहर के 2 बजे
मौसम                     चारो तरफ कोहरा और ठंड
मुख्य पात्र                सुनीता
सुनीता की मां           मंजू 
सुनीता के पिता         भरत लकड़ा(एक किसान)

 एक पुरानी साइकिल जिसकी हालत बिल्कुल खराब थी उस पर सवार एक व्यक्ति तेज़ी से चला जा रहा था अचानक से वो रोड के किनारे अपनी साइकिल को ज़मीन पर लिटाकर जोर से भरत भरत की आवाज लगाने लगा, भरत अपने खेत की गुड़ाई करने में मशरूफ था तभी भरत की नज़र उस व्यक्ति पर पड़ती है भरत उसकी तरफ देखकर बोलता है अरे क्यूँ चिल्ला रहा है क्या हुआ,उस व्यक्ति ने भरत से कहा तेरी पत्नी अंजू की तबियत खराब हो गयी है इतना सुनते ही भरत के पावों तले ज़मीन खिसक जाती है वो भागता हुआ अपने घर की तरफ चल देता है तभी पीछे से उस व्यक्ति ने भरत से कहा अपनी साइकिल तो लेता जा लेकिन भरत को सिर्फ अपनी पत्नी अंजू नज़र आ रही थी वो नंगे पैर चार किलोमीटर दौड़कर अपने घर पहुँचता है 
उसके परों से खून निकलने लगे थे उस दिन ठंड कुछ कम थी लेकिन कोहरा थोड़ा जादा ही पड़ रहा था,भरत अपने घर पहुँचता है तो वो अंजू को देख खुशी से रोने लगता हैं अंजू ने एक बड़ी ही प्यारी सी बेटी को जन्म दिया था भरत के हाथ कांप रहे थे और वो बार बार अंजू को देख रहा था तभी अंजू ने भरत को अपने पास बुलाया और उसके गोद मे उसकी बेटी को दे दिया भरत अपने कांपते हुए हाथों से अपनी बेटी को गोद में उठा लेता है और खुद अंजू के कंधे पर अपना सिर रखकर रोने लगता है अंजू की भी आंखे भर आती है तभी अंजू ने भरत से कहा लाओ इसे  मुझे दे दो और भरत  अपने कांपते हुए हाथों से अपनी बेटी को अंजू के गोद मे दे देता है।
समय बीतता चला जा रहा था पर गरीबी भरत और अंजू का पूछा नही छोड़ रही थी ठंड से फसलें भी खराब हो चुकी थी अब तो भरत और अंजू की बेटी भी चार महीने की हो चुकी थी और बीते 4 महीनों में उसने चलना और दौड़ना भी शुरू कर दिया था लेकिन इन सबके बीच एक चीज चौकाने वाली ये थी की भरत और अंजू की बेटी का सिर्फ 4 महीनों में दौड़ना और उसका कानो से ना सुनना ये दोनों चीजें अजीब थी।
लेकिन बोलने में उसका कोई जबाब नही था और हैं एक चीज तो मैंने आप को ही बताई नही,कि अंजू की बेटी का नाम,दोनों ने बड़े प्यार से  नाम "सुनीता" रखा था लेकिन उसके ना सुन पाने के कारण लोगो ने उसका नाम "सुनीता लकड़ा" से बदलकर "सुनिका" रख दिया
लेकिन लोगों को क्या पता ये ।...........

                                भाग 1 समाप्त

           (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ) 


               दिनाँक 10 अक्टूबर 2020  समय 9.00 शाम
                                                                                     रचना(लेखक)
                                                                          अमित सागर(गोरखपुरी)


गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

अक्टूबर 01, 2020

लॉकडाउन भाग 3 Last part | हिंदी कहानी लॉकडाउन | 72 घंटे लॉकडाउन के हिंदी कहानी | सम्पूर्ण लॉकडाउन कहानी इन हिंदी |Complete lockdown story in hindi |

                                  हिंदी कहानी

                       लॉकडाउन Lockdown

                                 अंतिम भाग

(अभी तक इस कहानी में आपने पढ़ा कि आलोक और सिमा मकान मालिक से बिनती करने जाते है और वापस आते समय उन्हें किसी की आवाज सुनाई देती है)

                                         "अब आगे"

 किसी की आवाज सुनाई देती है शायद कोई उन्हें आवाज दे रहा था उस वक़्त 11 बज के 55 मिंट हुए थे आलोक ने सिमा से कहा तुम यहीं रुको मैं देखता हूं कौन है वहां, आलोक जब उसके पास पहुँचता है तो वो तेज़ आवाज में सिमा को आवाज देता है सिमा कवीर को लिए हुए आलोक के पास पहुंचती हैं तो उसके होश उड़ जातें है ज़मीन पर गिरा हुआ एक व्यक्ति जिसकी उम्र तकरीबन 60 से 65 साल के बीच रही होगी उसके सिर से खून बह रहा था सिमा ने घबरा के आलोक से पूछा कैसे हुए ये, शायद किसी गाड़ी ने इन्हें टक्कर मार दी है तभी सिमा ने कहा गाड़ी भी चलने नही आती लोगों को, इतना कहते ही सिमा ने जिस दुप्पटे से कवीर को बांध रखा था उसे खोलकर आलोक को दे देती है और कवीर को अपने गोद मे उठा लेती हैं आलोक नीचे से उन्हें उठता है और एक खाली दुकान के बरामदे में उन्हें ले जाता है खून से उस व्यक्ति का चेहरा बिल्कुल लाल हो चुका था तभी आलोक नीचे झुककर उस व्यक्ति के चेहरे को साफ करता है और उसी दुपटटे से उसकी चोट वाली जगह पर बांध देता था ।
फिर भी चेहरे से खून निकलना बंद नही हो रहा था तभी सिमा ने आलोक से कहा मैं इन्हें देखती हूँ तुम इन्हें अस्पताल ले जाने की लिये कुछ करो आलोक ने सिमा से कहा तुम इनका और कवीर का खयाल रखना मैं अभी आता हूँ आलोक भागते हुए चौराहे तक पहुँचता है और बारिश है कि रुकने का नाम नही ले रही थी आलोक ने चारों तरफ नज़र घुमाई पर लॉकडाउन के कारण ना तो कोई इंशान और ना ही कोई साधन दिखाई दे रहा था आलोक निराश होकर वापस सिमा के पास जाने लगता है तभी उसकी नज़र एक सब्जी वाले ठेले पर पड़ती है आलोक उसके चारों ओर देखता है कि कहीं उसमे कोई ताला तो नही लगा है ना, पर उसमे कोई ताला नही लगा था आलोक  ने उस ठेले को पीछे खींचा और भागते हुए सिमा के पास पहुँचता है तभी सिमा आलोक से कहती है ये पिछले पांच मिनट से कुछ नही बोल रहें है आलोक घबरा जाता है और उन्हें अपने गोद मे उठाकर ठेले के ऊपर लिटा देता है फिर सिमा से कहता है तुम घर जाओ और सामान इकठा कर लो कल हमें मकान भी खाली करना होगा और मैं इन्हें अस्पताल ले जाता हूँ।
तभी सिमा ने कहा नही मैं भी साथ चलती हूँ तुम पागल मत बनो घर जाओ नही तो तुम्हारी और कवीर की भी तबियत खराब हो जाएगी तभी सिमा ने आलोक से कहा और तुम्हारी तबियत का क्या होगा मैं कहीं नही जा रही,मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूं आलोक सिमा को भी उसी ठेले पर बिठा देता है और तेज़ी से भागता हुआ 30 मिंट के बाद सरकारी अस्पताल पहुँचता है आलोक रिशेप्शन पर जाके नर्स को पूरी बात बताता है नर्स आलोक से पूछती है आप मरीज के क्या लगते हो तभी आलोक ने कहा मैं इनका कुछ नही लगता ये हमें जख्मी हालत में रोड के किनारे मिले थे तो इंसानियत के नाते मैं इन्हें यहां ले आया तभी नर्स ने कहा आपने बिल्कुल सही किया जो आप इन्हें यहां ले आये,नर्स ने आलोक को पेपर पर दस्तखत करने को कहा और आलोक उस पेपर पर अपने दस्तखत कर देता है।
इस पूरी कार्यवाही के दौरान ही उस व्यक्ति को ICU में ले जाया जा चुका था आलोक और सिमा वहीं एक बेंच पर बैठ जातें है आलोक पूरी तरह से भीग चुका था सिमा और कवीर उस प्लास्टिक के टुकड़े की वजह से बच जाते हैं लेकिन फिर भी सिमा के कपड़े घुटने से नीचे भीगे हुए थें आलोक सिमा के कंधे पर अपना सिर रखकर उसके हाथों को अपने हाथों में पकड़कर आंखे बंद कर लेता है सिमा भी एक हाथ से आलोक के बालों में उंगलियां घूमाने लगती है और कब सिमा की भी आंख लग जाती है उसे पता ही नही चलता,तकरीबन सुबह के 3 बजे होंगे जब नर्स ने आलोक और सिमा को  चादर से ढक दिया था दोनों ने रात का खाना भी नही खाया था।
सुबह के 5 बजके 15 मिनट हुए थे जब एक व्यक्ति सिर को नीचे झुकाए हुए आलोक के पैर के पास बैठकर रो रहा था सिमा और आलोक की नींद अचानक से खुल जाती है सिमा को बड़ी हैरानी होती है कि उन्हें ये चादर किसने ओढाई,नर्स सामने खड़ी थी वो सिमा से इशारे में कहती है मैंने ओढाई चादर, सिमा नर्स के पास जाती है और हाथ जोड़कर नर्स को धन्यबाद कहती है तभी आलोक घबरा के उठ खड़ा होता है और हैरानी से उस अनजान व्यक्ति से पूछता है क्या हुआ भाई इतना कहते ही पास बैठा व्यक्ति अपने सिर को झुकाए हुए ही आलोक के पैर पकड़ कर रोने लगता है आलोक दुबारा से उस बेंच पर बैठ जाता है तभी वो सिमा कहकर आवाज लगता हैं सिमा झटके से आलोक की तरफ देखती है तो मकान मालिक आलोक के पैरों को पकड़ कर रो रहा था दोनों हैरानी से क्या हुआ मालिक आप यहां कैसे ? मकान मालिक जोर जोर से रोते हुए बार बार सिमा और आलोक से माफी मांग रहा था वो कह रहा था तुमने मेरे बाबा(पिता जी) की जान बचा दी इसका एहसान मैं कभी नही भूलूंगा, सिमा आलोक की तरफ देखती है और दोनों मकान मालिक को बेंच पर बिठाके ICU की तरफ भगतें है नर्स दरवाजा खोलकर उस मरीज से कहती है यही है वो जिन्होंने आपकी जान बचाई है मकान मालिक के पिता आलोक और सिमा को अपने गले लगा लेते है और कवीर नर्स के गोद चला जाता है।।
अब आप सोच रहे होंगे कि मकान मालिक को किसने बुलाया,नर्स ने उन्हें बुलाया था मरीज़ के जेब से एक डायरी मिली थी जिसमे उनके बेटे का नवम्बर लिखा हुआ था....

                                    कहानी समाप्त।।...

(इस कहानी में हमने सीखा की इंशान चाहे अमीर हो या गरीब,हिन्दू हो या मुसलमान,चाहे वो किसी भी जाति विशेष से हो लेकिन उसके अंदर इंशानिया होना बहुत जरूरी है अगर आलोक और सिमा के अंदर इंसानियत नही होती तो शायद मकान मालिक के पिता जिंदा नही बचतें)

अगर आप सभी के आस पास भी सिमा और आलोक जैसे प्रस्तिथि वाले इंशान दिखें तो उनकी मदत करें।



           दिनाँक 30 सितम्बर 2020     समय  11.00 रात
                                           रचना(लेखक)
                                   अमित सागर(गोरखपुरी)

मंगलवार, 29 सितंबर 2020

सितंबर 29, 2020

हिंदी कहानी लॉकडाउन भाग 2 | 72 घंटे लॉकडाउन के हिंदी कहानी | सम्पूर्ण लॉकडाउन कहानी इन हिंदी |Complete lockdown story in hindi |

                                  हिंदी कहानी

                       लॉकडाउन Lockdown

                                       भाग 2



(अभी तक इस कहानी में आपने पढ़ा कि आलोक के मकान मालिक ने उसे मकान खाली करने को कहता है और आलोक गाड़ी की तलाश में घूम कर कमरे के बाहर बैठ जाता है)

                                    "अब आगे"

नही मिली कोई गाड़ी कहकर आलोक रोने लगता है।
सिमा ने कहा क्यों रोते हो सब थीक हो जायेगा तुम पहले  अंदर चलो इतना कहते ही आलोक कमरें की तरफ चल देता है सिमा तौलिये से उसके बालों को सुखाने लगती है आलोक की आंखें भर आईं थी वो सिमा के कमर से लिपटकर रोने लगता है तभी सिमा अपने आपको संभालते हुए अपने साड़ी के पल्लू से उसके आँशु पोछने लगती है वो आलोक से कहती है चलो अब जल्दी से तुम अपने कपड़े बदल लो नही तो तुम्हे ठंड लग जाएगी आलोक उठता है और अपने कपड़े बदलने चला जाता है आलोक जब कपड़े बदल के वापस आता है तब तक सिमा आलोक के लिए अदरक वाली चाये बनाकर उसका इन्तेज़ार करती है।
आलोक थोड़ा मायूस सा था तभी सिमा ने कहा हमें एक बार फिर मकान मालिक से बात करनी चाहिए आलोक ने कहा कोई फायदा नही वो मानेगा नही सिमा ने कहा फिर भी एक बार कोशिश कर के देख लेते है पर इतनी बारिश में जाएंगे कैसे अब तो छाता भी टूट गया है और कवीर का क्या करें तभी सिमा ने कहा मैं कुछ करती हूं।
सिमा कमरें के अंदर से प्लास्टिक का एक बड़ा सा टुकड़ा  ले आती है वो इतना बड़ा था कि जिसमे दोनों अपने आपको पानी से बचा सकते थे,सिमा कवीर को एक दुप्पटे से अपने सीने से लगा कर बांध लेती है फिर सिमा और आलोक उस प्लास्टिक के टुकड़े को अपने सिर के ऊपर रखकर मकान मालिक के घर की तरफ चल देतें हैं कुछ खाश दूरी नही थी सिर्फ 500 मीटर की दूरी थी आलोक के कमरे से मकान मालिक के घर के बीच, रात के 11 बज चुके थे जब आलोक ने मकान मालिक के दरवाजे की घंटी बजाई, आलोक घंटी बजाके वापस सिमा के पास आ जाता है बारिश इतनी जोरों की हो रही थी कि उनके गुठने से नीचे के कपडे भीग रहें थे 10 मिंट जो चुके थे आलोक को घंटी बजये पर दरवाजा नही खुला तभी सिमा ने आलोक से कहा घंटी फिर से बजाओ आलोक भीगता हुआ दरवाजे तक पहुंचता है और दरवाजे को हाथों से थपथपाने लगता है।
तभी जोर से बदल गरजने की आवाज होती है और कवीर भी नींद से उठ जाता है सिमा उसे थपकी लगा के सुलाने लगती है आलोक सिमा की तरफ देखता है तभी सिमा, आलोक को पीछे देखने का इशारा करती है आलोक पीछे मुडा तो मकान मालिक सामने खड़ा था सिमा कवीर को लेकर आलोक के पास पहुंचती है और दोनों हाथ जोड़कर बिनती करने लगते है सिमा कहती है मालिक हमें कुछ और दिनों की मोहलत दे दीजिए आपकी बड़ी मेहरबानी होगी हमारी नही तो हमारे 3 साल के बच्चे की खातिर कुछ दिन का समय दे दीजिए।
तभी अचानक से कवीर रोने लगता है सिमा पीछे की तरफ घूमकर कवीर को दूध पिलाने लगती है और आलोक मकान मालिक से बार बार बिनती कर रहा था, तभी मकान मालिक ने आलोक के कंधे पर अपना हाथ रखकर बोला, कुछ नही कर सकता मैं तुम्हारे लिए तुम खामखां अपना और मेरा वक़्त खराब कर रहे हो अब तुम जाओ और मुझे सोने दो इतना कहकर मकान मालिक दरवाजा बंद कर लेता है आलोक वहीं सिमा के पास बैठ जाता है दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोने लगतें है कुछ देर बाद आलोक सिमा का हाथ पकड़कर उसे उठता है दोनों के कपड़े पूरी तरह से भीग चुके थे और कवीर भी सो चुका था आलोक और सिमा दोनों हिम्मत नही हारतें हैं और बड़ी मुश्किलों से आपने आपको समझते हुए दोनों अपने कमरे की तरफ चले देते है वो लगभग दो सौ मीटर ही चले होंगे कि तभी उन्हें ।।..............

                                        भाग 2 समाप्त।।

                 (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)


                   दिनाँक 28 सितम्बर 2020  समय  9.05 शाम
                                                  रचना(लेखक)
                                       अमित सागर(गोरखपुरी)


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