हिंदी कविता
गलतफैमियाँ
आ फिर से गुस्ताखियों का दौर शुरू करें ।कुछ तू कर गुस्ताखियाँ कुछ मैं भी कर लूं।
लड़ाई झगड़े के बिना प्यार कहाँ होता हैं
कुछ तू भी कर ले कुछ मैं भी कर लूं।।
आ चल फिर समंदर के उस पार बाहों में डाले हाथ।
कुछ तू कर ले बात कुछ मैं भी कर लूं बात।
खामोशियों की वजह हम दोनों ही तो हैं।
कुछ तू कर ले कुछ मैं भी कर लूं इकरार।
गलतफैमियों का जो बवंडर हमने समेट रखा है।
आ एक फूंक मारकर उसे उड़ा दें आज हम।
चल खोल दे आज दरवाजें प्यार के हम दोनो।
थोड़ी दूर तक तू चल,कुछ दूर तक मैं भी चलूं।।
चल बना के रिश्तों की चाशनी प्यार की मिठास डल दें।
कुछ तू भी चख ले इसे प्यार से कुछ मैं भी चख लूं ।
चल बैठ के साथ कुछ गुफ़्तगू करतें हैं हम दोनों।
कुछ मीठी जुबान तू बोल दे कुछ मैं बोल दूँ।।
इल्तेज़ा हो अगर तो मुलाकात फिर एक बार कर लें।
कुछ गिला मुझसे तु कर,शिकवे मैं भी हज़ार कर लूं।
चल छोड़ दें सारी रंजिशें जो गुस्ताखियों से है।
कुछ गलती तू मान ले कुछ मैं मान लूं।।.....
दिनाँक 19 अक्टूबर 2020 समय 10.00 रात
रचना(लेखक)
अमित सागर(गोरखपुरी)
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