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रविवार, 19 सितंबर 2021

इश्क़ | Love poems | इश्क़ पर हिंदी कविता | प्यार पर कविताएँ | प्यार हिंदी कविता | सच्चे प्यार पर कविता | इश्क़/ सागर गोरखपुरी

                                         इश्क़

अभी तलक तुम मेरे आस-पास रहती है।
तु हवाओं की तरह मुझे छुकर गुज़र जाती है।
तेरी वफ़ा की खुशबू मेरे सांसो में इस क़दर बसी है
कमबख्त जिस्म से अब तो जान भी नही निकलती है।।

तु ना होकर भी मेरे क़रीब हर पल रहती है।
कभी बुझे ना जो ऐसी प्यास जैसी तु लगती है।
ज़िंदगी के सफर जो खालीपन छोड़ दिया है तुमने।
उन्हें याद कर कितनी रातें मेरी जागकर गुज़र जाती है।।
उन यादों को लिए किसी समन्दर में मैं डुब जाऊँ।
या फिर किसी किनारे पे बहकर मैं तुझे भूल जाऊँ।
जिस्म से अब तो जान भी नहीं निकलती है।
तू ही बता किस तरह मैं तुझे भूला जाऊँ।।

तेरी हर अदा को शायद अब मैं समझता हूँ।
तेरी निगाहों की जुबान भी मैं जानता हूँ।
कुछ कहता नही तुझसे ये फितरत है मेरी।
तेरी धड़कनों की हर आहट मैं महसूस करता हूँ।।
कभी मिल भी सकेंगे हम लहरों की तरह।
या फिर छुट जाएंगे हाथों से रेत की तरह।
ये फैसला भी अब तो तक़दीर पर है।
तुझसे आस लगाना भी मैंने छोड़ दिया।।

           दिनाँक 18 सितंबर 2021   समय  11.00 सुबह
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

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