हिन्दी कहानी
सुनिका sunika
भाग 2
(अभी तक आपने इस कहानी में पढ़ा कि किस तरह सुनीता लकड़ा का नाम लोगो ने सुनिका रख दिया)लेकिन लोगों को क्या पता ये.............
"अब आगे"
नाम ही इसकी पहचान बनेगी,वक़्त तेज़ी से बदल रहा था
और इस बदलते वक्त ने भरत और अंजू की ज़िन्दगी तो बदली ही थी साथ ही साथ सुनिका की ज़िन्दगी को भी एक नया मुकाम दिया,सुनिका 14 साल की हो चुकी थी।
लेकिन जब सुनिका 6 साल की थी तभी भरत और अंजू ने सोच लिया था कि हमने जो तकलीफ और ज़िल्लत की ज़िन्दगी गुजार दी,ऐसी ज़िन्दगी हम सुनिका को नही जीने देंगे,हम उसे अच्छी तालीम और एक बेहतर इंशान बनाएंगे।
बस इसी ख्वाहिश में भरत और अंजू अपना सब कुछ बेचकर शहर की तरफ रुख कर लेतें हैं पर उन्हें क्या पता था जो सपना वो लेकर आये थे वो कभी पूरा हो पायेगा की नही उन्हें ये भी खबर नही थी बस एक उम्मीद की किरण थी जिसे उन्होंने कभी बुझने नही दिया और इस दौरान उन्हें हर ऐसी मुश्किलों से गुज़रना पड़ा जिसका खयाल हमारे जहन में आता ही नही है और इतना सब कुछ सहने की शक्ति सिर्फ उन्हें उनकी बेटी से मिली थी सुनिका सुन तो नही सकती थी लेकिन उसने कभी भी भरत और अंजू को निराश नही किया हमेशा कक्षा के प्रथम स्थान हासिल किया भरत ने सुनिका को शुरुआत से ही अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया था भरत और अंजू ने कभी भी सुनिका को किसी चीज की तकलीफ तक नही होने दी थी।
सुनिका 14 साल की हो चुकी थी और उसी साल सुनिका ने दसवीं की परीक्ष दी थी उसके माता पिता का सपना था की सुनिका हमेशा की तरह इस बार भी दसवीं की परीक्षा में प्रथम आये पर ये सुनिका से बेहतर कौन जान सकता था वक़्त क्या था वो तो बीत रहा था लेकिन बीते वक़्त के साथ सुनिका के चेहरे पर परेशानी साफ नजर आ रही थी भरत और अंजू दिन रात सुनिका के लिए ऊपर वाले से दुआ करते थे ताकी सुनिका अच्छे नम्बरों से पास हो जाये।
भरत जब अपनी 6 साल की बेटी सुनिका को लेकर सिर्फ पुरानी यादें को समेटें हुए शहर आया था तो उसने कभी सोचा नही था कि इस तरह से ज़िन्दगी जीनी पड़ेगी भरत यही सब बैठे सोच रहा थी कि तभी अंजू उसके बगल में आकर बैठ जाती है भरत बिना पलकें झपके ही सामने की तरफ देख रहा था तकरीबन 15 मिनट हो चुके थे तभी अंजू उसके कंधे को हिलते हुए कहती हैं क्या सोच रहे हो,भरत ने कहा नही कुछ नही बस ऐसे ही,अंजू ज़िद करने लगती है और कहती चलो बताओ क्या सोच रहे थे ये कहकर अंजू अपना हाथ भरत के बांहों में डाल देती हैं भरत बिना अंजू की तरफ देखे ही उसके सारे सवालों का जबाब दे रहा था तभी अंजू ने कहा क्यूँ परेशान हो सुनिका अच्छे नम्बरों से पास हो जाएगी और हमने कोई गलती नही की अपना घर और गांव छोड़कर तुम परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा।
20 जून 2013 ये एक ऐसी तारीख थी जिसने भरत और अंजू को झकझोर कर रख दिया था और इसी तरिख ने सुनिका की जिंदगी को एक नया मोड़ दे दिया,जिस सोच की वजह से सुनिका के माथे पर चिंता की सिकन रहती थी
वो यही तारीख थी।
शाम वक़्त था तकरीबन 6.00 बज रहे थे भरत काम करके घर लौटा ही थी कि।।...............
भाग 2 समाप्त
(आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)
दिनाँक 13 अक्टूबर 2020 समय 10.00 रात
अमित सागर(गोरखपुरी)
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