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रविवार, 4 अक्तूबर 2020

कविता बुढापा | Hindi poem Old age | हिंदी कविता ढलती उम्र | हिंदी बुढ़ापा कविता | Old age कविता इन हिंदी

                                 हिंदी कविता 

                              बुढ़ापा Old age

उचक के हाथों से आम तोड़ने को मन चाहता है।
कभी कभी तेज़ दौड़ जाने को दिल चाहता है।
गुठने की हड्डियां अब तो कटकटाती हैं।
फिर भी बच्चा बन जाने को दिल चाहता है।।
आईने भी तो कमबख्त अब मजाक करतें हैं।
 छुपाकर जवानी हमारी हमसे सवाल करतें है।
हश्र हमारा हमसे मत पूछिए जनाब ।
बालों में कलर लगा के अब तो जवान बनातें हैं।।
ये बाल,ये चेहरे,ये झुर्रियां सब मुझसे सवाल पूछतें हैं।
क्यों परेशान हैं तू,छोड़ कहीं अब दूर चलतें है।
मत घबरा तू ,ये तो उम्र का तकाजा है।
इसके बिना कौन ज़िन्दगी जी पाता है।।
 वो बचपन,वो लड़कपन,जवानी के क्या दिन थे।
ना हाथ मे छड़ी थी और ना कभी थकते थे।
अब तो हर पल सहारे की जरूत पड़ती है।
बिन सहारे के कहाँ अब ज़िन्दगी कटती है।।
पानी  पर पत्थर मारने को दिल चाहता है।
खुले आसमा में उड़ जाने को दिल चाहता है।
कटी पतंग के पीछे भागने को दिल चाहता है।
एक बार फिर से बच्चा बन जाने को दिल चाहता है।।...


           दिनाँक 04 अक्टूबर 2020   समय 10.30 रात
                                             रचना(लेखक)
                                    अमित सागर(गोरखपुरी)

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