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रविवार, 18 अक्तूबर 2020

कहानी सुनिका अंतिम भाग

                                        सुनिका


(अभी तक इस कहानी के भाग एक मे आपने पढ़ा कि किस तरह से लोगों ने सुनीता के ना सुन पाने के कारण उसका नाम सुनिका रख देतें है और
दूसरे भाग में अपने पढ़ा कि
शाम वक़्त था तकरीबन 6.00 बज रहे थे भरत काम करके घर लौटा ही थी कि।।...............)

                                        "अब आगे"

तभी अंजू,भरत के पास घबराते हुए पहुंचती है उसके माथे पर पसीने की बूंदे उभर आई थीं भरत हैरान होकर,क्या हुआ तुम्हे इतनी घबराई हुई क्यूँ हो सब ठीक तो है ना,अंजू ने अपने हाथों से कमरे के दरवाजे की तरफ इशारा किया,भरत बिना कुछ पूछे ही कमरे की तरफ भागता है और दरवाजे को खोलने की कोशिश करता है पर दरवाजा अन्दर से बंद था भरत अपने हाथों से दरवाजा थपथपा कर सुनिका को आवाज लगाने लगता है पर अंदर से कोई आवाज नही सुनाई दी,अंजू रोने लगती है और भरत भी परेशान होने लगता था अंजू के रोने की आवाज को सुनकर उनके पड़ोस में रहने वाला 30 साल एक युवक ताहिर अंसारी दौड़कर उनके पास पहुँचता है।
ताहिर से लिपटकर अंजू रोने लगती है और रोते हुए वो ताहिर से बार बार एक ही बात बोल रही थी कि सुनिका अंदर है ताहिर और भरत दरवाजे को तोड़ने लगतें है 5 मिनट बाद जब दरवाजा टूटता है तो नज़ारा ही कुछ और था अंजू भागती हुई कमरे के अंदर जाती है तो वो कांपने लगती है और वहीं एक कोने में सिमटकर ज़मीन पर बैठ जाती है भरत ना तो कुछ बोल रहा था और नही ही उसके आंशु निकल रहे थे चौखट पर बैठकर वो सिर्फ कमरे के अंदर देख रहा था ताहिर को बड़ी हैरानी होती है कि कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था तो सुनिका गयी कहाँ ताहिर कमरे के चारो तरफ नज़र घूमता है तभी उसकी नज़र खिड़की के ऊपर पड़ती है ताहिर खिड़की के करीब जाता है तो वो चोंक जाता है खिड़की में फंसी सुनिका की चुन्नी और बिखरा हुआ खून देखकर वो घबरा सा जाता हैं वो दौड़ता हुआ खिड़की के पीछे की तरफ जाता हैं पर उसे कोई फायदा नही होता है ना तो वहां सुनिका मिली और ना कोई सुबूत मिला,ताहिर भरत से कहता है कि सुनिका का कुछ पता नही चल रह है हमें पुलिस स्टेशन मे एफ़आईआर दर्ज करानी चाहिए,लेकिन भरत और अंजू इस हालत में नही थे कि वो कुछ कर सकें,ताहिर ने एक अच्छे इंशान का फर्ज निभाया,उसे सुनिका की फिक्र थी इसी लिए उसने बिना भरत को बताए ही पुलिस स्टेशन में जाके एफआईआर दर्ज करा दी।
वक़्त बीतता चल जा रहा था पर सुनिका का कुछ पता नही चल रहा था पुलिस भी हार चुकी थी और ताहिर भी थक चुका था भरत और अंजू की हालत भी दिन ब दिन बिगड़ रही थी भरत हर रोज चौखट पर बैठकर सुनिका का इंतेजार करता था और अंजू के आँशु कभी थामें ही नही।
तारीख 22 दिसम्बर 2019 सुबह के 10 बजे थे जब ताहिर अपनी दुकान का शटर गिराकर तेज़ी के साथ अपनी साइकिल चलता हुआ भरत के घर पहुँचता है वो अपनी साइकिल को बिना स्टैंड पर लगये ही दीवार के साथ खड़ाकर देता है और भागता हुआ भरत के पास जाता है भरत की हालत को देखकर लग रहा थी कि जैसे वो कितना बुढा हो गया हो वो दिन रात सुनिका के ही बारे में सोचता रहता था अन्दर पहुंचकर ताहिर भरत को बाहर ले आता है भरत जब बाहर निकलता है।
 तो उसके सामने नीले रंग की कोट पहने एक 5 फिट 6 इंच की लड़की जिसके कोट की जेब पर इंडिया बैच लगा हुआ था और चेहरे पर चोट का निशान था वो उसके सामने खड़ी थी उसके आंखों में आँशु भर आये थे पर भरत उस लड़की को पहचान नही पा रहा था वो ताहिर से पूछता है कौन है ये लड़की, तभी ताहिर ने भरत से कहा,फिर से देखो उसे,भरत उसे गौर से देखे जा रहा था और उसके आंखों से आँशु बहते जा रहे थे लम्हा जैसे थम सा गया हो भरत अपने कमीज के अस्तीन से अपने आँशु पोछ कर इशारों में पूछता है कहां चली गयी थी हमें छोड़कर इतना पूछते ही सुनिका भरत के गले लग जाती हैं और चिपक कर रोने लगती है भरत भी बहुत देर तक सुनिका को अपने सीने से लगाकर रोता रहा।
तभी अचानक से सुनिका को अपनी माँ का ख्याल आता है और वो कमरे की तरफ भागती है पर कमरें में उसकी माँ अंजू कहीं नज़र नही आती है वो मां को चारों तरफ ढूंढती है तभी उसकी नज़र दीवार पर पड़ती हैं जहाँ सुनिका और उसकी माँ की तस्वीर एक साथ लगी होती हैं सुनिका जोर से बाबा बुलाती है और वहीं दीवार से सटकर नीचे बैठ जाती हैं उसे यकीन नही था कि सिर्फ 6 सालों में इतना कुछ बदल जायेगा कि सोचने के लिए केवल यादें रह जाएगी और कुछ नही।
सुनिका का एक सपना था कि वो एथेलेटिक्स में इंडिया के लिए गोल्ड जीते इसी लिए उनसे अपने सपनो के लिए अपना घर छोड़ दिया और स्पोर्ट होस्टल में दाखिला ले लिया और बीते 6 सालों में सुनिका ने 400 और 800 मीटर की रेस में अनगिनत मेडल्स जीते और देश का नाम किया।

पर वो भरत और अंजू की तकलीफें,दर्द,इंतेज़र,विश्वास
त्याग,उनका प्यार और बेटी के लिए उनका लम्बा इंतेज़र वो कभी नही जीत सकी, अंजू ने सुनिका के इंतेज़र में दो साल पहले ही दम तोड़ दिया और भरत की भी हालत कुछ अंजू जैसी हो चली हैं।

सुनिका को खेल से ही सरकारी नैकरी मिली और सरकार द्वारा ही सरकारी आवास भी जिसमें अब भरत और सुनिका रहतें हैं।।....

                             कहानी समाप्त।।

(इस कहानी से हमने सीखा की अपने सपनों से ज़्यादा ज़रूरी उनके सपने हैं जो हमें इस दुनियां में लेकर आतें है।
जो सिर्फ हमारे लिए सपनें देखतें है और ताहिर जैसे नेक दिल मुसलमान भी होते हैं इस दुनिया में)


          
           दिनाँक 16 अक्टूबर 2020  समय 2.45 दोपहर
                                          रचना(लेखक)
                                 अमित सागर(गोरखपुरी)



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