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गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

जी.बी रोड अतिंम भाग हिंदी कहानी | G.B पर कहानी | G.B रोड एक प्रेम कहानी | LOVE STORY |

                                     कहानी

                       जी.बी रोड G.B ROAD

                                     
(अभी तक इस कहानी में आपने पढ़ा कि किस तरफ पूरे मुल्क में मजहबी दंगे हो रहे थे,और कैसे आरती नज़ीर एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं,एक रात एक रिपोर्टर नज़ीर को G.B रोड ले जाता है)
                                   (अब आगे)

                                 (अंतिम भाग)

तभी रिपोर्टर रिक्शे से कूदकर भागता हुआ सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने लगता है और नज़ीर गली नम्बर 64 से थोड़ी दूर हटकर रिक्शे को किनारे लगाने लगता है कि कुछ लोग उसके सिर पर जोर से लोहे की सरिया मारते है और उसे बेहोस हालत में खिंचते हुए रोड पर ले जातें है अभी एक महिला ताराबाई(50) छत से आवाज लगती है कौन है वहां छोड़ो उसे कहते हुए छत से भागती हुई नज़ीर के पास पहुंचती है,नज़ीर बेहोस पड़ा था उसके सिर से खून बहुत बह रहा था ताराबाई किसी तरह नज़ीर को अपने कमरे तक ले जाती है।
रिपोर्टर 15 मिनट बाद सीढ़ियों से उतरकर नज़ीर को ढूंढता है और फिर वो सीढियों से भागता हुए ऊपर चला जाता है,मुल्क में हर तरफ कर्फ्यु का आलम था चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था और उन सन्नाटे में मजहबी दरिंदे,नज़ीर जैसे तमाम लोगों को अपना शिकार बना रहे थे पर दिल्ली की हालत तो कुछ और थी जो दिखा उसे ठोक दिया,ऐसे माहौल में एक भी ऐसा दवाखाना नही था जो खुला हो,नज़ीर के सिर से खून लगातार बह रहा था ताराबाई ने अलमीरा से अपना पुराना दुपट्टा निकला और नज़ीर के चोट वाली जगह पर बांध दिया, 24 घंटे बाद जब नज़ीर को होश आता है तो एक छोटे से कमरे में अपने आपको पाता है नज़ीर घबरा सा जाता है नज़ीर उठकर दरवाजे की तरफ जाता है तभी दरवाजा अचानक से खुल जाता है ताराबाई नज़ीर को पकड़कर,तुम्हारी हालत अभी नाजुक है कहकर नज़ीर को बिस्तर पर बिठा देती है नज़ीर ताराबाई का हाथ पकड़र मैं यहां कैसे आया,पूछता है तभी ताराबाई कहती है कल रात तुम्हे दंगाइयों ने मारकर रोड पर फेंक दिया था मैंने तुम्हे डॉक्टर के पास ले जाने की बहुत कोशिश की लेकिन दिल्ली की हालत खराब होने के कारण,डॉक्टर ने तुम्हे देखने से इनकार कर दिया इस लिए मैं तुम्हे यहां अपने घर ले आई,इतना सुनते ही नज़ीर ताराबाई से लिपटकर रोने लगता है ताराबाई अपने आँखे के आँशु को छुपातें हुए,नज़ीर से कहती है तुम यही रुको मैं तुम्हारे लिए कुछ  खाने को लाती हूँ तराबाई जबतक कुछ खाने को लाती इतने ही देर में नज़ीर दरवाजा खोलकर बाहर निकलता है
वहाँ का नज़ारा देखकर नज़ीर घबरा जाता है और वो वहां से भागता हुआ सीढ़ियों दे नीचे उतर कर अपने रिक्शे को ढूंढने लगता है रिक्श उसे वहीं एक किनारे खड़ा मिलता है, नज़ीर अपने रिक्शे को लेकर तेज़ी से चलाता हुआ अपने घर चला जाता है उधर ताराबाई हाथों रोटियां लिये कमरे के अन्दर प्रवेश करती है,पर नज़ीर तो जा चुका था वो मायूस होकर वहीं कमरे में बैठ जाती है।
दो महीने बाद मुल्क की हालात में सुधार था अवागमन भी धीरे धीरे शुरू हो चुका था लेकिन नज़ीर की हालत आरती को लेकर कुछ ठीक नही थी,एक दिन नज़ीर सोनो की तैयारी कर ही रहा था कि तभी उसे किसी ने आवाज लगाई,नज़ीर दरवाजे को खोलकर बाहर निकलता है तो सामने रिपोर्टर खड़ा था नज़ीर कहता है अरे आप यहां कैसे,बहुत दिनों बाद,कहिये कैसे आना हुआ,उस रात के तुम्हरे पैसे रह गये गए थे वही देने आया हूँ रिपोर्टर जेब से पैसे निकालकर देने लगता है तभी नज़ीर अरे इसकी क्या ज़रूरत थी ये तुम्हरे मेहनत के पैसे है रखलो इसे रिपोर्टर कहता है,नज़ीर पैसे को रखते हुए रिपोर्टर से कहता है एक बात पूछ सकता हूँ आपसे,रिपोर्टर हां हां क्यूँ नही पूछो,आप उस रोज G.B रेडलाइट एरिया में मुझे क्यूँ ले लगये थे सिर्फ अपने शौक की खातिर मुझे मौत के मुंह में धकेल दिया,तुम मुझे गलत समझ रहे हो मै एक रिपोर्टर हूँ और सच कह रहा हूँ मैं वहाँ किसी की मददत करने गया था तुम्हे नीचे आके बहुत ढूंढा भी पर तुम वहां नही थे मुझे पता है तुम यकीन नही करोगे,अगर तुम्हारे पास समय हो तो मै तुम्हे वहां फिर ले जाना चाहता हूँ Please मना मत करना,जी ज़रूर चलूंगा मुझे भी वहां किसी से मिलना है जरा दो मिनट ठहरिये बस मैं अभी आया नज़ीर इतना कहकर कमरे के अंदर जाता हैं और हाथों में थैला लिए बाहर आके रिपोर्टर से कहता है अब चलिए सर नज़ीर अपना रिक्शा निकलता है और G.B रोड गली नम्बर 64 की तरफ चल देता है।
30 मिनट के बाद नज़ीर और रिपोर्टर G.B रोड पहुंचते हैं।
 नज़ीर रिक्शे को एक कोने में लगाकर तेज़ी से गली नम्बर 64 की तरफ जाता है तभी रिपोर्टर नज़ीर को कहता है उस तरफ नही इस तरफ चलना है पर मेरी माँ तो इधर रहती है नज़ीर कहता है,पर ये तो रेड लाइट एरिया है और तुम्हारी माँ यहाँ,तभी नज़ीर कहता है माँ सिर्फ माँ होती है चाहे वो रेड लाइट एरिया की हो या मेरे घर की,आप आइए तो मेरे साथ,रिपोर्टर नज़ीर के साथ चल देता हैं नज़ीर सीढ़ियों से चढ़कर दूसरी मंजिल पर पहुंचता है उस वक़्त तकरीबन रात के 11 बजके 15 मिनट हुए थे जब नज़ीर ने एक दरवाजे को खटखटाया था रिपोर्टर नज़ीर के पीछे ही खड़ा था थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है सामने ताराबाई खड़ी थी नज़ीर को देखकर उनकी आंखे भर आईं थी नज़ीर माँ  कहकर ताराबाई से लिपटकर रोने लगता है ताराबाई अपने आँचल से उसके आँशु पोछकर उसे अंदर ले जाती हैं रिपोर्टर सोच में पडजाता है उसे बड़ी हैरानी होती है कि नज़ीर एक मुस्लिम और ताराबाई(50) हिन्दू इतने बड़े रेड लाइट एरिया की वैश्या उसकी माँ,ये कैसे हो सकता है,अभी नज़ीर ने रिपोर्टर साहब कहकर आवाज लगाई,रिपोर्टर अंदर जाते ही नज़ीर उससे कहता है इन्होंने उस वक़्त मेरी जान बचाई थी जब आप मुझे यहां लेकर उस दिन आये थे।
मैं रोड पर बेहोश पड़ा था तब इन्होंने एक मां की तरफ मेरी सेवाकर मेरी जान बचा दी, इतना कहकर नज़ीर अपने थैले से एक खूबसूरत सी साड़ी निकलता है ताराबाई को जैसे ही देता है ताराबाई नज़ीर को सीने लगाकर रोने लगती है नज़ीर उनके हाथों को पकडकर आप परेशान मत हो अम्मी मै हमेशा यहां आता रहूंगा और हर मुश्किल में आपके साथ रहूंगा,इस वक़्त मुझे इजाज्जत दीजिए, कहकर नज़ीर रिपोर्टर के साथ चल देता है सीढ़ियों से उतरकर रिपोर्टर बगल वाली गली के सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर जाने लगता हैं पीछे से नज़ीर कहता है हम जा कहाँ रहे है,चारो तरफ देह व्यापार करने वाली लड़कियां ही लड़कियां दिख रही थी,तभी रिपोर्टर नज़ीर से कहता है तुम कोई सवाल ना करो बस मेरे साथ आओ,नज़ीर जी सर कहकर पीछे पीछे सीढ़ियाँ चढ़ने लगता हैं तीसरी मंजिल पर रिपोर्टर अचानक रुककर अपनी दाईं तरफ मुड़कर एक कमरे के अंदर जाता हैं उसके सामने से एक दस साल की लड़की भागते हुए रिपोर्टर से आकर लिपट जाती है रिपोर्टर नीछे झुककर उस लड़की से पूछता है दीदी कहाँ है लड़की हाथों से इशारा करके बताती है एक लड़की जिसकी उम्र तकरीबन 24 साल रही होगी वो खिड़की पर खड़ी थी।
नज़ीर ने दूर से ही  रिपोर्टर से कहा कौन है ये,उस रात मैं इसी की जान बचाने आया था रिपोर्टर कहता है,मजहबी दंगे में कुछ हैवानो ने इसके चेहरे को तेज़ाब से झुलाश दिया है अब इसकी ज़िन्दगी किसी लाश से कम नही है,नज़ीर हिम्मत करके उस लड़की के पास जाना चाहता था पर उसकी हिम्मत नही हुई,वो दौड़ता हुआ सीढ़ियों से नीचे उतर जाता है और अपने रिक्शे पर जाके बैठ जाता है कुछ देर बाद रिपोर्टर नीचे नज़ीर के पास आता है दोनों रिक्शे बैठ जाते है दो मिनट बाद नज़ीर को जाने क्या हो जाता है वो रिक्शे से उठकर उन्ही सीढियों से उस लड़की के कमरे तक जाता है लड़की खिड़की पर खड़ी थी नज़ीर वहीं दरवाजे से सट कर नीचे बैठ जाता हैं और उस लड़की को देखकर रोने लगता है उसे पता चल गया था कि वो लड़की आरती ही है नज़ीर का दिया हुआ कंगन उस लड़की ने हाथों में पहन रखा था नज़ीर रो ही रहा था कि तभी उस लड़की ने पीछे मुड़कर देखा,वो नज़ीर को देखकर जोर से चीखी और नज़ीर कहकर जोर जोर से रोने लगती है,आरती एक वैश्य की बेटी थी इसी लिए उसने कभी अपना पता ना तो नज़ीर को बताया और ना ही का कभी कॉलेज में सही पता लिखाया।
दोनो एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे इस लिए नज़ीर ने आरती से शादी कर ली।
(दो साल बाद नज़ीर और आरती अपने B TECH की पढ़ाई खत्म का करके एक ही कंपनी में बतौर इंजीनियर दोनो नौकरी करने लगते है उनकी एक बेटी है और वो दोनो  अपनी दुनियां में खुश हैं।)।।।।
                            कहानी समाप्त
(इस कहानी से हमे सीखा की मजहब की रंजिश हमेशा इंशान को तकलीफ देते है,हमने ताराबाई जैसे इंशान को भी देखा और प्यार किसी जात पात,ऊंच नीच,भेदभव,का मोहताज नही ये भी जाना।)
 
                  दिनाँक 4 दिसम्बर 2020 11.00 सुबह
                                            रचना(लेखक)
                                          सागर(गोरखपुरी)

       

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