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सोमवार, 30 नवंबर 2020

नवंबर 30, 2020

HINDI KAHANI G.B ROAD PART 1 | कहानी गली नम्बर 64 पर कहानी | 1992 दंगे पर हिन्दी कहानी | Love story |

                                  कहानी

                      जी बी रोड G.B ROAD

तारीख     16 दिसम्बर 1992
दिन          बुधवार
स्थान       दिल्ली
मौसम      ठंड का
पात्र         1. नज़ीर(25)
               2. आरती(24)
               3. रोशन(55) गेटमैन
               4. तारा बाई(50)
      
रात के तकरीबन तीन बज रहे थे,चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, सन 1992 दिसम्बर का महीना था उस रात ठंड कुछ जादा ही पड़ रही थी कोहरा कुछ इतना था कि सिर्फ 50 मीटर तक ही दिखाई दे रहा था नज़ीर (25) B TECH फाइनल ईयर का स्टूडेंट था वो अपनी पढ़ाई की खातिर अपना शहर छोड़कर दिल्ली चला आया था नज़ीर हरियाणा के एक छोटे से गांव का रहने वाला था उसके घर मे अम्मी,अब्बा के इलावा उसकी एक छोटी बहन भी थी, घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उसे दिल्ली का रुख करना पड़ा, नज़ीर दिन में पढ़ाई और रात में रिक्शा चलाया करता था।
रात के 3 बजे थे जब नज़ीर ने अपने रिक्शा को अंडर पास के रास्ते से निकालकर G.B ROAD के गली नम्बर 64 की तरफ मोड़ा था  ये पहली बार था जब नज़ीर ने इस रोड पर अपने रिक्शे को घुमाया था उसने एक पुराना कंबल ओढ़ रखा था गले मे मफलर और सिर में टोपी पहन रखी थी, वो रिक्शे को चलाते हुए जा रहा था नज़ीर पहली सवारी को छोड़कर किसी दूसरी सवारी की तलाश में था गली में मुड़ते ही नजारा ही कुछ और था नज़ीर को पता ही नही चला कि उस गली में दिन है कि रात, वो नींद से जैसे जग सा गया हो, हर तरफ सिर्फ खूबसूरत लड़कियां ही दिखाई दे रहीं थी नज़ीर को कुछ पता नही था कि उसने अपने रिक्शे को कहां मोड़ दिया है नज़ीर को दिल्ली आये सिर्फ 2 महीने ही हुए थे और उसके साथ ये पहला वाक्या था। नज़ीर अपने रिक्शे को तेज़ी से चलाकर वहां से निकल जाता है वो थोड़ा घबरा  सा जाता था।
अगले दिन सुबह 11 बजे नज़ीर अपने कॉलेज पहुँचता है उस दिन वो थोड़ा लेट हो गया था नज़ीर ने जल्दी से अपनी साइकिल को पार्क किया और हाथों में बैग को लिए हुए तेज़ी से क्लास रूम की तरफ जाता है तभी पीछे से गेट मैन रोशन(55) आवाज देता है अरे नज़ीर आज कहाँ देर हो गयी, नज़ीर बिना पीछे मुड़े ही बोलता है वापस आके  बताता हूं रोशन चाचा, इतना कह कर नज़ीर क्लास रूम की तरफ चला जाता है,क्लास रूम के दरवाजे पर पहुचकर नज़ीर अपनी घड़ी देखता है ओ sheet 10 मिनट की देर हो गयी कहकर फिर वो धीरे से क्लास रूम के अंदर झांकता है टीचर क्लास ले रहे थे।
नज़ीर निराश होकर कॉलेज की लाइब्रेरी में चला जाता है वहाँ उसकी मुलाकात  आरती(24) से होती हैं,आरती, नज़ीर को  देखकर खड़ी हो जाती है क्योंकि आरती,नज़ीर से एक साल जूनियर थी नज़ीर अपने हाथों से इशारा करके आरती को बैठ जाने को कहता है ये पहली बार था जब आरती और नज़ीर की मुलाक़ात हुई थी।
समय बीत रहा था आरती और नज़ीर की मुलाक़ात भी बढ़ने लगी थी शायद दोनो एक दूसरे को पसंद करने लगे थे लेकिन इन सब के बीच कॉलेज का माहौल भी बदल रहा था आरती और नज़ीर का रिश्ता लोगों को रास नही आ रहा था वो भी सिर्फ इस लिए की नज़ीर मुसलमान था और आरती एक हिन्दू लड़की 
(हमारे  समाज की रूढ़िवादी परम्पराएं हमेशा से इंसानों को तकलीफ पहुचाती रही है) 
उन दिनों देश की  हालत भी मजहबी रंजिशों के कारण खराब चल रही थी और इसका असर  कॉलेज के साथ साथ आरती और नज़ीर के रिश्तों पर भी पड़ा रहा था,दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे लेकिन मजहबी रंजिशों ने उन्हें अलग कर दिया,कालेज में हर तरफ तोड़ फोड़ होने लगी और इसी बीच सरकार ने एक कड़ा फैसला लेते हुए मुल्क के सारे स्कूल,कालेज,विश्वविद्यालय को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा कर दी इस फैसले ने..............

                               (भाग 1 समाप्त)
          (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

            दिनाँक 29 नवम्बर 2020 समय 2.45 दोपहर
      
                                                रचना(लेखक)
                                             सागर(गोरखपुरी)












मंगलवार, 24 नवंबर 2020

नवंबर 24, 2020

बलात्कार हिंदी कविता | Poem On Rape | महिलाओं पर कविता | महिला उत्पीड़न पर कविता |

                                    कविता

                              बलात्कार Rape

नोच रहे थे जिस्म सब मेरा,बेरहमी से हमें दबोच रहे थे।
फाड़ रहे थे कपड़े मेरे,नाखूनों से हमें कुरेद रहे थे।
मैं चीखी भी चिल्लाई भी, बहुत गुहार लगाई भी।
 बेबस और लाचार पड़ी थी हमदर्दी किसी ने दिखाई नही।।
मैं भाग रही थी वो खींच रहे थे।
ज़मीन पर मुझे वो घसीट रहें थे।
वस्त्रहीन मैं बेहोस पड़ी थी।
वो नोच रहे थे बस,वो नोच रहे थे।।
कभी डर रही थी कभी मैं रो रही थी ।
घबराके वहीं एक कोने में सिमट रही थी।
शर्म सार से मैं नग्न पड़ी थी।
उनकी निगान्हे मुझे घूर रही थी।।
एक पल में मुझसे सब कुछ छीन गया।
पूछो ना अब क्या मेरी हालत है।
ज़िल्लत भारी ज़िन्दगी अब हैं मेरी।
अब बस तोहमत ही बस तोहमत हैं।।
मिले हर ऐसे शख्स को कड़ी सजा।
जो हमारे सपने हमसे छीन रहें हैं।
अपने हवस की खातिर वो हमें।
ज़िन्दा लाश बनाकर बस छोड़ रहें।।
शर्म आती है मुझे ऐसे ज़िन्दगी पर ।
अब सबके लिए मै सिर्फ एक दोसी हूँ।
चुभती हैं अब सबकी घिनौंनी निगान्हे।
यूँ ही घूट घूटकर ये ज़िन्दगी कटती है।।

                     घूट घूटकर ये ज़िन्दगी कटती है।।

        दिनाँक 23 नवम्बर 2020  समय 1.00 दोपहर
    
                                            रचना(लेखक)
                                          सागर(गोरखपुरी)







शनिवार, 21 नवंबर 2020

नवंबर 21, 2020

खिलाड़ी हिंदी कविता | धावक पर कविता | खिलाड़ियो पर कविता |Poem on runner |

                                     कविता

                             खिलाड़ी Player

चला हूँ मिलों न जाने कितना मैं।
उससे भी कहीं जादा मैं दौड़ गया।
तकमें जीतें है कितने देश की खातिर।
उसकी गिनती भी अब मैं भूल गया।
बेरोजगार था पहले भी मैं,बेरोजगार ही रह गया।।
तलवे घिस गये पैरों के,कितने जूते मैने फाड़ दिए।
शर्दी,गर्मी,बारिश कितने हमने ऐसे ही गुजार दिए।
खून जितना शरीर में था,वो पसीनें में बह गया।
बेरोजगार था पहले भी मैं,बेरोजगार ही रह गया।।
हाथों में थे मैडल बहुत अखबारों था मेरा नाम।
छपते रहे तस्वीर मेरे,हर जगह था मेरा सम्मान।
अब हालत बत से बत्तर हैं,खाने को हैं हम मोहताज।
सपने जो देखें थें सारे,वो बिखर गयें हैं सब ख्वाब।।
दौड़ हूँ हर ट्रैक पर मैं,नामुमकिन जीत भी जीत गया।
हार गया मैं हौसले की जंग,थक कर मैं अब बैठ गया।
मजबूरी और लाचारी में सारे मैडल मै बेच गया।
बेरोजगार था पहले भी मैं,बेरोजगार ही रह गया।।
नये खिलाड़ी भी आये हैं अब इनका तो सम्मान करो।
इनके भी है बहुत से सपने,अब उनको तो साकार करो।
हमने तो दे दी कुर्बानी,इनकी मेहनत ना बेकार करो।
लाओ इनके लिए भी नए अवसर ,इनका ना अपमान करो।
देश की आन और शान हैं ये,अब इनको ना बेरोजगार करो।।
 
          दिनाँक 21 नवम्बर 2020  समय 3.00 दोपहर
                                             रचना(लेखक)
                                           सागर(गोरखपुरी)








सोमवार, 16 नवंबर 2020

नवंबर 16, 2020

कट रही है ज़िन्दगी हिंदी कविता | Love poem | Life is getting cut |Hindi kavita zindagi | प्यार की कविता

                                कविता

                        कट रही है ज़िन्दगी

तेरी हर यादों को समेटें कट रही है ज़िन्दगी।
तेरे तस्वीरों के सहारे चल रही है ज़िन्दगी।
झोंका हवाओं का कुछ इस क़दर चला है।
अब तो तेरी बातों के सहारे कट रही है ज़िन्दगी।।
मुमकिन नामुमकिन में उलझ रही है ज़िन्दगी।
बस बात बिबाद से यूँ ही फंस रही है ज़िन्दगी।
कुछ यादें है जो कभी पीछा नही छोड़ती मेरा।
अब तो लड़ाई झगड़े के सहारे कट रही है ज़िन्दगी।।
हशरतें नाकामियां मिली,हम हार गयें ए जिन्दगी।
मुहब्बत पीछे रह गयी मेरी कमीटमेंट जीत गई तेरी।
मैं गलतफैमियाँ लिए फिरता रहा तुझसे उम्मीद की।
अब तो पुरानी यादों के सहारे कट रही है ज़िन्दगी।।
मोबाइल को सिराहने रखकर हर रोज सो जातें है।
msg आये कभी, कोई तो घबरा के उठ जातें हैं।
ये सिलसिला भी बंद कर दिया यादों का हमने।
अब तो गुस्से के सहारे मेरी कट रही है ज़िन्दगी।।
तुम मानती नही मैं समझता नही।
गलती किसकी है कोई जानता नही।
तुम्हारी तस्वीरें देख लो तो यकीन हो जाता है।
समझ आ जाता है कि तुम बदली हो कि नही।।
तुम्हे ऊंचाइयां पसंद है मैं ज़मी पर चलना चाहता हूँ।
तुम्हे  उड़ना हैं गगन में,मैं ठहरना चाहता हूं।
तुम्हे मालूम नही की हवाओं में घर नही बनतें।
सिर्फ ज़मी पर रहकर आशियाँ बनाये जातें हैं।
समझेंगी कभी तू मेरी बातों को यकीन है मुझे।
अब तो इसी इंतेज़र के सहारे कट रही हैं ज़िन्दगी।।

                दिनाँक  16 सितम्बर 2020  4.25 शाम
  
                                          रचना(लेखक)
                                       सागर(गोरखपुरी)







शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

नवंबर 13, 2020

हिंदी कविता दीवाली | poem on diwali | दीपावली पर कविता इन हिंदी |Hindi poem Diwali

                                     कविता

                              दीवाली Diwali

जगमग जगमग जोत जली है फैला है उजियारा ।
कही दिए कि रोशनी है कहीं लड़ियों की है माला।
रंग बिरंगे रंगों से सजा है घर का हर एक कोना।
खुशियां फैली है चारों तरफ,रोशन है गली मुहहला।।
आसमा जैसा सजा है आंगन,सितारों जैसी है टिमटिम ।
शोर है पटाखों की हर तरफ,फिलझाड़ियों की है रोशनी।
आतिशबाजी से क्या खूब बन रही देखो नभ में रंगोली।
कितनी सारी खुशियाँ लेके आयी है फिर से ये दीवाली।।
दुकानों पर क्या भीड़ लगी हैं जैसे लगे हो मेले।
लइया पोहे मिल रहे कहीं मिठाइयों के ठेले।
कहीं भगवान की मूर्तियां है कहीं बच्चों के खिलौने।
कितनी सारी खुशियाँ है कितनी है उमंगें।।
कहीं पूजा है राम की कहीं बुद्ध का स्वागत।
कही लक्ष्मी गणेश है तो कहीं धन का पुजन।
दीप और दिए का क्या खूब दिख रहा है संगम।
मीठे तीखे पकवानों से भरा पड़ा है सारा टेबल।।
सेफ और सिक्यूर मनाएं आओ फिर से ये त्योहार।
मेहमानों का स्वागत करें छोड़े फुलझड़ियाँ सब साथ।
उपहार और प्यार से भरा है ये अनोखा त्योहार।
कितनी सारी खुशियां ले आया दीवाली का त्योहार।।

      दिनाँक 10 सितम्बर 2020  समय 11 रात
                                           रचना(लेखक)
                                  अमित सागर(गोरखपुरी)





शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

नवंबर 06, 2020

बचपन की यादें हिंदी कविता | कविता बचपन इन हिंदी | बचपन पर कविता | बच्चों की कविता | poem on Childhood

                                कविता

                           बचपन की यादें

मीले कहीं तो फिर से ढूंढ लूं मैं।
बेचे कोई  उन्हें तो खरीद लू मैं।
अनमोल हैं वो सारी यादें बचपन की।
दिल करता है उसे चुरा लूं मैं।।
बिना मतलब के यूँ ही भगतें रहना।
पापा के छाती पर यूँ ही उछलते रहना।
शरारतें करना हर वक़्त हर पहर।
तोड़ फोड़ हमेशा मचाते रखना।।
स्कूल जाने से हम डरा करतें थे।
यूनिफार्म पहनने से तो घबराते थे।
ये खाएंगे वो खाएंगे बस माँ को उलझाया करतें थे।
दादा के कंधे से उतार हम,स्कूल से भाग आया करतें थे।।
घर पहुंचकर चिमटे से जब पिट हम जाया करतें थें।
माँ का आँचल थामकर बस रोया ही हम करतें थें।
घंटो माँ के फुसलाने से तब कुछ खाया करतें थें।
बाजार में जाके दादा के संग खिलौने हम लाया करतें थे।।
समेट रहा हूँ उन यादों को जो भूल चुका हूं मैं।
मां का आँचल,पापा की छाती,दादा के कंधे ढूंढ रहा हूँ।
अनमोल है वो सारी यादें बचपन की।
अब तो दिल ही दिल में उसे मैं चुरा रहा हूँ।।..........

             दिनाँक 05 नवम्बर 2020   समय 11 रात
                                         रचना(लेखक)
                                 अमित सागर(गोरखपुरी)


सोमवार, 2 नवंबर 2020

नवंबर 02, 2020

हिंदी कविता तू कहे तो | If you say hindi poem | Love poem in hindi | प्यार की कविता |

                                   कविता

                        तू कहे तो If you say

तू कहे तो चल दूं सितारों की ओर।
तू कहे तो रुख मोड़ दूं हवा का तेरी ओर।
तू इशारों में ही कुछ बोल दे मुझे अगर।
खुदा कसम इस जहां को छोड़कर चल दूं तेरी ओर।।
तू कहे तो तुझसे कुछ गुफ्तगू कर लूं ।
आंखें मूंदें मैं हर वक़्त तेरे संग चल दूँ।
तू कहे तो ठहर जाऊं  समंदर की तरह।
तू कहे तो मैं सिर्फ तेरा बन जाऊं।।
तू कहे तो मदहोश पतंग बन जाऊँ।
तू खिंचे डोर जिधर मैं उधर मुड़ जाऊं।
तेरे हाथों से कटकर तुझसे ही लूट जाऊं।
तू डोर मेरी मैं पतंग तेरा बन जाऊं।।
तू है तो तुझसे ये दुनिया मेरी।
तू है तो ये सारी खुशियां मेरी।
तू है तो तुझसे ये सांसे मेरी।
तू है तो दिन और ये रातें मेरी।।
तू है तो खुशियों का बाजार है।
हर एक चीज वहां की कीमती बेहिसाब है।
तू है तो रौनके बाहर है।
बीन तेरे फीके बेजान है।।

           तू है तो सब कुछ है बिन तेरे ये सब बेकार है।।

           दिनाँक  31अक्टूबर 2020 समय 9.30 शाम
   
                                           रचना(लेखक)
                                   अमित सागर(गोरखपुरी)

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