कविता
दिल मेरा
वहीं ताखे पर रखा है मैंने दिल निकाल कर।कभी रोशनी की ज़रूरत पड़े तो उसे उठा लेना।
नामुराद दिल है मेरा जो बुझता ही नही।
ढूंढो उसे वहीं तो जलता ही मिलेगा।।
बिना आग का धुंआ है इसमें बिना लव की लपट।
खामोश जला करता है ये बेचारा शामों शहर।
कभी जुस्तुजू हो गर मुलाक़ात की धड़कनों से।
ढूंढो उसे वहीं तखहे में,तो धड़कता मिलेगा।।
बड़ा बेचारा है ये,नाज़ुक भी बहुत है।
उम्मीदों का आशिंयाँ लिए फिरता भी हैं।
लाचार होकर देखो वहीं पड़ा है तखहे में।
ढूढो उसे तो वहीं तड़पता मिलेगा।।
बस यूँ ही कभी हशर्तों के पुल बांध लेता हैं।
लालची नही बस ख्वाहिशों की उड़ान भर लेता है।
उम्मीदों के जो पर है वो झाड़ चुके हैं उम्र के साथ।
देखो वहीं तखहे में मेरा दिल,तो उछलता मिलेगा।।
खामोश है बहुत कुछ बोलता ही नही दिल मेरा।
शोर गुल से अब ये कतराता है हर पल।
कभी शुकुन ढूंढना हो तो चले आना यकीन मानो।
वही तखहे में दिल शुकुन लिए बैठा है मेरा।।
दिल मेरा।।
दिनाँक 22 दिसम्बर समय 11.00 रात
सागर(गोरखपुरी)
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