कविता
कट रही है ज़िन्दगी
तेरी हर यादों को समेटें कट रही है ज़िन्दगी।तेरे तस्वीरों के सहारे चल रही है ज़िन्दगी।
झोंका हवाओं का कुछ इस क़दर चला है।
अब तो तेरी बातों के सहारे कट रही है ज़िन्दगी।।
मुमकिन नामुमकिन में उलझ रही है ज़िन्दगी।
बस बात बिबाद से यूँ ही फंस रही है ज़िन्दगी।
कुछ यादें है जो कभी पीछा नही छोड़ती मेरा।
अब तो लड़ाई झगड़े के सहारे कट रही है ज़िन्दगी।।
हशरतें नाकामियां मिली,हम हार गयें ए जिन्दगी।
मुहब्बत पीछे रह गयी मेरी कमीटमेंट जीत गई तेरी।
मैं गलतफैमियाँ लिए फिरता रहा तुझसे उम्मीद की।
अब तो पुरानी यादों के सहारे कट रही है ज़िन्दगी।।
मोबाइल को सिराहने रखकर हर रोज सो जातें है।
msg आये कभी, कोई तो घबरा के उठ जातें हैं।
ये सिलसिला भी बंद कर दिया यादों का हमने।
अब तो गुस्से के सहारे मेरी कट रही है ज़िन्दगी।।
तुम मानती नही मैं समझता नही।
गलती किसकी है कोई जानता नही।
तुम्हारी तस्वीरें देख लो तो यकीन हो जाता है।
समझ आ जाता है कि तुम बदली हो कि नही।।
तुम्हे ऊंचाइयां पसंद है मैं ज़मी पर चलना चाहता हूँ।
तुम्हे उड़ना हैं गगन में,मैं ठहरना चाहता हूं।
तुम्हे मालूम नही की हवाओं में घर नही बनतें।
सिर्फ ज़मी पर रहकर आशियाँ बनाये जातें हैं।
समझेंगी कभी तू मेरी बातों को यकीन है मुझे।
अब तो इसी इंतेज़र के सहारे कट रही हैं ज़िन्दगी।।
दिनाँक 16 सितम्बर 2020 4.25 शाम
रचना(लेखक)
सागर(गोरखपुरी)
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