अनकही बातें
दिसंबर 09, 2022
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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022
शनिवार, 15 अक्तूबर 2022
नारी पर कविता
अक्तूबर 15, 2022
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बदनाम गली
मैंने अक्सर उन गलियों में जिंदगी को सिसकते देखा है।
हंसते चेहरे में बेबस और परेशानी इंसान भी देखा है।
हम जैसे ही है सब वहां कोई फर्क नही है उनमे।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।
सहूलियत तो ना के बराबर है वहां, चंद पैसों में जिस्म बेचते देखा है।
शिक्षा असुविधा के बिना भी, उनमें जिंदा रहने का हुनर देखा है।
तुमने सिर्फ जिस्म देखा है उनका, उनमें बैठा इंसान कहां देखा है।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।।
वो भी है हमारी तरह फिर भी लोगों को उनसे कतराते देखा है।
जाति,धर्म का तनिक भी भेद नहीं, हर मजहब के लोग आते वहां देखा है।।
उनके भी है कई ख्वाब अधूरे उमंगों के शैलाब भी उनमें देखा है।
तुमने सिर्फ बदन नोचा है उनका, क्या कभी उनका दिल भी देखा है।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।।
सिद्धत, मुहब्बत, कर्म, विश्वास, का एहसास वहां देखा है।
रोजी, रोटी, धंधा, पानी, इन सब में भी भी ईमान देखा है।
पैसे पैसे के लिए उन्हें अपना जिस्म बेचते देखा है।
तुमने सिर्फ जिस्म देखा है उनका, उनमें बैठा इंसान कहां देखा है।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।।
मैंने वहां जिस्म से बेहतर, रूहानियत से भरे इंसान देखे है।
तुमने कभी सुना है उनको मैंने घंटो सुना है उन्हें।
अब वो भी समाज मे सम्मान चाहती है बदनाम गलियों में भी खुला आसमां मांगती है।
मैंने ख्वाहिशों को समेटे उन्हें मरते देखा है।
तुमने सिर्फ जिस्म देखा है उनका, उनमें बैठा इंसान कहां देखा है।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।।
दिनाँक : 25 सितंबर 2022 समय : 11:00 सुबह
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
बुधवार, 21 सितंबर 2022
बेटी पर कविता
सितंबर 21, 2022
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बेटियां
घर वही, आंगन वही, सारे रिश्ते नाते सब वही।
दिन वही, रातें वही, मां का आँचल पिता का शाया वही।
जब सब कुछ वही है तो मेरा आंगन मेरा क्यूं नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
बाबा मैं तेरी गुड़िया वही, आंगन की सोन चिरईया वही।
तेरी चिंता वही, फिक्र वही, पर उस घर में मेरी याद क्यूं नही।
जिस दहलीज़ से तूने बिदा किया उसमें क्यूं मेरा प्रवेश नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
माँ तुम वही, बाबा वही, पर भाई और मैं एक जैसे क्यूं नही।
हम सब एक जैसे ही तो है पर मैं तुम जैसी क्यूं नही।
मेरा कोई दोष नही जो जनमी बेटी बनकर मैं।
फिर क्यूं इतना क्रोध है मुझसे, बेटे के लिए क्रोध क्यूं नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
मुझे कुछ ना चाहिए उस दुनियां से, फिर भी क्यूं मेरे लिये वहां प्यार नही।
क्या इतने बेगाने हो गये हैं हम की दीवारों पर भी कोई निशान नही।
जननी है वहां की माटी मेरी, उस माटी से क्यूं मेरी पहचान नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
"बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही"।।
दिनाँक : 18 सितंबर 2022 समय : 10: 10 सुबह
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
शुक्रवार, 9 सितंबर 2022
लव कविता
सितंबर 09, 2022
माना की | प्यार पर हिंदी कविता | Love poem in Hindi | सागर गोरखपुरी | लव कविता हिंदी में | मोहब्बत पर कविता हिंदी में | Best love poem in hindi | sagar gorakhpuri ki best kavitayen | आशिकी पर कविता | ब्रेकअप पर हिंदी कविताएं
माना की
पर क्या मेरा वक्त लौटा पाओगे।
मेरा इंतेज़ार, मेरा ख्याल, मेरा ऐतबार, कभी याद कर पाओगे।
या यूँ ही जल्दीबाज़ी में इन्हें चौखट पर छोड़ आओगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।
माना की मैं गलत था, गलतियां की मैंने।
क्या अपने गलतियों पर पर्दा डाल पाओगे।
झूठ के सहारे कब तक खुद को समझोगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।
माना की तुम कहती थी, चल बदल जाएंगे तुम्हारे लिए।
हर मुश्किलात में साथ चलेंगे तुम्हारे लिए।
क्या सच मे उन वादों पर तुम ठहर पाओगे।
या हर बार की तरह झूठी कसमें खाओगे।
क्या सच में तुम मुझे भूल पाओगे।।
माना की हर बार की तरह इस बार भी तुम वक़्त पर आओगे।
मेरे देर हो जाने पर, हक़्क़ से मुझ पर चिल्लाओगे।
क्या मेरे एक इल्तेज़ा पर अपना फैसला बदल पाओगे।
बिना शर्तो के बस एक बार, मेरे घर तक आओगे।
या यूँ ही जल्दी बाज़ी में सारे वादे चौखट पर छोड़ आओगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।
दिनाँक : 02 सितंबर 2022 समय : 11: 10 सुबह
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
गुरुवार, 8 सितंबर 2022
शनिवार, 13 अगस्त 2022
देश भक्ति कविताएँ
अगस्त 13, 2022
फौजी की जुबानी | Peam of soldiers | Sagar Gorakhpuri | फौजी की ज़िंदगी पर कविता | फौजी पर कविता | वीरों पर कविता | देश के जवानों पर कविता | बहादुरी पर हिंदी कविता | त्याग और बलिदान पर कविता | सैनिकों पर कविता
फौजी की जुबानी
और हम है कि शरहद पर हर रोज जीते और मरते हैं।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
मरने जीने का खौप कहाँ किसे है।
हाथों में खुद की जान लिए फिरते हैं।
दस्तक़ देते है हर रोज वहाँ हम।
जहाँ से लौटना थोड़ा मुश्किल है।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
हर रोज झूठ का सहारा हम लेते है।
जब जब माँ से बातें करते है।
पता नही उसे अब कहाँ हूँ मैं।
हर रोज पुरानी लोकेशन बताते हैं।
दिल की बीमारी है उसे इस लिए हर बात छिपाते है।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
ज़िन्दगी जीने का हुनर हम से बेहतर किसी में नही है।
हर मुश्किल को बड़े शालीके से हम सुलझाते है।
रिश्ते, नाते, दोस्ती, प्यार, सभी को बाखूबी निभाते हैं।
दुश्मन दिख जाये जो शरहद पर फौलाद बन जाते है।
रख दे जो दुश्मन कदम धरा पर विक्रम बत्रा भी बन जाते है।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
धरती कहीं बर्फीली है कारगिल कहीं रेगिस्तान है।
हम ही हैं जिनका ह्रदय, कम ऑक्सीजन में भी करता काम है।
अंधी, तूफान सर्दी गर्मी ये सब भी हमसे परेशान हैं।
खड़े हुए हम जब भी जहां भी लौट जाते शैलाब है।
मरने जीने का खौप हमें कहाँ , हम तो दिलों में जिंदा रहते है।
ज़िंदा रहें तो शुर्खियों में, शाहिद हुए तो राजनीति बन जाते हैं।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
दिनाँक : 27 जुलाई 2022 समय : 03:30 दोपहर
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
शनिवार, 6 अगस्त 2022
मंगलवार, 26 जुलाई 2022
शनिवार, 9 जुलाई 2022
रविवार, 12 जून 2022
शुक्रवार, 10 जून 2022
बुधवार, 8 जून 2022
सोमवार, 6 जून 2022
मंगलवार, 31 मई 2022
शुक्रवार, 27 मई 2022
गुरुवार, 26 मई 2022
बुधवार, 25 मई 2022
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