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गुरुवार, 30 जुलाई 2020

जुलाई 30, 2020

हिन्दी कहानी सियाचिन ग्लेशियर, एक फौजी की जुबानी भाग 2 Hindi Story Siachen Glacier

                                   हिन्दी कहानी 

               सियाचिन ग्लेशियर, एक फौजी की जुबानी

                              Siachen Glacier 

                                        भाग 2

हमने अपना सामान रखा और गाड़ी मे बैठ गए,हमें 300 किलोमीटर की दुरी तैय करनी थी।
हमारी गाड़ी बटालियन के मुख्यद्वार से बहार हुई,एक बार फिर हमारी आँखे नम हो गयी,और सोचने लगे की क्या हम लौट सकेंगे फिर बटालियन में,और इसी कसमकस में हम आगे बढ़ने लगे,कुछ घंटों में हम समुद्र तल से 12000 फिट से 14000 फिट ऊंचाई तक पहुंच चुके थे ऑक्सीजन धीरे धीरे हवा में काम होने लगी थी।
अब हम सभी के सिर में थोड़ा दर्द होना शुरू हो चूका था।
हमने पानी की बोतल निकली और सभी ने थोड़ा पानी पिया और उस वक़्त वहां का तापमान -30℃ तक पहुंच चूका था हम ठण्ड से कांप रहे थे और हम एक दूसरे से चिपक कर बैठ गये,लेकिन फिर भी हम आगे बढ़ रहे थे कुछ ही वक़्त बाद हमने गाड़ी को किनारे किया। चारो तरफ सिर्फ बर्फ ही बर्फ थी ठंड बढ़ चुकी थी,हमने बैग से  चाये की बोतल निकाली और हम सभी ने थोड़ी थोड़ी चाये पी, देखते ही देखते मौसम बदल गया,बर्फ बारी शुरू हो चुकी थी हमारी मुश्किलें बढ़ने लगी।
हमारे गाड़ी को आगे का रास्ता तये करने के लिए गाड़ी के पहिए में हमें नॉन स्किड चेन  लगनी पड़ी,इसके बिना गाड़ी को बर्फ में  चलाना मुश्किल हो जाता और शायद हमारी जान भी जा सकती थी ठण्ड बहोत थी हमारे हाथ और पैर ठन्डे पड़ रहे थे लेकिन फिर भी हम 40 किलोग्राम के नॉन स्किड चेन को पहिये पे लगा रहे थे।।.......
                                  भाग 2 समाप्त।।
              (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)
                दिनाँक 29 जून 2020  समय 7.20 शाम
                                    रचना(लेखक)
                            अमित सागर(गोरखपरी)

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

जुलाई 28, 2020

हिन्दी कहानी सियाचिन ग्लेशियर, फौजी की जुबानी भाग 1हिन्दी कहानी सियाचिन ग्लेशियर, फौजी की जुबानी भाग 1 Hindi Story Siachen Glacier

हिन्दी कहानी सियाचिन ग्लेशियर, फौजी की जुबानी
 Siachen Glacier
भाग 1

बात नवम्बर 2019 की है जब मैं सियाचिन में तैनात था तापमान शुन्य से -20℃ था हमारी पूरी बटालियन सियाचिन में थी।
और हम बहुत खुश थे और थोड़े दुखी भी थे,
खुश इस लिए थे की हम दुनियां के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र,
में थे और दुखी इस लिए की क्या हम अपने घर कभी पहुँच पाएंगे या नहीं।
फिर भी एक दिन, मैं और मेरे कुछ साथियों ने अपने उच्चाधिकारी से सियाचिन पोस्ट पर तैनाती के लिए
बात की लेकिन समय हमारे अनुकूल नहीं था और 
उन्होंने हमें मना कर दिया । हम थोड़े निराश हुए और रात
 के भोजन के लिए मेस की तरफ चल दिए।
एक दिन अचानक मुझे और मेरे साथियों को ये सुचना
 मिली कि हमें सियाचिन पोस्ट पर तैनाती की
अनुमति मिल गयी है । हम बहुत खुश थे।
अगले दिन हमें कमान्डर के इंटरव्यू के लिए बुलाया 
गया।
हम इंटरव्यू में एक कतार में खड़े थे,कुछ ही लम्हों में
हमारे कमांडर हमारे सामने थे और आते ही बोले,
Josh है, हमने कहा Yes Sir, उन्होंने कहा
कोई परेशानी हमने कहा No Sir, इतना कह कर हमारे कमान्डर हमारे सामने से चले गए थे हमने जोश के साथ भारत माँ की जय का नारा जोर से लगाया,और उसके बाद हम अपने बैरक की तरफ चल पड़े।
अगले दिन सुबह 4.30 तापमान - 25℃ था और हमें दुनियां के सबसे ऊँचे बैट्ल स्कूल में ट्रेनिग के लिए भेजा जा रहा था मैं और मेरे साथी,अपने पूरे सामान के साथ बटालियन के मुख्य द्वार पर खड़े थे और हमें ले जाने वाली गाड़ी का इन्तेज़ार कर रहे थे हम सभी में बहुत जोश था तभी हम सभी ने एक साथ मिलकर अपने बटालियन को सैल्यूट किया और जोश के साथ हमने बटालियन और भारत माता की जय नारा लगाया इतने ही देर में हमारी गाड़ी आ चुकी थी 
(और यही से शुरू होता है हमारा  सियाचिन  ग्लेशियर का
सफर।।)

भाग 1 समाप्त
(आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

दिनाँक 28 जून 2020  समय 9.32 रात्रि
रचना(लेखक)
अमित सागर(गोरखपरी)

रविवार, 26 जुलाई 2020

जुलाई 26, 2020

हिन्दी कहानी भटकती आत्मा(मंगला की) अंतिम भाग Hindi Story Wandering soul (of Mangala) last Part

                                        हिन्दी

                      भटकती आत्मा(मंगला की)

              Wandering soul (of Mangala)

                                 अंतिम भाग
ये कहाँ  मिली तुम्हे, अब्बा ये मुझे उसी पुलिया पर मिली जहाँ ये कल बैठी थी इक़बाल के अब्बा ने कहा आज मैं तुम्हे नहीं छोडूंगा चुड़ैल तभी "मंगला" चिल्लाई, मै चुड़ैल नहीं अमित उसका हाथ पकड़ के उससे कहता है तुम क्यूं फिर से जलन चाहती हो और इस बार मैं तुम्हे जलने नहीं दूंगा अब कोई "मंगला" नहीं जलेगी अमित ने कहा अभी इक़बाल के अब्बा ने कहा बेटा तुम इसे छोडो आज मैं इसे जला के दाम लूंगा।
अमित घबरा के please अब्बा इसे मत जलाओ ये बहुत अच्छी है अमित ने कहा अब्बा आप कुछ देर के लिए कमरे से बहार चले जाइए मै इससे बात करता हूँ ठीक है बेटा कह कर इक़बाल के अब्बा बहार चले जाते है अमित "रज़िया" का हाथ अपने हाथों में लेके रोने लगता है और कहता है मै तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ और तुम्हे फिर से जलता हुआ नहीं देख पाउँगा,तुम इसे छोड़ दो मै ज़िन्दगी भर तुम्हारा शुक्रगुज़ार रहूँगा।
 तुम हमेशा मेरा साथ रहो मै हर बार तुम्हे महसूस करूँ,तुम हर वक़्त मेरे आस पास रहो, बस इतनी सी गुज़ारिश है तुमसे, तभी "मंगला" की आत्मा ने अमित से कहा तुम सच में बहुत अच्छे हो अमित,मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगी वादा है मेरा तुमसे, अमित ने "मंगला" के हाथ जोरों से पकड़ रखा था और दोनों की आँखों से आँशु बहे जा रहे थे तभी "मंगला" ने अमित से कहा बस एक बार तुम मुझे Love you(लव यू) बोल दो मै इसे हमेशा के लिए छोड़ दूंगी तभी अमित अपने हाथों से उसके अंशुओं को पोछते हुए "मंगला" को Love You कहता है और "मंगला" Love You too कहकर चली जाती है।
नोट- ("मंगला" ने रज़िया का शरीर तो छोड़ दिया पर अमित के साथ हमेशा रही)
"मंगला" और अमित एक दूसरे को हमेशा प्यार करते रहे हलाकि अमित हमेशा "मंगला" को कहता रहा की मुझे देखना है तुमको, पर "मंगला" हर बार ये कहकर टाल देती की तुम मेरा चेहरा देख नहीं पाओगे और अमित हर बार उसकी बात मान जाता था अब अमित हर रोज "मंगला" को अपनी साईकिल पर बिठा के शैर करता है वो दिखती तो नहीं पर महसूस हर वक़्त होती थी।

(इस कहानी से हमने यही सीखा की प्यार किसी जाती,धर्म रंग, रूप ,आत्मा और मनुष्य कुछ मायने नहीं रखता।)

                                कहानी समाप्त।।
  (कहानी आप सभी को कैसी लगी coment section में जाके मुझे बताएं) 
                                      धन्यबाद।।

             दिनाँक 24 जुलाई 2020 समय 4.00 शाम

             रचना(लेखक) अमित सागर(गोरखपरी)



शनिवार, 25 जुलाई 2020

जुलाई 25, 2020

हिन्दी कहानी भटकती आत्मा(मंगला की) भाग 13 Hindi Story Wandering soul (of Mangala)

                           हिन्दी कहानी

                 भटकती आत्मा(मंगला की)

         Wandering soul (of Mangala)

                               भाग 13

किसी ने मेरे ऊपर पेट्रोल डाल दी हो उसकी महक से लग रहा थी कि वो पेट्रोल ही है मै जोर से चीखी और चिल्लाई पर कोई फायदा नहीं हुआ मैंने कहा मुझे छोड़ दो, इतना कहते ही मुझे गर्मी का एहसास हुआ मैंने अपने आपको छुड़ाने की बहुत कोशिश की पर मैं हार गयी थी देखते ही देखते मै आग के गिरफ्त में आ गयी और जलने लगी, कुछ ही लम्हो में मैं "मंगला" से आत्मा हो गयी और उसी पेड़ पर बैठ कर आज भी मै "रजत" का इंतज़ार हर रोज करती हूँ।

(अपने सुना एक बार फिर हमारी रूढ़िवादी परम्पराओं ने एक इंशान और एक राष्ट्रीय खिलाडी की जान ले ली।)
 लेकिन  जब से तुम्हे देखा है तुम बिलकुल "रजत" जैसे लगने लगे हो इतन कहते ही वो अमित से लिपट जाती है और रोने लगती है अमित डर रहा था कि कोई उसे और "रज़िया"को इस हल में ना देख ले अमित झट से खड़ा हो जाता है "मंगला" ने पूछा क्या हुआ,ये ठीक नहीं है अमित ने कहा तभी "मंगला" ने अमित से कहा मुझे तुमसे प्यार हो गया है अमित एक टक उसे देखता रहा, फिर अमित ने उससे बोला नहीं ये नहीं हो सकता तुम तो एक आत्मा हो, तुम मुझसे प्यार कैसे कर सकती हो "मंगला" भरी आवाज में जोर से हँसती और अमित से कहती तुमने ठीक कहा मैं आत्मा हूँ और मै किसी से भी प्यार कर सकती हूं और  तुम मुझे पसंद हो,इतना कहते ही वो रोने लगती है।
अमित उसका हाथ पकड़ लेता है और उसे इक़बाल के घर ले जाता है इस बार "मंगला" ने "रज़िया" साथ नहीं छोड़ा वो अमित को देखती रही और साथ चलती रही  घर पहुचते ही इक़बाल के अब्बा ने अमित से पूछा ।।......

                             भाग 13 समाप्त।।
         (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

     दिनाँक 23 जुलाई 2020  समय 8.20 शाम

                           रचना(लेखक)

                   अमित सागर(गोरखपरी)


शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

जुलाई 24, 2020

हिन्दी कहानी भटकती आत्मा(मंगला की) भाग 12 Hindi story Wandering soul (of Mangala)


                            हिन्दी कहानी

                  भटकती आत्मा(मंगला की)

          Wandering soul (of Mangala)

                               भाग 12

यहाँ कोई "रजत" नहीं है 3 दिनों से मैंने किसी "रजत" को नहीं देख "मंगला" घबरा कर बोली, क्या मैं यहाँ 3 दिनों से हूँ नर्स ने कहा हाँ तुम 3 दिनों से यहाँ हो और मेरे पति "रजत" कहाँ है नर्स गुस्से से बोली आप 3 दिनों से यहाँ अकेली हो और आपके साथ कोई भी नहीं है मैंने नर्स से कहा मुझे अभी  घर जाना है नर्स के लाख मना करने बाद भी मैं घर चली गयी।
शाम के 9.10 मिनट पर  मै अपने घर रेलवे कालोनी A34/6 अपने सरकारी आवास पहुँचती हूँ "रजत" की माँ ने दरवाजा खोला मै हैरान होके उन्हें देखने लगी मै आगे बढ़ के उनके चरणस्पर्श करना चाहा पर उन्होंने अपना पैर पीछे खींच लिया वो मुझे अजीब सी नज़रों से देख रही थी मैंने पूछ आप कब आयी उन्होंने का 3 दिन हो गए मै हैरान थी और कुछ समझ नहीं आ रहा था मैं कमरे की तरफ भागी पर "रजत"कहीं नज़र नहीं आया तभी मेरी नज़र दिवार के ऊपर  लगी "रजत" की तस्वीर पर पड़ती है।
मैं जोर से चीखी मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि "रजत" अब इस दुनियां में नहीं रहा, शायद उस दिन फ़ोन पर नर्स ने मुझसे ऐसा ही कुछ कहा था तभी मेरे कमरे में अचानक अँधेरा हो जाता है लाइट तो नहीं गयी थी लेकिन शायद  किसी ने मेरे ऊपर एक बड़ा सा कम्बल डाल लिया था फिर उन्होंने मुझे चारपाई से बांध दिया था और बन्धते वक़्त वो मुझसे कह रहे थे कि तूने हमारे बेटे को मार दिया ,शादी के दूसरे दिन ही तुने हमारे बेटे को मौत के हवाले कर दिया,तू डायन है जो शादी होते ही मेरे बेटे खा गई।
"मंगला" की बातें सुनके अमित की आँखे भर आयी थी और उसकी आँखों से आँशु निकलने लगे थे तभी "मंगला" आगे बढ़ के "रज़िया"के दुप्पटे से अमित के आँशु पोछती है  तभी अमित ने कहा आगे बताओ फिर क्या हुआ "मंगला" ने कहा
तभी मुझे  लगा ।।........
                           भाग 12 समाप्त।।
        (आगे की कहानी के लिये बने रहिये मेरे साथ)

       दिनाँक 21 जुलाई 2020 समय 7.15 शाम

                             रचना(लेखक)

                     अमित सागर(गोरखपरी)




गुरुवार, 23 जुलाई 2020

जुलाई 23, 2020

हिन्दी कहानी भटकती आत्मा( मंगला की) भाग 11 Hindi story Wandering soul (of Mangala)

                           हिन्दी कहानी

                भटकती आत्मा(मंगला की) 

         Wandering soul (of Mangala)

                               भाग 11

 बंद कमरे में उसके चेहरे पर किसी ने तेज़ फूँक मारी और कहा कल मिलते है तभी अमित ने कहा कौन है मै "मंगला" कह कर जोर से हँसी और एक दाम से कमरे में सन्नाटा हो जाता है अमित सोने की कोशिश कर रहा था पर नींद उसकी आँखों से गुम हो गयी थी सुबह के 3.35 बज चुके थे और अमित सो गया।
            (अगले दिन शाम के 7.30 मिनट हो रहे थे)   
उस दिन अमित को स्टेडियम में थोड़ी दे हो गयी थी उसने अपनी साईकिल निकली और वो घर की ओर चल पड़ता है 
उस दिन ठण्ड कुछ बढ़ गयी थी  ठण्ड के कारण अमित अपनी साईकिल थोड़ी तेज़ चला रहा था अचानक से उसकी रफ़्तार काम होने लगी उसे लग रहा था कि जैसे कोई उसकी साईकिल के पीछे कैरिया पर कोई बैठ गया हो तभी पीछे से आवाज आती है इतनी तेजी से कहा जा रहे हो,ये कहते ही उसने अपना दाहिना हाथ अमित के कंधे पर रख देती है अमित घबरा के कौन "मंगला" इतनी जल्दी भूल गए,तभी अमित की नज़र पुलिया पर पड़ती है "रज़िया" उसी जगह बैठी है जहाँ वो पिछली शाम को बैठी थी "मंगला"की आत्मा अमित की साईकिल को छोड़कर "रज़िया" के शरीर में प्रवेश कर चुकी थी।

अमित ने अपनी साईकिल किनारे लगाई ही थी कि "मंगला" ने कहा यहाँ आओ और इधर बैठो,अमित डरता हुआ उसके पास बैठ जाता है "मंगला" ने कहा पूछोगे नहीं की उसके बाद क्या हुआ , अमित ने कहा मुझे माफ़ कर दो तभी "मंगला" ने कहा मुझे पता है तुम भूल गए थे अमित उसके हाथों को पकड़ के,आगे बताओ क्या हुआ तभी "मंगला" ने कहा जब मुझे होश आया तो मै हॉस्पिटल में थी  मेरे सामने नर्स खड़ी थी मैंने चारो तरफ नज़र घुमाई पर "रजत"कही नहीं दिख रहा था मैंने नर्स से पूछा "रजत" कहाँ है नर्स ने कहा ।।.......

                             भाग 11 समाप्त।।
           (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

        दिनाँक 20 जुलाई 2020 समय  7.00 शाम

                             रचना(लेखक)

                     अमित सागर(गोरखपुरी)

      

बुधवार, 22 जुलाई 2020

जुलाई 22, 2020

हिन्दी कहानी भटकती आत्मा(मंगला की) भाग 10 Hindi story Wandering soul (of Mangala)

                            हिन्दी कहानी

                  भटकती आत्मा(मंगला की)

           Wandering soul (of Mangala)

                               भाग 10

मै किचन में रात का खाना बना रही थी फोन की आवाज सुनते ही मै फोन की तरफ भागी और झट से फोन को उठाया मैंने हैलो कहा उधर से शायद किसी लड़की की आवाज थी उसने मुझसे कुछ कहा ही था और मैं बेहोश हो गयी थी इतना कहते ही "मंगला"की आँखों से आँशु निकलने लगते है ठण्ड बढ़ने लगी थी कोहरा भी जादा घाना होने लगा था उसने अमित के हाथों को जोर से पकड़ रखा था अचानक से उसने अमित के हाथों को छोड़ दिया था, उसकी नज़र रोड पर थी अमित ने कहा क्या हुआ, "मंगला" ने कहा कुछ नहीं अब मैं चलती हूँ आगे तो बताओ क्या हुआ अमित ने उससे कहा, उसने कहा कल मिलते है यही पर, तभी "रज़िया" अमित से कहती है।

भाई आप कब आए और मै यहाँ कैसे,अमित ने कहा मुझे क्या पता तुम तो लगभग 2 घंटे से यहीं बैठी हो,उसी वक़्त "रज़िया"के अब्बा उसे ढूढते हूए आवाज दे रहे थे
अभी "रज़िया" ने हाँ अब्बा कहा ,रज़िया के अब्बा ने कहा तुम इतनी ठण्ड में यहाँ क्या कर रही हो ,मुझे कुछ पता नहीं अब्बा मै यहां कैसे आयी तभी अमित ने कहा अभी थोड़ी देर पहले इसके ऊपर"मंगला"की आत्मा थी शायद आपके आने का आभास हो गया था उसको, इसी लिए छोड़कर चली गयी, उसी वक़्त अमित के कानों में आवाज आई, मै यही हूँ अमित डर से काँपने लगा था।

उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे "मंगला" ने उसके कंधे पर अपना हाथ रखा हो तभी "मंगला" ने उससे कहा डरो मत कल खूब सारी बातें करनी है तुमसे, इतना कह के शायद ओ चली गयी थी इक़बाल के अब्बा रज़िया को घर ले जाते है और अमित अपनी साईकिल लेके अपने घर चला जाता है ।
अमित रात का खाना खाने के बाद अपने कमरे में जाता है
तभी उसे कमरे में किसी की आहट महसूस होती अमित कमरे की सारी लाईट जला देता है पर कमरे में कोई नहीं था वो सोने ही वाला था कि तभी।।.........

                                  भाग 10 समाप्त

             (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

भटकती आत्मा 11 www.amitsagar85.com/2020/07/11-hindi-story-wandering-soul-of-mangala.html?m=1

          दिनाँक 19 जुलाई 2020    समय  6.28 सुबह

                                     रचना(लेखक)

                              अमित सागर(गोरखपुरी)

सोमवार, 20 जुलाई 2020

जुलाई 20, 2020

हिन्दी कहानी भटकती आत्मा( मंगला की) भाग 9 Hindi story Wandering soul (of Mangala)

                   हिन्दी कहानी

        भटकती आत्मा(मंगला की)

 Wandering soul (of Mangala)

                                भाग 9

     
उसने देखा की ये तो रज़िया है अमित ने रज़िया कहा ही था कि उसने भारी आवाज़ में कहा तुम आ गए,मै तुम्हारा ही  इंतज़ार कर रही थी अमित थोड़ा पीछे हटता है उसे पता चल गया था कि "मंगला"की आत्मा रज़िया के अंदर प्रवेश कर चुकी है तभी "मंगला" ने अमित को इशारा किया पास बैठने का अमित डरते हुए उसके पास जाकर थोड़ी दूरी पर  बैठ जाता है वो डर रहा था  "मंगला" खुद बा खुद उठ कर अमित के करीब जाती है अमित  ने कहा रज़िया घर चलो उसने कहा I am Mangal, not Rajiya(मै मंगला हूं रजिया नही) अमित को यकीन हो चूका था कि वो "मंगला" ही है क्योंकि इतनी अच्छी अंग्रेजी जो बोल रही थी रज़िया ने तो बिलकुल भी पढ़ाई नहीं की थी।
तभी "मंगला" ने अमित की आँखों में देखते हुए अपने हाथों को अमित के हाथों के ऊपर रख दिया था अमित के शरीर में कंपन सी होने लगती है वो डर गया था अमित उठ के जाने की कोशिश कर रहा था तभी "मंगला" ने कहा बैठ जाओ और अमित बैठ जाता है "मंगला" ने कहा हम बहुत खुश थे अपने परिवार में,अमित ने कहा आगे बताओ और फिर "मंगला" की आत्मा ने रज़िया के बाल को पीछे की किया, अब रज़िया की आँखे बिलकुल नीली दिख रही थी।
"मंगला" ने कहा मैं एक राष्ट्रीय स्तर की हाँकी की खिलाडी थी और BSc 3th year की छात्रा भी थी खेल के दौरान मेरी मुलाकात "रजत" से हाँकी के नेशनल कैम्प में हुई, हम एक दूसरे को पसन्द करने लगे थे हमारी ये मुलाक़ात रिश्तों में बदल गयी,हम दोनों का रहन सहन बिलकुल अलग था और हमारे प्रान्त भी अलग थे "रजत" उत्तर प्रदेश से था और मै बेस्ट बंगाल से ,पापा के लाख मना करने के बाद भी हमने शादी कर ली, "रजत" अलाहाबाद में रेलवे में नौकरी करता था  "मंगला" ने अमित से कहा हमारी शादी से कुछ ही महीने पहले "रजत" का तबादला गोरखपुर (उo प्रo)  में हो गया था हम माकन नम्बर A 34/6 में थे हम बहुत खुश थे हमारी पहली रात थी शाम के 7.30 मिनट हुए थे और "रजत" बहार गया हुआ था तभी फोन की घंटी बजी।।.........

                              भाग 9 समाप्त।।
       (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

       दिनाँक 17 जुलाई 2020 समय 3.33 दोपहर

रचना(लेखक)

             अमित सागर(गोरखपुरी)

            

रविवार, 19 जुलाई 2020

जुलाई 19, 2020

हिन्दी कहानी भटकती आत्मा(मंगला की) भाग 8 Hindi story Wandering soul (of Mangala)

                              हिन्दी कहानी

                   भटकती आत्मा(मंगला की)

           Wandering soul (of Mangala)

                                  भाग 8 

ऊपर रहती हूँ कह कर हँसने लगती है अमित ने फिर पूछा क्या मैं तुम्हारे बारे में जान सकता हूँ "मंगला" की ज़िन्दगी में ये पहली बार था जब वो किसी इंसान से बातें कर रही थी और कोई उसके बारे में जानना चाहता था "मंगला"ने कहा पूछो और अमित ने पूछा तुम कौन हो तभी "मंगला"ने कहा 
मेरा पूरा नाम "मंगला चटर्जी" मेरे पिता प्यार से मुझे "मनु" बुलाते थे मेरे घर में माँ, पिता जी और एक 10 साल का छोटा भाई था हम सभी एक दूसरे की जान थे और सभी खुश थे तभी अमित ने पूछा भाई का नाम "रोहन" था उसका नाम "मंगला" ने कहा इतना कहते ही "मंगला"की आँखों से आँसुओं की बरसात होने लगी,वो शायद अपने परिवार को याद कर रही थी "मंगला" ने अमित के हाथों को पकड़ लिया था अमित ने उसे रोने से मना किया और कहा रोते हुए तुम बिलकुल अच्छी नहीं लगती।
अमित ने कहा आगे बताओ तभी "मंगला" ने कहा मुझे अब जाना होगा और जाते वक़्त उसने अमित से कहा तुम बहुत अच्छे हो अगर मुझे समझना है तो कल फिर तुम्हे आना  होगा इतना कह कर वो चली गयी थी अब अमित के दिल में डर नहीं था वो "मंगला" की भटकती आत्मा के बारे में जनाना चाहता था उधर "मंगला" भी शायद अमित से सब कुछ बताना चाहती थी ।
अगली दिन शाम 7.15 मिनट पर जब अमित स्टेडियम से इकबाल के घर लौट रहा था उसे एहसास हो रहा थी की कोई तो  है जो उसके साथ चल रहा था ठण्ड उस दिन कुछ कम थी लेकिन कोहरा कुछ जादा था  अमित ने पीछे मुड़कर देखा पर कोई नज़र नहीं आया उसने अपनी साईकिल की रफ़्तार बढ़ाई तभी उसकी नज़र इक़बाल के घर से 100 मीटर पहले एक छोटे पुलिया पर बैठी लड़की पर पड़ती है उसके बाल खुले हुए थे अमित घबरा जाता है चारो तफर सन्नाटा अमित हिम्मत करके उसके पास पहुँचता और तभी।।.....
 
  भाग 8 समाप्त।।
(आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

      तरीख 14 जुलाई 2020 समय 6.45 शाम

रचना(लेखक)

अमित सागर(गोरखपुरी)


 
           

शनिवार, 18 जुलाई 2020

जुलाई 18, 2020

हिन्दी कहानी भटकती आत्मा(मंगला की) भाग 7 Hindi story wandering soul (of Mangala)


                               हिन्दी कहानी

                     भटकती आत्मा(मंगला की)

             wandering soul (of Mangala)

                                    भाग 7

                    भटकती (आत्मामंगला की) 

तुम थोड़ा और करीब आओ अमित आगे खिसकता जाता है "मंगला" की आत्मा रज़िया के अंदर थी और रज़िया कल की तरह चिराग के सामने बैठ के झूम रही थी उसके बल खुले थे और वो अमित को देखे जा रही थी अमित घबरा रहा था तभी "मंगला" की आत्मा ने भरी आवाज में अमित से कहा, मेरे चेहरे पे जो बल गिर रहे है उसे मेरे कानों के पीछे करो इसे सुनकर इक़बाल की अम्मी आगे आती है तभी "मंगला" तुम दूर हटो नापाक औरत, इतना सुनते ही इक़बाल के अब्बा इत्तर से भीगी हुई रुई को रज़िया के नाक पर लगा के उसे कानो में कलमा पढ़ के जोरों से फूँक मारते है।

तभी "मंगला"की आत्मा जोर से चीखती है और इक़बाल के  अब्बा उससे पूछते है तू कौन है वो जोर से चिल्लाई और

 कहा मै "मंगला" हूँ इक़बाल के अब्बा ने कहा मेरी बेटी को छोड़ के चली जाओ ,"मंगला" कभी नहीं इसके साथ तो मैं पिछले 15 सालों से हूँ कैसे छोड़ दूँ इसे, इक़बाल के अब्बा ने कहा नहीं छोड़ेगी तो इसी चिराग में तुझे जला दूंगा। इतना सुनते ही "मंगला की आत्मा रज़िया के शरीर में छटपटाने लगी उसके आँखों से आँसू बहने लगे, उसने अमित की तरफ देखाकर कहां मुझे मत जलाओ कितनी बार मुझे जलाते रहोगे, अमित ने अपने जेब(पॉकेट) से रुमाल निकली और थोड़ा आगे बढ़ के उसके आशुओं को पोछता है।

 तभी "मंगला" अमित के हाथों को थाम लेती और उसकी  तरफ देखने लगती है उसके आँसू नहीं थमा रहे थे तभी अमित "मंगला" से कहता है क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकता हूँ "मंगला" ने मोठे आवाज में कहां पूछो,अमित ने पूछा तुम रहती कहाँ हो उसने कहा सामने जो नीम का पेड़ दिख रहा है वहीँ उसके।।......

                              भाग 7 समाप्त।।

       (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

भटकती आत्मा 8 www.amitsagar85.com/2020/07/8-hindi-story-wandering-soul-of-mangala.html?m=1

       दिनाँक 13 जुलाई 2020  समय 10.00 सुबह

रचना(लेखक)

                     अमित सागर(गोरखपुरी)



गुरुवार, 16 जुलाई 2020

जुलाई 16, 2020

हिन्दी कहानी भटकती आत्मा (मंगला की) भाग 6 Hindi story wandering soul (of Mangala)

                             हिन्दी कहानी

                  भटकती आत्मा(मंगला की)

           wandering soul (of Mangala)

                                भाग 6

अमित की धड़कने बढ़ रही थी तभी उसने कुछ सुना शायद मंगला ने कुछ कहा था Amit, please come in, how long have I been waiting for you (अमित कृपया अंदर आ जाओ मै तुम्हारा कब से इंतज़ार कर रही हूँ) अमित कमरे की तरफ बढ़ा ही था कि इक़बाल ने उसे रोका और कहा ये रुमाल सिर पर बांध लो फिर अंदर जाना इक़बाल ने अमित के सिर पर अपनी रुमाल बांध दी अमित कमरे के दरवाजे पर पहुंचा ही था कि तभी रज़िया झटके से अपनी गर्दन अमित की तरफ घुमाती है रज़िया के अंदर मंगला की आत्मा प्रवेश कर चुकी थी उसने कहा  Where is it so late (इतनी देर कहाँ हो गई तुम्हे) अमित घबराते हुए बोला, वो मेरी साईकिल ख़राब हो गयी थी 

"मंगला" समझ गयी थी कि अमित झूठ बोल रहा है उसने कहा अंदर आओ,अमित कमरे अंदर प्रवेश करता है और उसके सामने बैठ जाता है कमरे में इक़बाल के अब्बा और अम्मी पहले से मौजूद थे अमित उनसे सलाम करता है तभी "मंगला" की आत्मा अमित को थोड़ा और पास आने को कहती है अमित इक़बाल के अब्बा की तरफ देखता है उसके अब्बा अमित को करीब जाने का इशारा करते है और अमित "मंगला" के थोड़ा करीब जाता है।

तभी "मंगला" अमित से बोलती है तुम्हारा नाम अमित है ना और तुम 18 अक्टूबर 1980 को पैदा हुए थे ,तुम दो साल से मैट्रिक में 3 नम्बर से गणित में फेल हो रहे हो,इतना सुनते ही अमित के चेहरे पर पसीने की बुँदे उभर चुकी थी अमित उठकर जाने की कोशिश करता है अभी "मंगला" अमित से कहती है तुम्हे मैट्रिक पास होना है कि नहीं,अमित को मालूम था कि अगर वो इस साल फेल होता है तो उसकी पढ़ाई बंद हो जायेगी।उसकी आँखों में आँशु भर आये थे और उसने अपनी नज़रों से ही कह दिया मुझे  पास होना है फिर डर कर वहीं पर बैठ गया,तभी "मंगला" ने अमित से कहा।।.....

                              भाग 6 समाप्त।।

          (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

भटकती आत्मा 7 www.amitsagar85.com/2020/07/7-hindi-story-wandering-soul-of-mangala.html?m=1

            दिनाँक  11 जुलाई 2020  समय 3.00 शाम

  रचना(लेखक)

              अमित सागर(गोरखपुरी)

बुधवार, 15 जुलाई 2020

जुलाई 15, 2020

हिंदी कहानी भटकती आत्मा(मंगला की) भाग 5 Wandering soul (of Mangala)

                            हिन्दी कहानी

                 भटकती आत्मा(मंगला की)

           Wandering soul (of Mangala)

                                  भाग 5

मै कल फिर तुम्हारा इंतज़ार करुँगी इतना कह के वो चली गयी थी अमित जोर से चिलाय और चारो तरफ देखा, पर कोई नहीं दिखा,जो कुत्ते भौंक रहे थे वो भी आज चुके थे अमित साईकिल को पकडे हुए पैदल अपने घर पहुँचता है वो घबराया हुआ था घर पहुचते ही माँ ने पूछा कहाँ इतनी देर हो गयी अमित ने कहा कुछ नहीं माँ थोड़ा काम था उसने  माँ से खाना माँगा और खाने के बाद अपने कमरे में चला गया  वो सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन उसे सिर्फ कल की चिंता थी यही सोचते सोचते उसकी आँख लग चुकी थी और वो सो गया था।
 दूसरे दिन शाम को 4 बजके 30 मिनट पर वो स्टेडियम पहुँचता था उस दिन भी ठण्ड  बहुत जादा थी पर कोहरा थोड़ा कम था अमित ने स्टेडियम के चारों तरफ नजर घुमाई  पर इक़बाल उसे कही नज़र नहीं आ रहा था अमित ने अपने कोच  से पूछा,सर इक़बाल कहाँ है सर ने कहा इक़बाल तो आज आया ही नहीं ये सुनते ही अमित  परेशान होने लगता है वो दौड़ के साईकिल स्टैंड के पास पहुंचता है और अपनी साईकिल  निकल कर इक़बाल के घर की ओर निकल पड़ता है शाम के 6.00 बज चुके थे अमित तेज़ी से साईकिल चला रहा था इक़बाल के घर से 500 मीटर पहले ही एक रेलवे क्रॉसिंग थी जोकि उस समय बंद थी अमित को घबराहट हो रही थी उस ठण्ड में भी उसके पसीने छूट रहे थे उसे पिछली रात की "मंगला" की बातें याद आ रही थी
अमित सोच रहा था कि क्या सच में मंगला उसका इन्तेज़ार कर रही है।

लगभग 40 मिनट बाद रेलवे क्रासिंग खुलता है क्रासिंग पर बहुत जाम लगा हुआ था किसी तरह अमित उस भीड़ से बहार निकलता है और इक़बाल के घर की तरफ बढ़ता है इक़बाल के घर उस दिन थोड़ी भीड थी उसके कमरे से धुआं
निकल रहा था तभी भीड़ को चीरती हुई अमित को एक आवाज सुनाई देती है शायद वो "मंगला" की आवाज थी इतना सुनते ही ।।.......
    भाग 5 समाप्त।।
  (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

दिनाँक 15 जुलाई 2020 समय 2.15 दोपहर


 

रचना(लेखक)

                      अमित सागर(गोरखपुरी)



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