कविता,कहानी और मै/Amit Sagar

Hello friends my name is Amit Kumar Sagar and I am a government employee, with this platform, I will tell my thoughts, my poems, stories, shayari, jokes, articles, as well as my hobbies.

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शनिवार, 25 मार्च 2023

मार्च 25, 2023

रखी में ज़रूर आऊंगा !! Rakhi by Sagar Gorakhpuri !! बहनों पर कविता !! फौजियों पर हिंदी कविता !! Fouji ki Rakhi by sagar gorakhpuri !! Best kavita fouji chhuti !! Poem on indian army !! Sena par kavita in hindi !!

रखी में ज़रूर आऊंगा
वादा किया है जो तुझसे तो उसे निभाउंगा।
इस बार मान जा, राखी में ज़रूर आऊंगा।
मैं जानता हूँ मेरे सिवा कोई नही सहारा तेरा।
बस अबकी बार माफकर दे, मैं जल्दी लौट आऊंगा।

तुझसे ज़रूरी कोई नही, हर काम छोड़ आऊंगा।
तूने जो गिफ्ट मांगा है ना, उसे ज़रूर ले जाऊंगा।
बस तू माँ से मत कहना की छुटियाँ नही मिली मुझे।
इस बार माँ को मना ले, राखी में ज़रूर आऊंगा।।
मैं मर भी गया तो अपना वादा निभाउंगा।
पापा की ज़िम्मेदारियों से कहाँ भाग पाऊंगा।
इस बार वतन की माटी का कर्ज़ चुका लेने दे।
तेरी शादी से पहले राखी में ज़रूर आऊंगा।।

तेरे लिए मैं तेरी दुनियाँ हूँ ये सब जनता हूँ मैं।
मेरे लिए तू जहां की सारी खुशियाँ है ये भी जनता हूँ मैं।
बस तुझे किये वादे को इस बार निभाना पाऊंगा।
इस बार माफ कर दे, तेरी शादी से पहले राखी में ज़रूर आऊंगा।।
बस तू उम्मीदों का सफर कम ना करना, जल्दी आऊंगा।
माँ की साड़ी, पापा लाठी, तुम्हारे शोल भी ले आऊंगा।
मेरे कमरे में पड़ी हर चीज को बस संभाल कर रखना।
इस बार माफ कर दे, तेरी शादी से पहले रखी में ज़रूर आऊंगा।।

दिनाँक : 22 फरवरी 2023                         समय : 10:00 रात
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

रविवार, 29 जनवरी 2023

जनवरी 29, 2023

अगले जन्म लव कविता !! Poem on next birth by sagar gorakhpuri !! Love kavita in hindi !! Agle janam hindi romantic poem !! Heart touching love poem !! !!

                                             अगले जन्म
कभी फुर्सत में मिलोगी तो बताऊंगा तुम्हें।
एक खत लिखा है तुम्हारे लिए पढ़ के सुनाऊंगा तुम्हें।
अब पागल समझने लगे है लोग मुझे, ये पता नही है तुम्हें।
अगले जन्म में मिलोगी तो हक़ीक़त से मिलाऊँगा तुम्हें।।
तुम्हारे लिए मैं अब एक अजनबी मोड़ बन गया हूँ ये पता है मुझे।
मगर गुजरोगी जब भी वहां से तो वहीं खड़ा मिलूंगा तुम्हें।
पूछता हूँ हर एक शक़्स तेरे घर का पता, ये मालूम नही है तुम्हें।
अगले जन्म में मिलोगी तो हर एक शक़्स से मिलाऊँगा तुम्हें।।
बहुत किया इंतेज़ार तेरा, करूँगा हमेशा ये पता है तुम्हें।
हक़ीक़त में ना सही मगर ख्यालो में अक़्सर मिलूंगा तुम्हें।
मेरे आंखों का दरिया अब थम सा गया है तेरे इंतेज़ार में।
अगले जन्म में मिलोगी तो बहते दरिया से मिलाऊँगा तुम्हें।।
तुमने चाहा था मुझे बेइंतहा ये सब पता है मुझे।
मेरी चाहत भी तुझसे कम नही थी ये भी पता है तुम्हें।
तेरे मेरे दरमियाँ जो रिश्ता ज़िंदा है उसका इल्म नही तुम्हें।
अगले जन्म में मिलोगी तो रिश्तों के एहमियत से मिलाऊँगा तुम्हें।
मेरे चले जाने की वजह क्या थी ये पता है तुम्हें।
अगले जन्म में मिलोगी तो हक़ीक़त से मिलाऊँगा तुम्हें।।

दिनाँक : 28 जनवरी 2023                       समय : 02:40 शाम
                                                  रचना(लेखक)
                                                 सागर गोरखपुरी


बुधवार, 18 जनवरी 2023

जनवरी 18, 2023

राजनीति पर कविता ! राजनीति पर कविता ! हिंदी में गन्दी राजनीति पर कविता ! राजनीति पर व्यंग्य कविता !! राजनीति पर कटाक्ष करती कविताएँ !! धर्म और राजनीति पर कविता !! युवा राजनीति पर कविता !! Poem on politician !! Poem on politics by sagar gorakhpuri !!

                                             राजनीति
ठहरकर अरसे बाद मैंने राजनीति का खेल देखा।
हर शख्स एक जैसा था कोई बदला हुआ नहीं देखा।
सबकी जुबान से झूठ और लूट की बू बिखर रही थी। 
कोई भी शख्स वहां मुझे पाक साफ नहीं दिखा।।

महफिलों में खड़े होकर जाने क्या-क्या कह जाते हैं।
गड़े मुर्दे को खोदकर ये राजनेता बन जाते हैं।
दिखते नहीं है फिर ये कहीं भी, ईद का ये चांद हो जाते हैं।
अपनी सत्ता की खातिर जाने कितनों का खून बहाते हैं।            
      पुलवामा गलवान की शोर से यह फिर कुर्सी को बचाते हैं।।
कुछ हम भी हैं बेवकूफ जो इनकी बातों में आ जाते हैं।
बेबस और लाचार लोग तो ऐसे ही बहक जाते हैं।
जिनके वोटों से ये जा बैठते हैं जमीन से फलक पर।
उनके लिए हम फिर कीड़े मकोड़े बन जाते हैं।
अपनी सत्ता की खातिर जाने कितनों का खून बहाते हैं।                 पुलवामा गलवान की शोर से यह फिर कुर्सी को बचाते हैं।।

इनकी फितरत तो कमाल की है यह ट्विटर पर जाने क्या-क्या कह जाते हैं।
करते कुछ है, कहते कुछ, मीडिया में कुछ और दिखाते हैं।                जमीन पर कुछ काम नहीं दिखता इनका, जितना सदन में ये बताते हैं। 
हार जाने के डर से ये फिर लोगों को डराते हैं।
अपनी सत्ता की खातिर जाने कितनों का खून बहाते हैं।
      पुलवामा गलवान की शोर में यह फिर कुर्सी को बचाते हैं।।
भ्रष्टाचार, खून खराबा, वस्त्रहीन बनी अब राजनीति है।
डामा डोल है देश की नईया डुबो रहा भ्रष्टाचारी है।
राजनीति के घर में अब सिर्फ रहते नेता और व्यापारी है। ।
हमें तुम्हें अब कौन पूछता चुनाव में वक्त अभी बाकी है।
अब देश चलेगा राजनीति से, हम सब कहां से चलाते हैं।
अपनी सत्ता की खातिर जाने कितनों का ये खून बहाते हैं                पुलवामा गलवान की शोर में यह फिर कुर्सी को बचाते हैं।।

दिनाँक : 18 जनवरी 2023                      समय : 11.00 सुबह
                                                 रचना(लेखक)
                                               सागर गोरखपुरी

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

दिसंबर 09, 2022

तेरे इंतेज़ार में || best hindi shayari 2022 || sagar gorakhpuri || इश्क़ वाली शायरी हिंदी में || मुहब्बत भारी शायरी || shyari on love ||

  तेरे इंतेज़ार
कई शाम गुज़ार दी है तेरे इन्तेजार में मैंने।
हर रोज़ दीये जलाएं हैं, उम्मीदों के चौखट पे मैंने।
तू आये, आकर कहीं लौट ना जाये दस्तक देकर।
इस लिए दिल के दरवाजे पर निगंहो के चौकीदार बिठा रखे हैं मैंने।

दिनाँक : 28 नवंबर 2022                           समय : 8.30 शाम
                                               लेखक(रचना)
                                              सागर गोरखपुरी
 

शनिवार, 15 अक्तूबर 2022

अक्तूबर 15, 2022

बदनाम गली | Hindi kavita badnaam gali | तब्यफ पर कविता | व्यस्यावृत्ति के ऊपर कविता | बदनाम गली सागर गोरखपुरी | कोठा हिंदी कविता | महिला उत्पीड़न पर कविता | तब्यफ की ज़िंदगी हिंदी कविता | व्यस्याओं पर कविता हिंदी में | नारी पर कविता | नारी शोषण पर हिंदी कविता | नारी अत्याचार पर कविता

                                           बदनाम गली
मैंने अक्सर उन गलियों में जिंदगी को सिसकते देखा है।
हंसते चेहरे में बेबस और परेशानी इंसान भी देखा है।
हम जैसे ही है सब वहां कोई फर्क नही है उनमे।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।

सहूलियत तो ना के बराबर है वहां, चंद पैसों में जिस्म बेचते देखा है।
शिक्षा असुविधा के बिना भी, उनमें जिंदा रहने का हुनर देखा है।
तुमने सिर्फ जिस्म देखा है उनका, उनमें बैठा इंसान कहां देखा है।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।।
वो भी है हमारी तरह फिर भी लोगों को उनसे कतराते देखा है।
जाति,धर्म का तनिक भी भेद नहीं, हर मजहब के लोग आते वहां देखा है।।
उनके भी है कई ख्वाब अधूरे उमंगों के शैलाब भी उनमें देखा है।
तुमने सिर्फ बदन नोचा है उनका, क्या कभी उनका दिल भी देखा है।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।।
सिद्धत, मुहब्बत, कर्म, विश्वास, का एहसास वहां देखा है।
रोजी, रोटी, धंधा, पानी, इन सब में भी भी ईमान देखा है।
पैसे पैसे के लिए उन्हें अपना जिस्म बेचते देखा है।
तुमने सिर्फ जिस्म देखा है उनका, उनमें बैठा इंसान कहां देखा है।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।।
मैंने वहां जिस्म से बेहतर, रूहानियत से भरे इंसान देखे है।
तुमने कभी सुना है उनको मैंने घंटो सुना है उन्हें।
अब वो भी समाज मे सम्मान चाहती है बदनाम गलियों में भी खुला आसमां मांगती है।
मैंने ख्वाहिशों को समेटे उन्हें मरते देखा है।
तुमने सिर्फ जिस्म देखा है उनका, उनमें बैठा इंसान कहां देखा है।
मैंने उन बदनाम गलियों में भी पाक इंसान रहते देखा है।।


दिनाँक : 25 सितंबर 2022                      समय : 11:00 सुबह
                                                 रचना(लेखक)
                                               सागर गोरखपुरी

बुधवार, 21 सितंबर 2022

सितंबर 21, 2022

बेटियां | बेटियों पर हिंदी कविता | सागर गोरखपुरी की कविताएं | लड़कियों पर कविता | महिलाओं पर कविता | महिला शोषण पर कविता | बेटियों पर कविता | महिला उत्पीड़न पर हिंदी कविता | poem on Daughters | औरतों के जीवन पर कविता | बेटी अत्याचार पर कविता

                                             बेटियां
घर वही, आंगन वही, सारे रिश्ते नाते सब वही।
दिन वही, रातें वही, मां का आँचल पिता का शाया वही।
जब सब कुछ वही है तो मेरा आंगन मेरा क्यूं नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
बाबा मैं तेरी गुड़िया वही, आंगन की सोन चिरईया वही।
तेरी चिंता वही, फिक्र वही, पर उस घर में मेरी याद क्यूं नही।
जिस दहलीज़ से तूने बिदा किया उसमें क्यूं मेरा प्रवेश नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
माँ तुम वही, बाबा वही, पर भाई और मैं एक जैसे क्यूं नही।
हम सब एक जैसे ही तो है पर मैं तुम जैसी क्यूं नही।
मेरा कोई दोष नही जो जनमी बेटी बनकर मैं।
फिर क्यूं इतना क्रोध है मुझसे, बेटे के लिए क्रोध क्यूं नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
मुझे कुछ ना चाहिए उस दुनियां से, फिर भी क्यूं मेरे लिये वहां प्यार नही।
क्या इतने बेगाने हो गये हैं हम की दीवारों पर भी कोई निशान नही।
जननी है वहां की माटी मेरी, उस माटी से क्यूं मेरी पहचान नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
                 "बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही"।।


दिनाँक : 18 सितंबर 2022                     समय : 10: 10 सुबह
                                                रचना(लेखक)
                                               सागर गोरखपुरी


शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

सितंबर 09, 2022

माना की | प्यार पर हिंदी कविता | Love poem in Hindi | सागर गोरखपुरी | लव कविता हिंदी में | मोहब्बत पर कविता हिंदी में | Best love poem in hindi | sagar gorakhpuri ki best kavitayen | आशिकी पर कविता | ब्रेकअप पर हिंदी कविताएं

                                              माना की
माना की मेरे दिन, मेरी रातें,  मेरे पल, सब लौटा दोगे।
पर क्या मेरा वक्त लौटा पाओगे।
मेरा इंतेज़ार, मेरा ख्याल, मेरा ऐतबार, कभी याद कर पाओगे।
या यूँ ही जल्दीबाज़ी में इन्हें चौखट पर छोड़ आओगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।

माना की मैं गलत था, गलतियां की मैंने। 
क्या अपने गलतियों पर पर्दा डाल पाओगे।
झूठ के सहारे कब तक खुद को समझोगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।
माना की तुम कहती थी, चल बदल जाएंगे तुम्हारे लिए।
हर मुश्किलात में साथ चलेंगे तुम्हारे लिए।
क्या सच मे उन वादों पर तुम ठहर पाओगे।
या हर बार की तरह झूठी कसमें खाओगे।
क्या सच में तुम मुझे भूल पाओगे।।
माना की हर बार की तरह इस बार भी तुम वक़्त पर आओगे।
मेरे देर हो जाने पर, हक़्क़ से मुझ पर चिल्लाओगे।
क्या मेरे एक इल्तेज़ा पर अपना फैसला बदल पाओगे।
बिना शर्तो के बस एक बार, मेरे घर तक आओगे।
या यूँ ही जल्दी बाज़ी में सारे वादे चौखट पर छोड़ आओगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।

दिनाँक : 02 सितंबर 2022                    समय : 11: 10 सुबह
                                             रचना(लेखक)
                                            सागर गोरखपुरी

गुरुवार, 8 सितंबर 2022

सितंबर 08, 2022

कभी फुर्सत के पल | ज़िन्दगी पर शायरी | Poem On life | zindagi shayari in hindi | Best shayari on life | शुक्रिया ज़िन्दगी शायरी | ज़िन्दगी शायरी | सागर गोरखपुरी की शायरियां

कभी फुर्सत के पल मिले तो क़रीब आकर बैठ ऐ जिंदगी।
दिया है जो कुछ भी मुझे, उसका हिसाब तो कर ऐ जिंदगी।
तेरा शुक्रगुजार हूं कि तूने मुझे, ज़मीं से आसमां में उड़ने की आजादी दी।
कुछ ख्वाब अधूरे हैं उसे पूरा कर लेने की मोहलत दे ऐ जिंदगी।।


दिनाँक : 06 सितंबर 2022                    समय : 12:03 दोपहर
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

 

शनिवार, 13 अगस्त 2022

अगस्त 13, 2022

फौजी की जुबानी | Peam of soldiers | Sagar Gorakhpuri | फौजी की ज़िंदगी पर कविता | फौजी पर कविता | वीरों पर कविता | देश के जवानों पर कविता | बहादुरी पर हिंदी कविता | त्याग और बलिदान पर कविता | सैनिकों पर कविता

                                     फौजी की जुबानी
तुम्हे ये पता है कि ज़िन्दगी सिर्फ एक मर्तबा मिलती है।
और हम है कि शरहद पर हर रोज जीते और मरते हैं।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।

मरने जीने का खौप कहाँ किसे है।
हाथों में खुद की जान लिए फिरते हैं।
दस्तक़ देते है हर रोज वहाँ हम।
जहाँ से लौटना थोड़ा मुश्किल है।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
हर रोज झूठ का सहारा हम लेते है।
जब जब माँ से बातें करते है।
पता नही उसे अब कहाँ हूँ मैं।
हर रोज पुरानी लोकेशन बताते हैं।
दिल की बीमारी है उसे इस लिए हर बात छिपाते है।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
ज़िन्दगी जीने का हुनर हम से बेहतर किसी में नही है।
हर मुश्किल को बड़े शालीके से हम सुलझाते है।
रिश्ते, नाते, दोस्ती, प्यार, सभी को बाखूबी निभाते हैं।
दुश्मन दिख जाये जो शरहद पर फौलाद बन जाते है।
रख दे जो दुश्मन कदम धरा पर विक्रम बत्रा भी बन जाते है।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
धरती कहीं बर्फीली है कारगिल कहीं रेगिस्तान है।
हम ही हैं जिनका ह्रदय, कम ऑक्सीजन में भी करता काम है।
अंधी, तूफान सर्दी गर्मी ये सब भी हमसे परेशान हैं।
खड़े हुए हम जब भी जहां भी लौट जाते शैलाब है।
मरने जीने का खौप हमें कहाँ , हम तो दिलों में जिंदा रहते है।
ज़िंदा रहें तो शुर्खियों में, शाहिद हुए तो राजनीति बन जाते हैं।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।

दिनाँक : 27 जुलाई 2022                      समय : 03:30 दोपहर
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

शनिवार, 6 अगस्त 2022

अगस्त 06, 2022

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                                          लव शायरी 
तेरे जाने पर शोर बहुत था उस वक़्त।
अब गहरे खामोशी में भी शोर बहुत है।
दस्तक़ देती है तू हर रोज़ दिलो दिमाक पर।
पर तेरी बातों का बाहर शोर बहुत है।।
पाप

दिनाँक : 26 जुलाई 2022                        समय : 07: 45 शाम
                         रचना(लेखक)
                  सागर गोरखपुरी

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