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मंगलवार, 8 सितंबर 2020

हिन्दी कविता बेरोजगारी | बेरोजगार की व्यथा | Hindi poem Unemployment

                                    बेरोजगारी 

                             Unemployment

दौलत शोहरत नही मैं सम्मान चाहता हूँ।
बेरोजगार हूँ जनाब मैं रोजगार चाहता हूँ।।

थक चुका हूँ मै पन्नो पर लिख लिख कर।
अब थोड़ा शुकुन और आराम चाहता हूँ।
स्कूल,कालेज, विश्वविद्यालय से निजात चाहता हूँ।
मैं बेरोजगार हूँ जनाब रोजगार चाहता हूँ।।
बेजान से शरीर मे मैं अब जान चाहता हूँ।
घुटन भारी ज़िन्दगी में, खुला आसमा चाहता हूँ।
ढेरो डिग्रियों हाथों में है अब उनका मुकाम चाहता हूँ।
मै बेरोजगार हूँ जनाब रोजगार चाहता हूँ।।
उम्र बीत रही है,ढलते उम्र में अब आराम चाहता हूँ।
सारे किताबों को तख्खे पर रख सो जाना चाहता हूँ।
सामाजिक हूँ मैं समाज में सम्मान चाहता हूँ।
मैं बेरोजगार हूँ जनाब रोजगार चाहता हूँ।।
आंखों की झुर्रियां,माथे पर शिकन, झड़ते बाल,उनकी सफ़ेदी,घिसी हुई चप्पलें,पैरों के छाले, वो मिलों का सफर।
इन सभी का हिसाब चाहता हूँ।
मैं बेरोजगार हूँ जनाब रोजगार चाहता हूँ।
माँ का त्याग बाबा की परेशानियां सब हटाना चाहता हूँ।
उनकी ज़िमेदारियाँ अब खुद उठाना चाहता हूँ।
शिक्षित हूँ मै अब शिक्षा का सम्मान चाहता हूँ।
मैं बेरोजगार हूँ जनाब रोजगार चाहता हूँ।।

        दिनाँक 8 सितंबर 2020  समय  11.00 सुबह

     

                                        रचना(लेखक)

                                     सागर (गोरखपुरी)





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