Hello friends my name is Amit Kumar Sagar and I am a government employee, with this platform, I will tell my thoughts, my poems, stories, shayari, jokes, articles, as well as my hobbies.

Breaking

Translate

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

अक्तूबर 29, 2020

हिंदी कविता आशिंयाँ | कविता प्यार का आशिंयाँ | ख्वाबों का आशिंयाँ कविता | love poem ashiyana |

                                    आशिंयाँ

थोडा प्यार थोड़ी तकरार चल बनाएं ऐसा आशियाँ।
खुला आसमान हो खुशियों का सितारों का हो आना जाना।
तेरी खुशबू से मैहका करे घर का कोना कोना।
चल हाथ थाम कहीं दूर चलें बनाएं यादों का आशियाँ।।
ख्वाहिशों की दीवार हो अरमानो के रंग।
उमंगों के ब्रश से आ रंग दे सारा घर।
खुशियों से सजा हो घर का जर्रा जर्रा।
 ऐसा बना ले हम मुहब्बत का आशियाँ।।
तेरा एहसास हो मेरे अरमानों का बाजार हो।
उम्मीदों की झालर से फैली हो हर तरफ रोशनी।
सिमट कर बैठी रहे हर वक़्त तू मेरी बाहों में।
चल ऐसा बनाएं अपने उम्मिन्दो का आशिंयाँ।।
झरोखे पर सिर्फ मेरा ही इंतेज़र हो।
घर पहुंचने की जल्दी मुझे हर बार हो।
तेरे चाये की प्याली में गुड़ की वही मिठास हो।
चल बना लें फिर इंतेज़र का वही आशिंयाँ।।
हर मुलाकात की तस्वीर आ दीवारों पर लगा दे।
तेरे उपहार मेरे उपहार वहीं कोने में सजा दें।
ये लाज़मी तो नही की मुलाक़ात न हो इस जनम में तुझसे।
जहाँ अकसर मुलाकात हो हर पहर तुमसे।
 ऐसा बना लें हम दोनों मिलकर इंतेज़र का आशिंयाँ।।

             दिनाँक 28 अक्टूबर 2020 समय 11.00 रात
   
                                             रचना(लेखक)
                                     अमित सागर(गोरखपुरी)


सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

अक्तूबर 26, 2020

हिंदी कविता कॉलेज टाइम | स्कूल की यादें | कालेज के यादगार दिन हिंदी कविता | poem college life |

                                 कविता  

                             कॉलेज टाइम

याद आतें है हमें जब भी कॉलेज वो दिन।
चेहरे पर हंसी बिखर सी जाती है।
सोचता हूँ खाली पल में उन पलों को जब भी ।
नालायक दोस्त बहुत याद आते हैं।।
कॉंफिडेंट लेबल तो हमारे गजब के थे।
हर सवाल पर उठ खड़े हो जाते थे।
चाहे पता ना होता सवाल का उत्तर ।
फिर भी झट से हाथ उठातें थे।।
बायोलॉजी क्लास के क्या कहने थे।
केमिस्ट्री में तो हम सो ही जाते थे।
लैब जाकर परख नाली से लड़कियों को देख करतें थे।
डर लगता था गणित की क्लास से ।
दीवार कूद कर भाग जातें थे।।
खाली पीरियड में कागज की वो रॉकेट।
Love you लिखकर जब हम उड़ाते थे।
टीचर को अगर मिल जाये कभी तो।
भरी क्लास में वो मुर्गा हमें बनते थे।
कुकुडुकु जरा जोर से बोलो कहकर वो चिलातें थे।।
इंटरवल में वो सिगरेट के सुट्टे  बाथरूम जाके लगाते थे।
पता ना चले किसी को  तो बबलगम हमेशा चबातेँ थे।
एक ही लड़की को हम सारे दोस्त बनना चाहतें थे।
कौन उससे आज बात करेगा बस यही शर्त लगातें थे।।

        कालेज के क्या दिन थे वो अब बहुत याद आतें हैं।।...

            दिनाँक  25 अक्टूबर 2020 समय  10.00 रात
  
                                          रचना(लेखक)
                                  अमित सागर(गोरखपुरी)

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

अक्तूबर 23, 2020

महिला उत्पीड़न हिंदी कविता | महिलाओं पर हिंसा की कविता | नारी शोषण पर कविता |Female harassment Hindi poem

                                          कवित     

                                   महिला उत्पीड़न  

महिलाओं की इतनी बुरी हालत क्यों किये जा रहे हो।
किसी को मार रहे हो तो किसी को जला रहे हो।
क्यूँ खेल रहे हो इनसे इतने ख़ौपनाक खेल ।
किसी को कोठरी में बंद तो किसी को लटका रहे हो।।
हैवानियत की तो हद हो गयी क्यूँ इन्हें दबोचे जा रहे हो।।
बलात्कार जैसे घिनौने काम क्यूँ  तुम किये जा रहे हो।
क्या शर्म सी नही आती तुम्हे क्यूँ इन्हें पिटे जा रहे हो।
बिना मतलब क्यूँ इन्हें ज़मीन पर उन्ही घसीटे जा रहे हो।।
कदर नही कर सकते इनकी तो,इज़्ज़त क्यूँ उतार रहे हो।
घुटन भारी ज़िन्दगी में इन्हें क्यूँ धकेले जा रहे हो। 
प्यार करना जुर्म है तो खुद क्यूँ किये जा रहे हो।
अपनी गलतियां क्यूँ तुम इन पर थोपे जा रहे हो।।
यकीन नही होता तुम ऐसा क्यूँ  हुए जा रहे हो।
खुले आम महिलाओं की कत्लेआम किये जा रहे हो।
वैश्यावृति तुम्हे पसन्द नही फिर भी इन्हें धकेले जा रहे हो।
इनसे इनकी मर्ज़ी तो पूछो क्यूँ मनमर्ज़ी किये जा रहे हो।।
हक़ नही क्या इन्हें जीने का क्यूँ गला घोंट जा रहे हो।
क्यूँ छीन रहे हो खुशियां इनकी क्यूँ इन्हें तड़पा रहे हो।
उड़ने दो इन्हें खुले गगन में क्यूँ बन्दी इन्हें बना रहे हो।
महिलाओं की इतनी बुरी हालत तुम क्यूँ किये जा रहे हो।।

                      क्यूँ किये जा रहे हो।।.......

           दिनाँक 23 अक्टूबर 2020  समय 11 .00 रात
                                       रचना(लेखक)
                              अमित सागर(गोरखपुरी)

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

अक्तूबर 20, 2020

गलतफैमियाँ हिंदी कविता | लव हिंदी कविता | प्यार पर कवित | Poem on hindi couple | गुस्ताखियाँ कविता

                                हिंदी कविता 

                                गलतफैमियाँ

आ फिर से गुस्ताखियों का दौर शुरू करें ।
कुछ तू कर गुस्ताखियाँ कुछ मैं भी कर लूं।
लड़ाई झगड़े के बिना प्यार कहाँ होता हैं
कुछ तू भी कर ले कुछ मैं भी कर लूं।।
आ चल फिर समंदर के उस पार बाहों में डाले हाथ।
कुछ तू कर ले बात कुछ मैं भी कर लूं बात।
खामोशियों की वजह हम दोनों ही तो हैं।
कुछ तू कर ले कुछ मैं भी कर लूं इकरार।
गलतफैमियों का जो बवंडर हमने समेट रखा है।
आ एक फूंक मारकर उसे उड़ा दें आज हम।
चल खोल दे आज दरवाजें प्यार के हम दोनो।
थोड़ी दूर तक तू चल,कुछ दूर तक मैं भी चलूं।।
चल बना के रिश्तों की चाशनी प्यार की मिठास डल दें।
कुछ तू भी चख ले इसे प्यार से कुछ मैं भी चख लूं ।
चल बैठ के साथ कुछ गुफ़्तगू करतें हैं हम दोनों।
कुछ मीठी जुबान तू बोल दे कुछ मैं बोल दूँ।।
इल्तेज़ा हो अगर तो मुलाकात फिर एक बार कर लें।
कुछ गिला मुझसे तु कर,शिकवे मैं भी हज़ार कर लूं।
चल छोड़ दें सारी रंजिशें जो गुस्ताखियों से है।
कुछ गलती तू मान ले कुछ मैं मान लूं।।.....

          दिनाँक 19 अक्टूबर 2020 समय 10.00 रात
                                    रचना(लेखक)
                          अमित सागर(गोरखपुरी)


रविवार, 18 अक्तूबर 2020

अक्तूबर 18, 2020

कहानी सुनिका अंतिम भाग

                                        सुनिका


(अभी तक इस कहानी के भाग एक मे आपने पढ़ा कि किस तरह से लोगों ने सुनीता के ना सुन पाने के कारण उसका नाम सुनिका रख देतें है और
दूसरे भाग में अपने पढ़ा कि
शाम वक़्त था तकरीबन 6.00 बज रहे थे भरत काम करके घर लौटा ही थी कि।।...............)

                                        "अब आगे"

तभी अंजू,भरत के पास घबराते हुए पहुंचती है उसके माथे पर पसीने की बूंदे उभर आई थीं भरत हैरान होकर,क्या हुआ तुम्हे इतनी घबराई हुई क्यूँ हो सब ठीक तो है ना,अंजू ने अपने हाथों से कमरे के दरवाजे की तरफ इशारा किया,भरत बिना कुछ पूछे ही कमरे की तरफ भागता है और दरवाजे को खोलने की कोशिश करता है पर दरवाजा अन्दर से बंद था भरत अपने हाथों से दरवाजा थपथपा कर सुनिका को आवाज लगाने लगता है पर अंदर से कोई आवाज नही सुनाई दी,अंजू रोने लगती है और भरत भी परेशान होने लगता था अंजू के रोने की आवाज को सुनकर उनके पड़ोस में रहने वाला 30 साल एक युवक ताहिर अंसारी दौड़कर उनके पास पहुँचता है।
ताहिर से लिपटकर अंजू रोने लगती है और रोते हुए वो ताहिर से बार बार एक ही बात बोल रही थी कि सुनिका अंदर है ताहिर और भरत दरवाजे को तोड़ने लगतें है 5 मिनट बाद जब दरवाजा टूटता है तो नज़ारा ही कुछ और था अंजू भागती हुई कमरे के अंदर जाती है तो वो कांपने लगती है और वहीं एक कोने में सिमटकर ज़मीन पर बैठ जाती है भरत ना तो कुछ बोल रहा था और नही ही उसके आंशु निकल रहे थे चौखट पर बैठकर वो सिर्फ कमरे के अंदर देख रहा था ताहिर को बड़ी हैरानी होती है कि कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था तो सुनिका गयी कहाँ ताहिर कमरे के चारो तरफ नज़र घूमता है तभी उसकी नज़र खिड़की के ऊपर पड़ती है ताहिर खिड़की के करीब जाता है तो वो चोंक जाता है खिड़की में फंसी सुनिका की चुन्नी और बिखरा हुआ खून देखकर वो घबरा सा जाता हैं वो दौड़ता हुआ खिड़की के पीछे की तरफ जाता हैं पर उसे कोई फायदा नही होता है ना तो वहां सुनिका मिली और ना कोई सुबूत मिला,ताहिर भरत से कहता है कि सुनिका का कुछ पता नही चल रह है हमें पुलिस स्टेशन मे एफ़आईआर दर्ज करानी चाहिए,लेकिन भरत और अंजू इस हालत में नही थे कि वो कुछ कर सकें,ताहिर ने एक अच्छे इंशान का फर्ज निभाया,उसे सुनिका की फिक्र थी इसी लिए उसने बिना भरत को बताए ही पुलिस स्टेशन में जाके एफआईआर दर्ज करा दी।
वक़्त बीतता चल जा रहा था पर सुनिका का कुछ पता नही चल रहा था पुलिस भी हार चुकी थी और ताहिर भी थक चुका था भरत और अंजू की हालत भी दिन ब दिन बिगड़ रही थी भरत हर रोज चौखट पर बैठकर सुनिका का इंतेजार करता था और अंजू के आँशु कभी थामें ही नही।
तारीख 22 दिसम्बर 2019 सुबह के 10 बजे थे जब ताहिर अपनी दुकान का शटर गिराकर तेज़ी के साथ अपनी साइकिल चलता हुआ भरत के घर पहुँचता है वो अपनी साइकिल को बिना स्टैंड पर लगये ही दीवार के साथ खड़ाकर देता है और भागता हुआ भरत के पास जाता है भरत की हालत को देखकर लग रहा थी कि जैसे वो कितना बुढा हो गया हो वो दिन रात सुनिका के ही बारे में सोचता रहता था अन्दर पहुंचकर ताहिर भरत को बाहर ले आता है भरत जब बाहर निकलता है।
 तो उसके सामने नीले रंग की कोट पहने एक 5 फिट 6 इंच की लड़की जिसके कोट की जेब पर इंडिया बैच लगा हुआ था और चेहरे पर चोट का निशान था वो उसके सामने खड़ी थी उसके आंखों में आँशु भर आये थे पर भरत उस लड़की को पहचान नही पा रहा था वो ताहिर से पूछता है कौन है ये लड़की, तभी ताहिर ने भरत से कहा,फिर से देखो उसे,भरत उसे गौर से देखे जा रहा था और उसके आंखों से आँशु बहते जा रहे थे लम्हा जैसे थम सा गया हो भरत अपने कमीज के अस्तीन से अपने आँशु पोछ कर इशारों में पूछता है कहां चली गयी थी हमें छोड़कर इतना पूछते ही सुनिका भरत के गले लग जाती हैं और चिपक कर रोने लगती है भरत भी बहुत देर तक सुनिका को अपने सीने से लगाकर रोता रहा।
तभी अचानक से सुनिका को अपनी माँ का ख्याल आता है और वो कमरे की तरफ भागती है पर कमरें में उसकी माँ अंजू कहीं नज़र नही आती है वो मां को चारों तरफ ढूंढती है तभी उसकी नज़र दीवार पर पड़ती हैं जहाँ सुनिका और उसकी माँ की तस्वीर एक साथ लगी होती हैं सुनिका जोर से बाबा बुलाती है और वहीं दीवार से सटकर नीचे बैठ जाती हैं उसे यकीन नही था कि सिर्फ 6 सालों में इतना कुछ बदल जायेगा कि सोचने के लिए केवल यादें रह जाएगी और कुछ नही।
सुनिका का एक सपना था कि वो एथेलेटिक्स में इंडिया के लिए गोल्ड जीते इसी लिए उनसे अपने सपनो के लिए अपना घर छोड़ दिया और स्पोर्ट होस्टल में दाखिला ले लिया और बीते 6 सालों में सुनिका ने 400 और 800 मीटर की रेस में अनगिनत मेडल्स जीते और देश का नाम किया।

पर वो भरत और अंजू की तकलीफें,दर्द,इंतेज़र,विश्वास
त्याग,उनका प्यार और बेटी के लिए उनका लम्बा इंतेज़र वो कभी नही जीत सकी, अंजू ने सुनिका के इंतेज़र में दो साल पहले ही दम तोड़ दिया और भरत की भी हालत कुछ अंजू जैसी हो चली हैं।

सुनिका को खेल से ही सरकारी नैकरी मिली और सरकार द्वारा ही सरकारी आवास भी जिसमें अब भरत और सुनिका रहतें हैं।।....

                             कहानी समाप्त।।

(इस कहानी से हमने सीखा की अपने सपनों से ज़्यादा ज़रूरी उनके सपने हैं जो हमें इस दुनियां में लेकर आतें है।
जो सिर्फ हमारे लिए सपनें देखतें है और ताहिर जैसे नेक दिल मुसलमान भी होते हैं इस दुनिया में)


          
           दिनाँक 16 अक्टूबर 2020  समय 2.45 दोपहर
                                          रचना(लेखक)
                                 अमित सागर(गोरखपुरी)



गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

अक्तूबर 15, 2020

Sunika kahani in Hindi bhag 2 | Hindi Story on sunika | कहानी खिलाड़ी | Story of sunika

                                 हिन्दी कहानी

                              सुनिका sunika

                                      भाग 2

(अभी तक आपने इस कहानी में पढ़ा कि किस तरह सुनीता लकड़ा का नाम लोगो ने सुनिका रख दिया)

लेकिन लोगों को क्या पता ये.............  
               
                                   
                                        "अब आगे"

नाम ही इसकी पहचान बनेगी,वक़्त तेज़ी से बदल रहा था
और इस बदलते वक्त ने भरत और अंजू की ज़िन्दगी तो बदली ही थी साथ ही साथ सुनिका की ज़िन्दगी को भी एक नया मुकाम दिया,सुनिका 14 साल की हो चुकी थी।
 लेकिन जब सुनिका 6 साल की थी तभी भरत और अंजू ने सोच लिया था कि हमने जो तकलीफ और ज़िल्लत की ज़िन्दगी गुजार दी,ऐसी ज़िन्दगी हम सुनिका को नही जीने देंगे,हम उसे अच्छी तालीम और एक बेहतर इंशान बनाएंगे।
बस इसी ख्वाहिश में भरत और अंजू अपना सब कुछ बेचकर शहर की तरफ रुख कर लेतें हैं पर उन्हें क्या पता था जो सपना वो लेकर आये थे वो कभी पूरा हो पायेगा की नही उन्हें ये भी खबर नही थी बस एक उम्मीद की किरण थी जिसे उन्होंने कभी बुझने नही दिया और इस दौरान उन्हें हर ऐसी मुश्किलों से गुज़रना पड़ा जिसका खयाल हमारे जहन में आता ही नही है और इतना सब कुछ सहने की शक्ति सिर्फ उन्हें उनकी बेटी से मिली थी सुनिका सुन तो नही सकती थी लेकिन उसने कभी भी भरत और अंजू को निराश नही किया हमेशा कक्षा के प्रथम स्थान हासिल किया भरत ने सुनिका को शुरुआत से ही अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया था भरत और अंजू ने कभी भी सुनिका को किसी चीज की तकलीफ तक नही होने दी थी।
सुनिका 14  साल की हो चुकी थी और उसी साल सुनिका ने दसवीं की परीक्ष दी थी उसके माता पिता का सपना था की सुनिका हमेशा की तरह इस बार भी दसवीं की परीक्षा में प्रथम आये पर ये सुनिका से बेहतर कौन जान सकता था वक़्त क्या था वो तो बीत रहा था लेकिन बीते वक़्त के साथ सुनिका के चेहरे पर परेशानी साफ नजर आ रही थी भरत और अंजू दिन रात सुनिका के लिए ऊपर वाले से दुआ करते थे ताकी सुनिका अच्छे नम्बरों से पास हो जाये।
भरत जब अपनी 6 साल की बेटी सुनिका को लेकर सिर्फ पुरानी यादें को समेटें हुए शहर आया था तो उसने कभी सोचा नही था कि इस तरह से ज़िन्दगी जीनी पड़ेगी भरत यही सब बैठे सोच रहा थी कि तभी अंजू उसके बगल में आकर बैठ जाती है भरत बिना पलकें झपके ही सामने की तरफ देख रहा था तकरीबन 15 मिनट हो चुके थे तभी अंजू उसके कंधे को हिलते हुए कहती हैं क्या सोच रहे हो,भरत ने कहा नही कुछ नही बस ऐसे ही,अंजू ज़िद करने लगती है और कहती चलो बताओ क्या सोच रहे थे ये कहकर अंजू अपना हाथ भरत के बांहों में डाल देती हैं भरत बिना अंजू की तरफ देखे ही उसके सारे सवालों का जबाब दे  रहा था तभी अंजू ने कहा क्यूँ परेशान हो सुनिका अच्छे नम्बरों से पास हो जाएगी और हमने कोई गलती नही की अपना घर और गांव छोड़कर तुम परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा।

20 जून 2013 ये एक ऐसी तारीख थी जिसने भरत और अंजू को झकझोर कर रख दिया था और इसी तरिख ने सुनिका की जिंदगी को एक नया मोड़ दे दिया,जिस सोच की वजह से सुनिका के माथे पर चिंता की सिकन रहती थी
वो यही तारीख थी।
शाम वक़्त था तकरीबन 6.00 बज रहे थे भरत काम करके घर लौटा ही थी कि।।...............

                                        भाग 2 समाप्त

                (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)


                  दिनाँक 13 अक्टूबर 2020  समय  10.00 रात
                                                रचना(लेखक)    
                                        अमित सागर(गोरखपुरी)




सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

अक्तूबर 12, 2020

सुनिका हिंदी कहानी भाग 1 | खिलाड़ी पर कहानी | हिंदी कहानी सुनिका |Sunika hindi story | Story on the player | Hindi story sunika |

                                हिंदी कहानी

                            सुनिका Sunika

                                    भाग 1

चारो तरफ  भीड़ उसमे से गूंजता हुआ एक नाम एक चीख और चारो तरफ अचानक सन्नाटा।

(ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है इसका किसी जाति, धर्म,प्रान्त,समुदाय,क्षेत्र से कोई वास्ता नही है अगर ऐसा लगता है तो ये सिर्फ महज इतेफाक है उसके लिए मुझे छमा करे)

स्थान                      कुनकुरी
प्रदेश                       छत्तीसगढ़
दिनाँक                    21 दिसम्बर 1998
दिन                        सोमवार
समय                      दोपहर के 2 बजे
मौसम                     चारो तरफ कोहरा और ठंड
मुख्य पात्र                सुनीता
सुनीता की मां           मंजू 
सुनीता के पिता         भरत लकड़ा(एक किसान)

 एक पुरानी साइकिल जिसकी हालत बिल्कुल खराब थी उस पर सवार एक व्यक्ति तेज़ी से चला जा रहा था अचानक से वो रोड के किनारे अपनी साइकिल को ज़मीन पर लिटाकर जोर से भरत भरत की आवाज लगाने लगा, भरत अपने खेत की गुड़ाई करने में मशरूफ था तभी भरत की नज़र उस व्यक्ति पर पड़ती है भरत उसकी तरफ देखकर बोलता है अरे क्यूँ चिल्ला रहा है क्या हुआ,उस व्यक्ति ने भरत से कहा तेरी पत्नी अंजू की तबियत खराब हो गयी है इतना सुनते ही भरत के पावों तले ज़मीन खिसक जाती है वो भागता हुआ अपने घर की तरफ चल देता है तभी पीछे से उस व्यक्ति ने भरत से कहा अपनी साइकिल तो लेता जा लेकिन भरत को सिर्फ अपनी पत्नी अंजू नज़र आ रही थी वो नंगे पैर चार किलोमीटर दौड़कर अपने घर पहुँचता है 
उसके परों से खून निकलने लगे थे उस दिन ठंड कुछ कम थी लेकिन कोहरा थोड़ा जादा ही पड़ रहा था,भरत अपने घर पहुँचता है तो वो अंजू को देख खुशी से रोने लगता हैं अंजू ने एक बड़ी ही प्यारी सी बेटी को जन्म दिया था भरत के हाथ कांप रहे थे और वो बार बार अंजू को देख रहा था तभी अंजू ने भरत को अपने पास बुलाया और उसके गोद मे उसकी बेटी को दे दिया भरत अपने कांपते हुए हाथों से अपनी बेटी को गोद में उठा लेता है और खुद अंजू के कंधे पर अपना सिर रखकर रोने लगता है अंजू की भी आंखे भर आती है तभी अंजू ने भरत से कहा लाओ इसे  मुझे दे दो और भरत  अपने कांपते हुए हाथों से अपनी बेटी को अंजू के गोद मे दे देता है।
समय बीतता चला जा रहा था पर गरीबी भरत और अंजू का पूछा नही छोड़ रही थी ठंड से फसलें भी खराब हो चुकी थी अब तो भरत और अंजू की बेटी भी चार महीने की हो चुकी थी और बीते 4 महीनों में उसने चलना और दौड़ना भी शुरू कर दिया था लेकिन इन सबके बीच एक चीज चौकाने वाली ये थी की भरत और अंजू की बेटी का सिर्फ 4 महीनों में दौड़ना और उसका कानो से ना सुनना ये दोनों चीजें अजीब थी।
लेकिन बोलने में उसका कोई जबाब नही था और हैं एक चीज तो मैंने आप को ही बताई नही,कि अंजू की बेटी का नाम,दोनों ने बड़े प्यार से  नाम "सुनीता" रखा था लेकिन उसके ना सुन पाने के कारण लोगो ने उसका नाम "सुनीता लकड़ा" से बदलकर "सुनिका" रख दिया
लेकिन लोगों को क्या पता ये ।...........

                                भाग 1 समाप्त

           (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ) 


               दिनाँक 10 अक्टूबर 2020  समय 9.00 शाम
                                                                                     रचना(लेखक)
                                                                          अमित सागर(गोरखपुरी)


शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

अक्तूबर 09, 2020

हिन्दी कविता मजदूर | मजदूरों पर कविता | Indian Labor Hindi poem | मेहनत काश मजदूर पर कविता | श्रम पर कविता | Labor day on hindi poem |

                                  हिंदी कविता

                                मजदूर Labor

फुर्सत ना मिली ताउम्र इन हाथों को मेरे।
कहीं ईंट कहीं पत्थर कहीं अनाजों के भंडार मिलें।
मजदूरी मेरे किस्मत में नही थी मगर।
फिर भी मजदूरों जैसे मुझे काम मिलें।।
पिता की थी ये विराष्त तो संभालनी पड़ेगी।
कम पैसे में भी जादा मेहनत करनी पड़ेगी।
कौन समझेगा परेशानी हमारी,ये दिल से पूछिये।
कब तक हमें ऐसे ही ज़िन्दगी बितानी पड़ेगी।।
हाथों की हथेलियां,पीठ के छाले,माथे की सिकन
तपता बदन इन सबको भुलाना पड़ेगा।
दो वक़त की रोटी के खातिर तो जाना पड़ेगा।
कम पैसों में भी जादा वजन उठाने पड़ेगा।
मजदूर हूँ तो मजदूरी से ही कुछ कमाना पड़ेगा।
थककर बिछौने पर करवट बदलनी पड़ेगी।
नींद आती नही मुझे फिर भी दिखानी पड़ेगी।
सुकून मिल जाए मुझे कभी इस ज़िन्दगी से।
खुदा से दुआ और दरख्वास्त लगानी पड़ेगी।।
बतौर मजदूर अब ज़िन्दगी कट रही है मेरी।
शिक्षित हूँ  फिर भी मजदूरी चल रही है मेरी।
चन्द रूपये देकर जैसे लोग खरीद लेते है हमें।
अब तो जिल्लत भारी जिंदगी कट रही है मेरी।।

पिता की ये सौगात है तो मजदूरी चल रही हैं मेरी।।

             दिनाँक 09 अक्टूबर 2020  समय  9.00 शाम
                                          रचना(लेखक)
                                  अमित सागर(गोरखपुरी)


मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

अक्तूबर 06, 2020

हिंदी कविता बेटी | Poem on daughter | बेटी पर कविता | poem on daughter | बेटी पर अत्याचार कविता | बेटी पर शानदार कविता |

                               हिंदी कविता

                           बेटी daughter

लड़खड़ाकर इन्हें भी ज़मी पर चलने दो।
थोड़ा इन्हें भी तो ज़िन्दगी जी लेने दो।
क्या हुआ जो बेटी ने घर में जन्म लिया है । 
हक़ है उसे भी जीने का,तो उसे जी लेने दो।।
क्या फर्क पड़ता है बेटी और बेटे से।
क्या काम है जो बेटी कर सकती नहीं।
क्या चाँद पर बेटी कभी गयी नही।
क्या हवाओं में तेज कभी वो उड़ी नही।।
कब तक मरोगे इन्हें इन हाथों से। 
आखिर कब तक ना इन्हें अपनाओगे।
बेटी तो है खुदा एक नायाब तोफा।
आखिर कब तक तुम इन्हें नकारोगे।।
इनसे इनकी खुशियां ना छीनो।
इन्हें भी इस दुनियां में आने दो।
इनका भी तो है ये खुला आसमां।
खुली हवा में इन्हें भी जी लेने दो।।
मां की लाडली,पिता की गुड़िया।
देश की शान इन्हें भी बन जाने दो।
बक्स दो इन्हें भी ज़िन्दगी इनकी।
अब इन्हें भी इस दुनियां में जी लेने दो।।

लड़खड़ाकर इन्हें भी ज़मी पर चलने दो।
थोड़ा इन्हें भी तो ज़िन्दगी जी लेने दो।।.......


       दिनाँक 06 अक्टूबर 2020  समय   10.00 रात
                                          रचना(लेखक)
                                 अमित सागर(गोरखपुरी)

Most Recent post

लेखक !! Poem on Writer by sagar gorakhpuri !! लेखक पर कविता !! Poem on behalf of All Writer !! लेखक हिंदी कविता !! लेखक पर सबसे अच्छी कविता !!

     लेखक मैं जन्मा जिस तरह उस तरह मरना नही चाहता हूँ। मैं लेखक हूँ सियाही से खुद की उम्र लिखना चाहता हूं। खुद के ख्वाहिशों के लिए अब वक़्त न...