कविता
मई 24, 2021
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क्यूँ छोड़ देते हो
किसी दूसरे की चौखट पर क्यों छोड़ आते हो उन्हें।दर दर भटकता,भूख मार देते हो क्यूँ उन्हें।
अपनी खुशियों की खातिर क्यूँ बांट लेते हो महीनों में उन्हें।
बुढ़ापे में तन्हा क्यूँ छोड़ देते हो उन्हें।।
कभी फुर्शत में बैठकर उनका हाल तो पूछ लो।
कोई गिला है उनको तुमसे, कभी ये तो जान लो।
बचपन में जिनकी उंगलिया सहारा हुआ करती थी।
बुढ़ापे में तन्हा क्यूँ छोड़ देते हो उन्हें।।
क्या देखा नही तुमने कभी उनके कांपते हाथों।
चेहरे की झुर्रियां क्या तुम्हें नज़र आती नही।
क्यूँ चले आते हो मंदिरों के बाहर इन्हें बिठाकर।
बुढ़ापे में तन्हा क्यूँ छोड़ देते हो उन्हें।।
भूखे प्यासे रहकर जो तुम्हे ज़िंदा रखतें हैं।
आंखों में बिलखते आँशु लिए बृद्धाश्रम में मिलतें हैं।
जिनकी छाओं में तुम्हारा जीवन बीत जाता है।
बुढ़ापे में तन्हा क्यूँ छोड़ देते हो उन्हें।।
माथे की शिकन, कमज़ोर नजर, बूढा और लाचार बदन।
इस हाल में उनके अपने, एक तुम ही तो हो।
फिर क्यूँ कर देते हो उनके बर्तन भी अलग।
कैसा मन है तुम्हारा, तुम क्या हो गए हो
ये सोच के मैं भी डर जाता हूँ।।
ये दिल है तुम्हारा या कोई पत्थर।
बुढ़ापे में तन्हा क्यूँ छोड़ देते हो उन्हें।।
दिनाँक- 18 मई 2021 समय-5.00 शाम
रचना(लेखक)
सागर (गोरखपुरी)