हिन्दी कहानी
भटकती आत्मा(मंगला की)
Wandering soul (of Mangala)
भाग 2
दोनों ने दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन दरवाजा अन्दर से बंद था इक़बाल ने दरवाजे का कुंडा खड़खडाय कुछ देर बाद इक़बाल के अब्बा ने दरवाजा खोला कमरा धुएं से भरा हुआ था शायद इक़बाल के अब्बा ने अन्दर लोहबान सुलगाया हुआ था उसी का धुआं कमरे में फैला हुआ था तभी अमित की नज़र कमरे के अन्दर पड़ती है और उसे धुएं के बीच एक लड़की बैठी हुई नज़र आती है ये लड़की कौंन थी धुएं की वजह से पता नहीं चल रहा था उस लड़की के बाल खुले हुए थे और वो एक चिराग के सामने बैठ के झूम रही थी अमित ने इक़बाल से पूछा ये कौन है इक़बाल ने कहा यार ये छोटी बहन रज़िया है जिसे तू प्यार से रजो कहता है।
अमित ने कहा अच्छा, धुंध से कुछ दिख नहीं रहा था इक़बाल ने कहा हाँ मुझे भी कुछ ठीक से नहीं दिख रहा है तभी अन्दर से चिल्लाने की आवाज सुनाई देने लगी,ये इक़बाल के अब्बा की आवाज थी और वो रज़िया से कुछ पूछ रहे थे और रज़िया जोर जोर से चीख और चिल्ला रही थी अन्दर से मोगरे की खुशबु आ रही थी शायद इक़बाल के अब्बा ने अगरबत्ती सुलगाई थी चारो तरफ मोगरे की खुशबु फैली हुई थी अंदर क्या हो रहा था उन्हें कुछ पता नहीं चल रहा था और वो दोनों थोड़ा घबरा रहे थे
शाम के 7.15 मिनट का समय हो चूका था ठण्ड बढ़ चुकी थी और उस दिन कोहरा कुछ ज्यादा ही था अमित को घर भी जाना था पर उसे थोड़ी देर हो गयी थी अमित ने इक़बाल से कहा मुझे अब चलना चाहिये रात होने वाली है इक़बाल ने कहा हाँ ठीक है चलो मै रोड तक तुम्हारे साथ चलता हूँ हाथ में हैंडबाल पकडे अमित ने कहा चलो फिर चलते है इतना कहते ही कमरे का दरवाजा अपने आप खुल जाता है कमरे का धुआं दोनों के चहरे को छूकर बहार निकल जाती है और कमरे से दो चमकती हुई आँखे अमित को देख रही थी।
भाग 2 समाप्त।।
(आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)
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