आशिंयाँ
थोडा प्यार थोड़ी तकरार चल बनाएं ऐसा आशियाँ।खुला आसमान हो खुशियों का सितारों का हो आना जाना।
तेरी खुशबू से मैहका करे घर का कोना कोना।
चल हाथ थाम कहीं दूर चलें बनाएं यादों का आशियाँ।।
ख्वाहिशों की दीवार हो अरमानो के रंग।
उमंगों के ब्रश से आ रंग दे सारा घर।
खुशियों से सजा हो घर का जर्रा जर्रा।
ऐसा बना ले हम मुहब्बत का आशियाँ।।
तेरा एहसास हो मेरे अरमानों का बाजार हो।
उम्मीदों की झालर से फैली हो हर तरफ रोशनी।
सिमट कर बैठी रहे हर वक़्त तू मेरी बाहों में।
चल ऐसा बनाएं अपने उम्मिन्दो का आशिंयाँ।।
झरोखे पर सिर्फ मेरा ही इंतेज़र हो।
घर पहुंचने की जल्दी मुझे हर बार हो।
तेरे चाये की प्याली में गुड़ की वही मिठास हो।
चल बना लें फिर इंतेज़र का वही आशिंयाँ।।
हर मुलाकात की तस्वीर आ दीवारों पर लगा दे।
तेरे उपहार मेरे उपहार वहीं कोने में सजा दें।
ये लाज़मी तो नही की मुलाक़ात न हो इस जनम में तुझसे।
जहाँ अकसर मुलाकात हो हर पहर तुमसे।
ऐसा बना लें हम दोनों मिलकर इंतेज़र का आशिंयाँ।।
दिनाँक 28 अक्टूबर 2020 समय 11.00 रात
रचना(लेखक)
अमित सागर(गोरखपुरी)
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