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रविवार, 24 जनवरी 2021

जनवरी 24, 2021

कविता गाँव बहुत याद आता है | poem on The village misses so much | गाँव की धरती पर कविता | हिंदी कविता मेरा गाँव | गाँव की सुंदरता पर कविता | गाँव कविता लेखक अमित सागर

                                   कविता

                          गाँव बहुत याद आता है

सोंधी सी खुशबू है उसकी।
मेरे सपनो का वो संसार है।
बचपन गुज़रा था जहाँ पर मेरा।
वही तो अब सपनों का गाँव है।।

राम लीला तो कभी मुहर्रम जहाँ सब साथ मानते है।
ईद, दीवाली, होली, दशहरे में सब घुल मिल जाते है।
सीतल है हवा वहाँ की पूर्वा, पछुआई खूब बहती है।
याद जब भी गाँव की आई आँखों मेरी भर आईं है।।

बचपन गुज़रा, कुछ पल जवानी के भी गुज़रें है।
कुछ नही अब हाथों में सिर्फ पुरानी यादें हैं।
वो गलियां वो आँगन क्या मुझ बिन सुना लगता हैं।
क्या लौट चलू अब घर को, याद गाँव बहुत आता है।।

घनी छाँव बगीचों की अब तो यादों में ही रह गयी हैं।
उमंगों की उड़ान जैसे चार दिवारी में ही फँस सी गयी हैं।
वो खेत, खलिहान, कोहरे की वो दीवार, शबनम की चादरें शायद छूट गई है सब मुझसे,अब गाँव बहुत याद आता है।
क्या लौट चलू अब घर को, याद गाँव बहुत आता है।।

हर शाम वहाँ की हसीन है हर घर की अपनी एक कहानी है।
मेरे भी हैं कुछ ख्वाब वहाँ के कुछ पल वहाँ भी बितानी है।
वक़्त और फुर्सत बन्द कमरों में तलासते रहते है।
खुला आसमान जब ढूंढते है तो गाँव की याद आती है।
क्या लौट चलू अब घर को, याद गाँव बहुत आता है।।


            दिनाँक 23 जनवरी 2021 समय 11.00 रात
                                              रचना(लेखक)
                                            सागर(गोरखपुरी)



बुधवार, 13 जनवरी 2021

जनवरी 13, 2021

तेरी याद हिंदी कविता | Love Poem | प्यार पर कविता | Poem on Your memory | यादों पर कविता | बीते लम्हों पर कविता |

                                 कविता

                  तेरी याद Your memory

कभी तुझसे, कभी खुदा से झगड़ते रहे हम।
बिना मतलब यूँ ही ज़िन्दगी से उलझते रहे हम।
तुझमे ख्वाबो का जहां तलासते रहे हम बेवजह।
खामखां बस तकदीर से टकराते रहें हम।।

                  हर शाम मयखाने में जाम लड़ते रहे है हम।
                  फुर्सत के पल पैमानों के संग बिताते रहे हम।
                  कशमश और उलझनों में गुज़रती है हर शाम।
                  यूँ ही अंधेरो में भी उजालों से लड़ते हैं हम।।

एक मुददत सी हो गयी है चांद को देखे हुए।
अब तो सितारों को गिनकर रात कटती हैं।
हर शाम छत पर तेरे ख्यालों में डूब जाते हैं हम।
जाने क्या वज़ह है कि बिना सांसों के भी ज़िन्दा हैं हम।।

               पुरानी यादों को याद कर आंखें भर आतीं हैं।
               तुम्हारे दुपट्टे की वो छाओं बहुत याद आती है।
               घंटो और मिलों का सफर जैसा थम सा गया हो।
               जिंदा हैं मगर ज़िन्दा लाश बन गये हैं हम।।

शिकवा शिकायत खुद से मुझे बहुत है।
तुझसे भी है शिकायत मगर तू कहीं भी नही है।
चल कभी फुर्सत हो तो चले आना ख्वाबों में मेरे।
हकीकत में तो तुझसे भागते ही रहे हम।।

             दिनाँक 12 जनवरी 2021 समय 7.00 शाम
     
                                             रचना(लेखक)
                                           सागर(गोरखपुरी)

 

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