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गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

दिसंबर 31, 2020

2020 हिंदी कविता | poem on 2020 | 2020 पर हिंदी कविता | 31 दिसम्बर पर कविता | कविता 2020 | NEW YEAR PAR KAVITA |

                                 कविता

                                  2020

क्या थे वो दिन जब ये साल आया था ।
सपने सजाये थे कितने, कितने अरमान संजोया था।
तिनका तिनका जोड़कर एक आशिंयाँ बनाया था ।
सब बिखर गया एक झोंका हवाओं का इतनी तेज आया था।।

          हर मुल्क हर मज़हब को रौंद गया ये साल।
          उम्मीदें थी जितनी सबको,सबको कर गया बेहाल।
         अब देखता हूँ पूछे मुड़कर तो झनझनाहट सी होती है।
         कितनी तकलीफें देकर सभी को गुजर गया ये साल।।

अपनो की ही मैयत में न जाने दिया गया हमें।
खुशियाँ तो रह गयी, गम में ना सरीख होने दिया हमें।
हर एक शक्श ने कुछ न कुछ खो दिया है अपना।
अब जो रह गयी वो तकलीफ और परेशानी रह गयी।।

        तमाम खुशियों समेटें जब दहलीज़ पार की थी ।
        सितारों में अजीब सी चमक थी हर तरफ नूर था।
        फिर अचानक मुल्कों में रंजिशें बेहिसाब हो गयी।
        कहीं गलवां तो कहीं कराबाखा की युद्ध हो गयी।।

अब अल्विदे के वक़्त भी अवाम की हालत नाशाज़ है I
गरीबी, भुखमरी, बेरोगारी का तो बुरा हाल है I
डर और खौफ में जी रहा देखो हर एक इंशा I
इतनी बुरी हालत करके देखो जा रहा ये साल।।

          दिनाँक 30 दिसम्बर 2020 समय 11.00 रात
                                                       रचना(लेखक)
                                             अमित सागर(गोरखपुरी)

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

दिसंबर 23, 2020

मेरा दिल हिंदी कविता | Love poem | दिल पर कविता | हिंदी कविता इन दिल | टूटे दिल पर कविता | Poem broken heart | dil poem with sagar gorakhpuri


                                  कविता

                                 दिल मेरा

वहीं ताखे पर रखा है मैंने दिल निकाल कर।
कभी रोशनी की ज़रूरत पड़े तो उसे उठा लेना।
नामुराद दिल है मेरा जो बुझता ही नही।
ढूंढो उसे वहीं तो जलता ही मिलेगा।।

        बिना आग का धुंआ है इसमें बिना लव की लपट।
        खामोश जला करता है ये बेचारा शामों शहर।
        कभी जुस्तुजू हो गर मुलाक़ात की धड़कनों से।
        ढूंढो उसे वहीं तखहे में,तो धड़कता मिलेगा।।

बड़ा बेचारा है ये,नाज़ुक भी बहुत है।
उम्मीदों का आशिंयाँ लिए फिरता भी हैं।
लाचार होकर देखो वहीं पड़ा है तखहे में।
ढूढो उसे तो वहीं तड़पता मिलेगा।।

          बस यूँ ही कभी हशर्तों के पुल बांध लेता हैं।
          लालची नही बस ख्वाहिशों की उड़ान भर लेता है।
          उम्मीदों के जो पर है वो झाड़ चुके हैं उम्र के साथ।
          देखो वहीं तखहे में मेरा दिल,तो उछलता मिलेगा।।

खामोश है बहुत कुछ बोलता ही नही दिल मेरा।
शोर गुल से अब ये कतराता है हर पल।
कभी शुकुन ढूंढना हो तो चले आना यकीन मानो।
वही तखहे में दिल शुकुन लिए बैठा है मेरा।।
                                    दिल मेरा।।
                              
            दिनाँक  22 दिसम्बर  समय  11.00 रात
     
                                             रचना(लेखक)
                                           सागर(गोरखपुरी)

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

दिसंबर 16, 2020

मुक़म्मल इश्क़ कविता | love poem | प्यार पर कविता | कविता मुक़म्मल जहां | इश्क़ पर कविता | Poem on Complete love | Romance poem

                                   कविता

                              मुकम्मल इश्क़

गम नही की मुक़म्मल हमारा इश्क़ ना हुआ।
यूँ ही ना जाने क्यूँ इश्क़ उनसे बे इम्तेहां हुआ।
मीठे लफ्जों से शुरू की थी जो मुहब्बत की दास्तां।
तीखे जुबान से बस ये सिसिल यूँ ही खत्म हुआ।।
सही थे तुम हर वक़्त मैं ये जानता था मग़र।
कभी मेरे निगाहों से मुझे भी देख लिया होता।
अब जो हालात हैं वो कभी होते ही नही।
एक बार झूठे ही सही,बस यूं ही इक़रार कर लिया होता।।
तेरी उम्मीदों पर बेशक हम खरे ना उतरें।
मेरी उम्मीदें भी तुझसे बेवजह तो नही थी।
कच्चे धागे से तुरपा था हमने जो रिश्तों का मियांन।
इतने कच्चे थे कि बस यूँ ही उधड़ गये।।
उलझती है डोर जैसे,वैसे उलझ सी जाती हो।
सुलझाऊँ जितना भी,खींचकर गांठ बन जाती हो।
मुक़म्मल इश्क़ की खातिर हर डोर सुलझाता हूँ।
कभी खुद का,तो कभी तेरा गुन्हेगार बन जाता हूँ।।
तेरी नजरों से हर वक़्त गिरते हैं सम्भलतें हैं।
सहारा ढूंढते हर हैं पल,हर बार फिसलतें हैं।
कैसे कहूँ मैं वही हूँ,जो पहली मुलाक़ात मे था।
वही सितारा हूँ जो हर वक़्त तुझ पर टिटिमाता था।।
                    
                      ना वो समझते हैं ना मैं समझता हूँ।
                     बस दिल समझता है मुक़म्मल इश्क़ ना हुआ।।

            दिनाँक 15 दिसम्बर 2020  समय 10.00 रात
                                               रचना(लेखक)
                                             सागर(गोरखपुरी)

गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

दिसंबर 10, 2020

जी.बी रोड अतिंम भाग हिंदी कहानी | G.B पर कहानी | G.B रोड एक प्रेम कहानी | LOVE STORY |

                                     कहानी

                       जी.बी रोड G.B ROAD

                                     
(अभी तक इस कहानी में आपने पढ़ा कि किस तरफ पूरे मुल्क में मजहबी दंगे हो रहे थे,और कैसे आरती नज़ीर एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं,एक रात एक रिपोर्टर नज़ीर को G.B रोड ले जाता है)
                                   (अब आगे)

                                 (अंतिम भाग)

तभी रिपोर्टर रिक्शे से कूदकर भागता हुआ सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने लगता है और नज़ीर गली नम्बर 64 से थोड़ी दूर हटकर रिक्शे को किनारे लगाने लगता है कि कुछ लोग उसके सिर पर जोर से लोहे की सरिया मारते है और उसे बेहोस हालत में खिंचते हुए रोड पर ले जातें है अभी एक महिला ताराबाई(50) छत से आवाज लगती है कौन है वहां छोड़ो उसे कहते हुए छत से भागती हुई नज़ीर के पास पहुंचती है,नज़ीर बेहोस पड़ा था उसके सिर से खून बहुत बह रहा था ताराबाई किसी तरह नज़ीर को अपने कमरे तक ले जाती है।
रिपोर्टर 15 मिनट बाद सीढ़ियों से उतरकर नज़ीर को ढूंढता है और फिर वो सीढियों से भागता हुए ऊपर चला जाता है,मुल्क में हर तरफ कर्फ्यु का आलम था चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था और उन सन्नाटे में मजहबी दरिंदे,नज़ीर जैसे तमाम लोगों को अपना शिकार बना रहे थे पर दिल्ली की हालत तो कुछ और थी जो दिखा उसे ठोक दिया,ऐसे माहौल में एक भी ऐसा दवाखाना नही था जो खुला हो,नज़ीर के सिर से खून लगातार बह रहा था ताराबाई ने अलमीरा से अपना पुराना दुपट्टा निकला और नज़ीर के चोट वाली जगह पर बांध दिया, 24 घंटे बाद जब नज़ीर को होश आता है तो एक छोटे से कमरे में अपने आपको पाता है नज़ीर घबरा सा जाता है नज़ीर उठकर दरवाजे की तरफ जाता है तभी दरवाजा अचानक से खुल जाता है ताराबाई नज़ीर को पकड़कर,तुम्हारी हालत अभी नाजुक है कहकर नज़ीर को बिस्तर पर बिठा देती है नज़ीर ताराबाई का हाथ पकड़र मैं यहां कैसे आया,पूछता है तभी ताराबाई कहती है कल रात तुम्हे दंगाइयों ने मारकर रोड पर फेंक दिया था मैंने तुम्हे डॉक्टर के पास ले जाने की बहुत कोशिश की लेकिन दिल्ली की हालत खराब होने के कारण,डॉक्टर ने तुम्हे देखने से इनकार कर दिया इस लिए मैं तुम्हे यहां अपने घर ले आई,इतना सुनते ही नज़ीर ताराबाई से लिपटकर रोने लगता है ताराबाई अपने आँखे के आँशु को छुपातें हुए,नज़ीर से कहती है तुम यही रुको मैं तुम्हारे लिए कुछ  खाने को लाती हूँ तराबाई जबतक कुछ खाने को लाती इतने ही देर में नज़ीर दरवाजा खोलकर बाहर निकलता है
वहाँ का नज़ारा देखकर नज़ीर घबरा जाता है और वो वहां से भागता हुआ सीढ़ियों दे नीचे उतर कर अपने रिक्शे को ढूंढने लगता है रिक्श उसे वहीं एक किनारे खड़ा मिलता है, नज़ीर अपने रिक्शे को लेकर तेज़ी से चलाता हुआ अपने घर चला जाता है उधर ताराबाई हाथों रोटियां लिये कमरे के अन्दर प्रवेश करती है,पर नज़ीर तो जा चुका था वो मायूस होकर वहीं कमरे में बैठ जाती है।
दो महीने बाद मुल्क की हालात में सुधार था अवागमन भी धीरे धीरे शुरू हो चुका था लेकिन नज़ीर की हालत आरती को लेकर कुछ ठीक नही थी,एक दिन नज़ीर सोनो की तैयारी कर ही रहा था कि तभी उसे किसी ने आवाज लगाई,नज़ीर दरवाजे को खोलकर बाहर निकलता है तो सामने रिपोर्टर खड़ा था नज़ीर कहता है अरे आप यहां कैसे,बहुत दिनों बाद,कहिये कैसे आना हुआ,उस रात के तुम्हरे पैसे रह गये गए थे वही देने आया हूँ रिपोर्टर जेब से पैसे निकालकर देने लगता है तभी नज़ीर अरे इसकी क्या ज़रूरत थी ये तुम्हरे मेहनत के पैसे है रखलो इसे रिपोर्टर कहता है,नज़ीर पैसे को रखते हुए रिपोर्टर से कहता है एक बात पूछ सकता हूँ आपसे,रिपोर्टर हां हां क्यूँ नही पूछो,आप उस रोज G.B रेडलाइट एरिया में मुझे क्यूँ ले लगये थे सिर्फ अपने शौक की खातिर मुझे मौत के मुंह में धकेल दिया,तुम मुझे गलत समझ रहे हो मै एक रिपोर्टर हूँ और सच कह रहा हूँ मैं वहाँ किसी की मददत करने गया था तुम्हे नीचे आके बहुत ढूंढा भी पर तुम वहां नही थे मुझे पता है तुम यकीन नही करोगे,अगर तुम्हारे पास समय हो तो मै तुम्हे वहां फिर ले जाना चाहता हूँ Please मना मत करना,जी ज़रूर चलूंगा मुझे भी वहां किसी से मिलना है जरा दो मिनट ठहरिये बस मैं अभी आया नज़ीर इतना कहकर कमरे के अंदर जाता हैं और हाथों में थैला लिए बाहर आके रिपोर्टर से कहता है अब चलिए सर नज़ीर अपना रिक्शा निकलता है और G.B रोड गली नम्बर 64 की तरफ चल देता है।
30 मिनट के बाद नज़ीर और रिपोर्टर G.B रोड पहुंचते हैं।
 नज़ीर रिक्शे को एक कोने में लगाकर तेज़ी से गली नम्बर 64 की तरफ जाता है तभी रिपोर्टर नज़ीर को कहता है उस तरफ नही इस तरफ चलना है पर मेरी माँ तो इधर रहती है नज़ीर कहता है,पर ये तो रेड लाइट एरिया है और तुम्हारी माँ यहाँ,तभी नज़ीर कहता है माँ सिर्फ माँ होती है चाहे वो रेड लाइट एरिया की हो या मेरे घर की,आप आइए तो मेरे साथ,रिपोर्टर नज़ीर के साथ चल देता हैं नज़ीर सीढ़ियों से चढ़कर दूसरी मंजिल पर पहुंचता है उस वक़्त तकरीबन रात के 11 बजके 15 मिनट हुए थे जब नज़ीर ने एक दरवाजे को खटखटाया था रिपोर्टर नज़ीर के पीछे ही खड़ा था थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है सामने ताराबाई खड़ी थी नज़ीर को देखकर उनकी आंखे भर आईं थी नज़ीर माँ  कहकर ताराबाई से लिपटकर रोने लगता है ताराबाई अपने आँचल से उसके आँशु पोछकर उसे अंदर ले जाती हैं रिपोर्टर सोच में पडजाता है उसे बड़ी हैरानी होती है कि नज़ीर एक मुस्लिम और ताराबाई(50) हिन्दू इतने बड़े रेड लाइट एरिया की वैश्या उसकी माँ,ये कैसे हो सकता है,अभी नज़ीर ने रिपोर्टर साहब कहकर आवाज लगाई,रिपोर्टर अंदर जाते ही नज़ीर उससे कहता है इन्होंने उस वक़्त मेरी जान बचाई थी जब आप मुझे यहां लेकर उस दिन आये थे।
मैं रोड पर बेहोश पड़ा था तब इन्होंने एक मां की तरफ मेरी सेवाकर मेरी जान बचा दी, इतना कहकर नज़ीर अपने थैले से एक खूबसूरत सी साड़ी निकलता है ताराबाई को जैसे ही देता है ताराबाई नज़ीर को सीने लगाकर रोने लगती है नज़ीर उनके हाथों को पकडकर आप परेशान मत हो अम्मी मै हमेशा यहां आता रहूंगा और हर मुश्किल में आपके साथ रहूंगा,इस वक़्त मुझे इजाज्जत दीजिए, कहकर नज़ीर रिपोर्टर के साथ चल देता है सीढ़ियों से उतरकर रिपोर्टर बगल वाली गली के सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर जाने लगता हैं पीछे से नज़ीर कहता है हम जा कहाँ रहे है,चारो तरफ देह व्यापार करने वाली लड़कियां ही लड़कियां दिख रही थी,तभी रिपोर्टर नज़ीर से कहता है तुम कोई सवाल ना करो बस मेरे साथ आओ,नज़ीर जी सर कहकर पीछे पीछे सीढ़ियाँ चढ़ने लगता हैं तीसरी मंजिल पर रिपोर्टर अचानक रुककर अपनी दाईं तरफ मुड़कर एक कमरे के अंदर जाता हैं उसके सामने से एक दस साल की लड़की भागते हुए रिपोर्टर से आकर लिपट जाती है रिपोर्टर नीछे झुककर उस लड़की से पूछता है दीदी कहाँ है लड़की हाथों से इशारा करके बताती है एक लड़की जिसकी उम्र तकरीबन 24 साल रही होगी वो खिड़की पर खड़ी थी।
नज़ीर ने दूर से ही  रिपोर्टर से कहा कौन है ये,उस रात मैं इसी की जान बचाने आया था रिपोर्टर कहता है,मजहबी दंगे में कुछ हैवानो ने इसके चेहरे को तेज़ाब से झुलाश दिया है अब इसकी ज़िन्दगी किसी लाश से कम नही है,नज़ीर हिम्मत करके उस लड़की के पास जाना चाहता था पर उसकी हिम्मत नही हुई,वो दौड़ता हुआ सीढ़ियों से नीचे उतर जाता है और अपने रिक्शे पर जाके बैठ जाता है कुछ देर बाद रिपोर्टर नीचे नज़ीर के पास आता है दोनों रिक्शे बैठ जाते है दो मिनट बाद नज़ीर को जाने क्या हो जाता है वो रिक्शे से उठकर उन्ही सीढियों से उस लड़की के कमरे तक जाता है लड़की खिड़की पर खड़ी थी नज़ीर वहीं दरवाजे से सट कर नीचे बैठ जाता हैं और उस लड़की को देखकर रोने लगता है उसे पता चल गया था कि वो लड़की आरती ही है नज़ीर का दिया हुआ कंगन उस लड़की ने हाथों में पहन रखा था नज़ीर रो ही रहा था कि तभी उस लड़की ने पीछे मुड़कर देखा,वो नज़ीर को देखकर जोर से चीखी और नज़ीर कहकर जोर जोर से रोने लगती है,आरती एक वैश्य की बेटी थी इसी लिए उसने कभी अपना पता ना तो नज़ीर को बताया और ना ही का कभी कॉलेज में सही पता लिखाया।
दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे इस लिए नज़ीर ने आरती से शादी कर ली।
(दो साल बाद नज़ीर और आरती अपने B TECH की पढ़ाई खत्म का करके एक ही कंपनी में बतौर इंजीनियर दोनो नौकरी करने लगते है उनकी एक बेटी है और वो दोनो  अपनी दुनियां में खुश हैं।)।।।।
                            कहानी समाप्त
(इस कहानी से हमे सीखा की मजहब की रंजिश हमेशा इंशान को तकलीफ देते है,हमने ताराबाई जैसे इंशान को भी देखा और प्यार किसी जात पात,ऊंच नीच,भेदभव,का मोहताज नही ये भी जाना।)
 
                  दिनाँक 4 दिसम्बर 2020 11.00 सुबह
                                            रचना(लेखक)
                                          सागर(गोरखपुरी)

       

शनिवार, 5 दिसंबर 2020

दिसंबर 05, 2020

G.B ROAD PART 2 HINDI KAHANI | गली नम्बर 64 कहानी | G.B Road par kahani | LOVE STORY ON G.B ROAD | व्यश्या पर कहानी

                                     कहानी

                    G.B ROAD जी . बी रोड

(अभी तक इस कहानी में आपने पढ़ा की किस तरह नज़ीर G.B Road पर अपने रिक्शे को मोड़ता है और कॉलेज में उसकी मुलाकात आरती से होती हैं मजहबी दंगे में कैसे दोनो बिछड़ जाते हैं और सरकार द्वारा एक कड़ा फैसला)

                                           भाग 2
                                        (अब आगे)

इस फैसले ने देश की हालत को और भी नाजुक बना दिया था चारो तरफ आवाम में कत्लेआम हो रहा था नज़ीर की हालत दिन बा दिन खराब हो रही थी वो हर रोज कालेज जा कर रोशन चाचा(गेटमैन) से पूछा करता था चाचा आरती आयी थी क्या ,कुछ पता चला उसका,एक दिन रोशन चाचा(गेटमैन) ने नज़ीर से कहा,आरती का पता तो मैं लेना भूल गया बेटा लेकिन उसे मैने दो रोज पहले लाइब्रेरी की तरफ जाते हुए देखा था,उस वक़्त मेरे जेहन में नही आया कि मैं उससे उसका पता मांग लूं और तुम्हारे बारे में बताऊं,इतना सुनते ही नज़ीर लाइब्रेरी की तरफ भागता है पर लाइब्रेरी में ताला लगा हुआ था।
नज़ीर बेवजह दरवाजे को थपथपाने लगता है तभी एक कोने से आवाज आती है,अरे कौन है भाई,आवाज सुनते ही नज़ीर पीछे की ओर घूमता हैं तो सामने लाइब्रेरियन खड़ा था वो नज़ीर से कहता है अरे नज़ीर क्यूँ दरवाजा तोड़ रहे हो क्या बात है और क्या हालत बना रखी है तुमने अपनी,नज़ीर घबराते हुए लाइब्रेरियन से पूछता है सर क्या मुझे आरती का पता मिल सकता है हां क्यूँ नही तुम अंदर तो आओ,लाइब्रेरियन अपने रजिस्टर में आरती का पता ढूंढने लगता है और इतेफाक से दो दिन पहले की एंट्री में आरती का पता नज़ीर को मिल जाता है नज़ीर अपने कांपते हुए हाथों से एक पन्ने पर आरती का पता लिखता है और Thanks Sir बोलकर चला जाता है।
नज़ीर कई दिनों तक आरती का पता लिए उसे ढूंढता रहा था,आखिर कर एक महीने बाद नज़ीर को आरती के घर का पता चल ही जाता है नज़ीर,आरती के घर के सामने  खड़ा था वो अपने जेब से एक कागज का टुकड़ा निकलता है जिस पर आरती के घर का पता लिखा हुआ था उसे देखकर नज़ीर घर के नेमप्लेट को देखता है पता वही था जो नज़ीर के पास था वो आगे बढ़कर दरवाज़े को खटखटाने लगता है दरवाजा थोड़ी से बाद खुलता है।
 दरवाजें पर एक (30) साल की लड़की नज़ीर से कहती हैं जी कहिये,नज़ीर घबराते हुए अपने हाथों में लिए हुए कागज के टुकड़े को उस लड़की को देते हुए बोलता है,ये पता यहीं का हैं,जी हां यहीं का है पर आपको किससे मिलना है,मैडम मुझे आरती से मिलना था दरवाजे पर खड़ी लड़की को बड़ी हैरानी होती है और वो नज़ीर से कहती है क्या मैं आपका शुभ नाम जान सकती हूं,मैं नज़ीर हूँ और आप कौन? मैं आरती हूँ ,नज़ीर कहता है पता तो ठीक है ना,जी बिल्कुल सही पता है पर मेरे सिवा यहां कोई और आरती नही रहती,नज़ीर उस लड़की से कागज का टुकड़ा लेता है और अपने रिक्शे को लेकर घर चला जाता है,नज़ीर की हालत अब बात से बत्तर होती जा रही थी दूसरी तरफ पूरे मुल्क में कर्फ्यू लग चुका था और दिल्ली की तो हालत ना पूछिये बड़ी नाजुक बनी हुई थी जो पैसे नज़ीर ने कॉलेज की फीस के लिए इकट्ठा कर रखा था वो भी अब खत्म हो चले थे लोगों का आवागमन बंद होने से नज़ीर को अब सवारी भी बड़ी मुश्किल से मिल रही थी।
15 जनवरी 1993 रात के 12 बजके 30 मिंट हुए थे तभी  किसी ने नज़ीर का दरवाजा खटखटाया,नज़ीर ने अंदर से आवाज लगाई कौन है भाई,बाहर से आवाज आई मैं सचिन गंगवार एक प्रेस रिपोर्टर हूँ अभी नज़ीर जल्दी से दरवाजा खोलता है,जी कहिये क्या मदद कर सकता हूँ मैं आपकी,क्या मुझे G.B ROAD तक छोड़ सकते हो,नज़ीर कहता है इस वक़्त और ऐसे माहौल में ,तभी रिपोर्टर, तुम उसकी चिंता मत करो मै हूँ तू बस ना मत करो,नही तो मैं किसी को इंसाफ नही दिला पाऊंगा,नज़ीर,फिर तो ज़रूर चलूंगा, वो कंबल ओढ़ता है और कमरे को ताला लगाकर नज़ीर रिपोर्टर को अपने रिक्शे पर बिठाकर G.B ROAD की तरफ चल देता हैं जैसे ही नज़ीर रिक्शे को गाली नम्बर 64 की तरफ मोड़ता हैं तभी रिपोर्टर.........

                               (भाग 2 समाप्त)

          (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

           दिनाँक 01 दिसम्बर 2020  समय 11.00 रात
                                                रचना(लेखक)
                                            सागर(गोरखपुरी)





सोमवार, 30 नवंबर 2020

नवंबर 30, 2020

HINDI KAHANI G.B ROAD PART 1 | कहानी गली नम्बर 64 पर कहानी | 1992 दंगे पर हिन्दी कहानी | Love story |

                                  कहानी

                      जी बी रोड G.B ROAD

तारीख     16 दिसम्बर 1992
दिन          बुधवार
स्थान       दिल्ली
मौसम      ठंड का
पात्र         1. नज़ीर(25)
               2. आरती(24)
               3. रोशन(55) गेटमैन
               4. तारा बाई(50)
      
रात के तकरीबन तीन बज रहे थे,चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, सन 1992 दिसम्बर का महीना था उस रात ठंड कुछ जादा ही पड़ रही थी कोहरा कुछ इतना था कि सिर्फ 50 मीटर तक ही दिखाई दे रहा था नज़ीर (25) B TECH फाइनल ईयर का स्टूडेंट था वो अपनी पढ़ाई की खातिर अपना शहर छोड़कर दिल्ली चला आया था नज़ीर हरियाणा के एक छोटे से गांव का रहने वाला था उसके घर मे अम्मी,अब्बा के इलावा उसकी एक छोटी बहन भी थी, घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उसे दिल्ली का रुख करना पड़ा, नज़ीर दिन में पढ़ाई और रात में रिक्शा चलाया करता था।
रात के 3 बजे थे जब नज़ीर ने अपने रिक्शा को अंडर पास के रास्ते से निकालकर G.B ROAD के गली नम्बर 64 की तरफ मोड़ा था  ये पहली बार था जब नज़ीर ने इस रोड पर अपने रिक्शे को घुमाया था उसने एक पुराना कंबल ओढ़ रखा था गले मे मफलर और सिर में टोपी पहन रखी थी, वो रिक्शे को चलाते हुए जा रहा था नज़ीर पहली सवारी को छोड़कर किसी दूसरी सवारी की तलाश में था गली में मुड़ते ही नजारा ही कुछ और था नज़ीर को पता ही नही चला कि उस गली में दिन है कि रात, वो नींद से जैसे जग सा गया हो, हर तरफ सिर्फ खूबसूरत लड़कियां ही दिखाई दे रहीं थी नज़ीर को कुछ पता नही था कि उसने अपने रिक्शे को कहां मोड़ दिया है नज़ीर को दिल्ली आये सिर्फ 2 महीने ही हुए थे और उसके साथ ये पहला वाक्या था। नज़ीर अपने रिक्शे को तेज़ी से चलाकर वहां से निकल जाता है वो थोड़ा घबरा  सा जाता था।
अगले दिन सुबह 11 बजे नज़ीर अपने कॉलेज पहुँचता है उस दिन वो थोड़ा लेट हो गया था नज़ीर ने जल्दी से अपनी साइकिल को पार्क किया और हाथों में बैग को लिए हुए तेज़ी से क्लास रूम की तरफ जाता है तभी पीछे से गेट मैन रोशन(55) आवाज देता है अरे नज़ीर आज कहाँ देर हो गयी, नज़ीर बिना पीछे मुड़े ही बोलता है वापस आके  बताता हूं रोशन चाचा, इतना कह कर नज़ीर क्लास रूम की तरफ चला जाता है,क्लास रूम के दरवाजे पर पहुचकर नज़ीर अपनी घड़ी देखता है ओ sheet 10 मिनट की देर हो गयी कहकर फिर वो धीरे से क्लास रूम के अंदर झांकता है टीचर क्लास ले रहे थे।
नज़ीर निराश होकर कॉलेज की लाइब्रेरी में चला जाता है वहाँ उसकी मुलाकात  आरती(24) से होती हैं,आरती, नज़ीर को  देखकर खड़ी हो जाती है क्योंकि आरती,नज़ीर से एक साल जूनियर थी नज़ीर अपने हाथों से इशारा करके आरती को बैठ जाने को कहता है ये पहली बार था जब आरती और नज़ीर की मुलाक़ात हुई थी।
समय बीत रहा था आरती और नज़ीर की मुलाक़ात भी बढ़ने लगी थी शायद दोनो एक दूसरे को पसंद करने लगे थे लेकिन इन सब के बीच कॉलेज का माहौल भी बदल रहा था आरती और नज़ीर का रिश्ता लोगों को रास नही आ रहा था वो भी सिर्फ इस लिए की नज़ीर मुसलमान था और आरती एक हिन्दू लड़की 
(हमारे  समाज की रूढ़िवादी परम्पराएं हमेशा से इंसानों को तकलीफ पहुचाती रही है) 
उन दिनों देश की  हालत भी मजहबी रंजिशों के कारण खराब चल रही थी और इसका असर  कॉलेज के साथ साथ आरती और नज़ीर के रिश्तों पर भी पड़ा रहा था,दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे लेकिन मजहबी रंजिशों ने उन्हें अलग कर दिया,कालेज में हर तरफ तोड़ फोड़ होने लगी और इसी बीच सरकार ने एक कड़ा फैसला लेते हुए मुल्क के सारे स्कूल,कालेज,विश्वविद्यालय को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा कर दी इस फैसले ने..............

                               (भाग 1 समाप्त)
          (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)

            दिनाँक 29 नवम्बर 2020 समय 2.45 दोपहर
      
                                                रचना(लेखक)
                                             सागर(गोरखपुरी)












मंगलवार, 24 नवंबर 2020

नवंबर 24, 2020

बलात्कार हिंदी कविता | Poem On Rape | महिलाओं पर कविता | महिला उत्पीड़न पर कविता |

                                    कविता

                              बलात्कार Rape

नोच रहे थे जिस्म सब मेरा,बेरहमी से हमें दबोच रहे थे।
फाड़ रहे थे कपड़े मेरे,नाखूनों से हमें कुरेद रहे थे।
मैं चीखी भी चिल्लाई भी, बहुत गुहार लगाई भी।
 बेबस और लाचार पड़ी थी हमदर्दी किसी ने दिखाई नही।।
मैं भाग रही थी वो खींच रहे थे।
ज़मीन पर मुझे वो घसीट रहें थे।
वस्त्रहीन मैं बेहोस पड़ी थी।
वो नोच रहे थे बस,वो नोच रहे थे।।
कभी डर रही थी कभी मैं रो रही थी ।
घबराके वहीं एक कोने में सिमट रही थी।
शर्म सार से मैं नग्न पड़ी थी।
उनकी निगान्हे मुझे घूर रही थी।।
एक पल में मुझसे सब कुछ छीन गया।
पूछो ना अब क्या मेरी हालत है।
ज़िल्लत भारी ज़िन्दगी अब हैं मेरी।
अब बस तोहमत ही बस तोहमत हैं।।
मिले हर ऐसे शख्स को कड़ी सजा।
जो हमारे सपने हमसे छीन रहें हैं।
अपने हवस की खातिर वो हमें।
ज़िन्दा लाश बनाकर बस छोड़ रहें।।
शर्म आती है मुझे ऐसे ज़िन्दगी पर ।
अब सबके लिए मै सिर्फ एक दोसी हूँ।
चुभती हैं अब सबकी घिनौंनी निगान्हे।
यूँ ही घूट घूटकर ये ज़िन्दगी कटती है।।

                     घूट घूटकर ये ज़िन्दगी कटती है।।

        दिनाँक 23 नवम्बर 2020  समय 1.00 दोपहर
    
                                            रचना(लेखक)
                                          सागर(गोरखपुरी)







शनिवार, 21 नवंबर 2020

नवंबर 21, 2020

खिलाड़ी हिंदी कविता | धावक पर कविता | खिलाड़ियो पर कविता |Poem on runner |

                                     कविता

                             खिलाड़ी Player

चला हूँ मिलों न जाने कितना मैं।
उससे भी कहीं जादा मैं दौड़ गया।
तकमें जीतें है कितने देश की खातिर।
उसकी गिनती भी अब मैं भूल गया।
बेरोजगार था पहले भी मैं,बेरोजगार ही रह गया।।
तलवे घिस गये पैरों के,कितने जूते मैने फाड़ दिए।
शर्दी,गर्मी,बारिश कितने हमने ऐसे ही गुजार दिए।
खून जितना शरीर में था,वो पसीनें में बह गया।
बेरोजगार था पहले भी मैं,बेरोजगार ही रह गया।।
हाथों में थे मैडल बहुत अखबारों था मेरा नाम।
छपते रहे तस्वीर मेरे,हर जगह था मेरा सम्मान।
अब हालत बत से बत्तर हैं,खाने को हैं हम मोहताज।
सपने जो देखें थें सारे,वो बिखर गयें हैं सब ख्वाब।।
दौड़ हूँ हर ट्रैक पर मैं,नामुमकिन जीत भी जीत गया।
हार गया मैं हौसले की जंग,थक कर मैं अब बैठ गया।
मजबूरी और लाचारी में सारे मैडल मै बेच गया।
बेरोजगार था पहले भी मैं,बेरोजगार ही रह गया।।
नये खिलाड़ी भी आये हैं अब इनका तो सम्मान करो।
इनके भी है बहुत से सपने,अब उनको तो साकार करो।
हमने तो दे दी कुर्बानी,इनकी मेहनत ना बेकार करो।
लाओ इनके लिए भी नए अवसर ,इनका ना अपमान करो।
देश की आन और शान हैं ये,अब इनको ना बेरोजगार करो।।
 
          दिनाँक 21 नवम्बर 2020  समय 3.00 दोपहर
                                             रचना(लेखक)
                                           सागर(गोरखपुरी)








सोमवार, 16 नवंबर 2020

नवंबर 16, 2020

कट रही है ज़िन्दगी हिंदी कविता | Love poem | Life is getting cut |Hindi kavita zindagi | प्यार की कविता

                                कविता

                        कट रही है ज़िन्दगी

तेरी हर यादों को समेटें कट रही है ज़िन्दगी।
तेरे तस्वीरों के सहारे चल रही है ज़िन्दगी।
झोंका हवाओं का कुछ इस क़दर चला है।
अब तो तेरी बातों के सहारे कट रही है ज़िन्दगी।।
मुमकिन नामुमकिन में उलझ रही है ज़िन्दगी।
बस बात बिबाद से यूँ ही फंस रही है ज़िन्दगी।
कुछ यादें है जो कभी पीछा नही छोड़ती मेरा।
अब तो लड़ाई झगड़े के सहारे कट रही है ज़िन्दगी।।
हशरतें नाकामियां मिली,हम हार गयें ए जिन्दगी।
मुहब्बत पीछे रह गयी मेरी कमीटमेंट जीत गई तेरी।
मैं गलतफैमियाँ लिए फिरता रहा तुझसे उम्मीद की।
अब तो पुरानी यादों के सहारे कट रही है ज़िन्दगी।।
मोबाइल को सिराहने रखकर हर रोज सो जातें है।
msg आये कभी, कोई तो घबरा के उठ जातें हैं।
ये सिलसिला भी बंद कर दिया यादों का हमने।
अब तो गुस्से के सहारे मेरी कट रही है ज़िन्दगी।।
तुम मानती नही मैं समझता नही।
गलती किसकी है कोई जानता नही।
तुम्हारी तस्वीरें देख लो तो यकीन हो जाता है।
समझ आ जाता है कि तुम बदली हो कि नही।।
तुम्हे ऊंचाइयां पसंद है मैं ज़मी पर चलना चाहता हूँ।
तुम्हे  उड़ना हैं गगन में,मैं ठहरना चाहता हूं।
तुम्हे मालूम नही की हवाओं में घर नही बनतें।
सिर्फ ज़मी पर रहकर आशियाँ बनाये जातें हैं।
समझेंगी कभी तू मेरी बातों को यकीन है मुझे।
अब तो इसी इंतेज़र के सहारे कट रही हैं ज़िन्दगी।।

                दिनाँक  16 सितम्बर 2020  4.25 शाम
  
                                          रचना(लेखक)
                                       सागर(गोरखपुरी)







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