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बुधवार, 18 जनवरी 2023

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                                             राजनीति
ठहरकर अरसे बाद मैंने राजनीति का खेल देखा।
हर शख्स एक जैसा था कोई बदला हुआ नहीं देखा।
सबकी जुबान से झूठ और लूट की बू बिखर रही थी। 
कोई भी शख्स वहां मुझे पाक साफ नहीं दिखा।।

महफिलों में खड़े होकर जाने क्या-क्या कह जाते हैं।
गड़े मुर्दे को खोदकर ये राजनेता बन जाते हैं।
दिखते नहीं है फिर ये कहीं भी, ईद का ये चांद हो जाते हैं।
अपनी सत्ता की खातिर जाने कितनों का खून बहाते हैं।            
      पुलवामा गलवान की शोर से यह फिर कुर्सी को बचाते हैं।।
कुछ हम भी हैं बेवकूफ जो इनकी बातों में आ जाते हैं।
बेबस और लाचार लोग तो ऐसे ही बहक जाते हैं।
जिनके वोटों से ये जा बैठते हैं जमीन से फलक पर।
उनके लिए हम फिर कीड़े मकोड़े बन जाते हैं।
अपनी सत्ता की खातिर जाने कितनों का खून बहाते हैं।                 पुलवामा गलवान की शोर से यह फिर कुर्सी को बचाते हैं।।

इनकी फितरत तो कमाल की है यह ट्विटर पर जाने क्या-क्या कह जाते हैं।
करते कुछ है, कहते कुछ, मीडिया में कुछ और दिखाते हैं।                जमीन पर कुछ काम नहीं दिखता इनका, जितना सदन में ये बताते हैं। 
हार जाने के डर से ये फिर लोगों को डराते हैं।
अपनी सत्ता की खातिर जाने कितनों का खून बहाते हैं।
      पुलवामा गलवान की शोर में यह फिर कुर्सी को बचाते हैं।।
भ्रष्टाचार, खून खराबा, वस्त्रहीन बनी अब राजनीति है।
डामा डोल है देश की नईया डुबो रहा भ्रष्टाचारी है।
राजनीति के घर में अब सिर्फ रहते नेता और व्यापारी है। ।
हमें तुम्हें अब कौन पूछता चुनाव में वक्त अभी बाकी है।
अब देश चलेगा राजनीति से, हम सब कहां से चलाते हैं।
अपनी सत्ता की खातिर जाने कितनों का ये खून बहाते हैं                पुलवामा गलवान की शोर में यह फिर कुर्सी को बचाते हैं।।

दिनाँक : 18 जनवरी 2023                      समय : 11.00 सुबह
                                                 रचना(लेखक)
                                               सागर गोरखपुरी

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