लव कविता
अक्तूबर 02, 2021
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निगाहों की जुबां
पकड़ के मेरा हाथ मुझ पर यक़ीन तो कर ले।ताउम्र नही कहता, कुछ दूर तलक ही चल ले।
निगाहों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
मेरे दिल की धड़कनों से तु अपनी हर बात पुछ ले।।
खत में लिखे अल्फाजों के मायने बदल जाते हैं।
मैसेज में कहीं बातों के जज़्बात बदल जाते हैं।
निगाहों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
मेरे दिल के धड़कनों से तु अपनी हर बात पूछ लें।।
जिस मंजिल को ढूंढता था कभी, शायद तुम वही हो।
जिसके दुपट्टे में उंगलिया फंसा कर ज़िंदगी गुज़र जाये शायद तुम वही हो।
जिसके सपने मैंने भोर तलक देखे हैं शायद तुम वही हो।
सोचता हूँ हर बात तुसे आज कह दूं पर कैसे।
निगाहों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
मेरे दिल के धड़कनों से तु अपनी हर बात पूछ लें।।
लङकप्पन की वो सारी नादानियां चाहता हूँ।
छूट गए जो सपने उन्हें तेरे संग जीना चाहता हूँ।
तेरे इर्द गिर्द आवारा हवाओं सा घूमना चाहता हूँ।
तेरी नीदों में हर रोज मैं जागना चाहता हूँ।
निगन्हों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
खामोश रहकर भी हर बात तुझसे कहना चाहता हूँ।।
तुझी से हर सुबह हो मेरी सांझ भी तुझसे हो ।
उथल पुथल हो चाहे ज़िंदगी, पर तेरे संग आराम सा हो।
बैठी रहे तु संग मेरे बांहों में डाले हाथ।
तेरी आँखों के समंदर में डुब कर हो जाये शाम।
कुछ ख्वाब अधूरे है मेरे जो तेरे संग मुझे जीने हैं।
निगन्हों की जुबान नही आती मुझे सच है ये।
मेरे दिल के धड़कनों से तु अपनी हर बात पूछ लें।।
दिनाँक 25 सितंबर 2021 समय 9.30 सुबह
रचना (लेखक)
सागर गोरखपुरी