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शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2020

हिन्दी कविता मजदूर | मजदूरों पर कविता | Indian Labor Hindi poem | मेहनत काश मजदूर पर कविता | श्रम पर कविता | Labor day on hindi poem |

                                  हिंदी कविता

                                मजदूर Labor

फुर्सत ना मिली ताउम्र इन हाथों को मेरे।
कहीं ईंट कहीं पत्थर कहीं अनाजों के भंडार मिलें।
मजदूरी मेरे किस्मत में नही थी मगर।
फिर भी मजदूरों जैसे मुझे काम मिलें।।
पिता की थी ये विराष्त तो संभालनी पड़ेगी।
कम पैसे में भी जादा मेहनत करनी पड़ेगी।
कौन समझेगा परेशानी हमारी,ये दिल से पूछिये।
कब तक हमें ऐसे ही ज़िन्दगी बितानी पड़ेगी।।
हाथों की हथेलियां,पीठ के छाले,माथे की सिकन
तपता बदन इन सबको भुलाना पड़ेगा।
दो वक़त की रोटी के खातिर तो जाना पड़ेगा।
कम पैसों में भी जादा वजन उठाने पड़ेगा।
मजदूर हूँ तो मजदूरी से ही कुछ कमाना पड़ेगा।
थककर बिछौने पर करवट बदलनी पड़ेगी।
नींद आती नही मुझे फिर भी दिखानी पड़ेगी।
सुकून मिल जाए मुझे कभी इस ज़िन्दगी से।
खुदा से दुआ और दरख्वास्त लगानी पड़ेगी।।
बतौर मजदूर अब ज़िन्दगी कट रही है मेरी।
शिक्षित हूँ  फिर भी मजदूरी चल रही है मेरी।
चन्द रूपये देकर जैसे लोग खरीद लेते है हमें।
अब तो जिल्लत भारी जिंदगी कट रही है मेरी।।

पिता की ये सौगात है तो मजदूरी चल रही हैं मेरी।।

             दिनाँक 09 अक्टूबर 2020  समय  9.00 शाम
                                          रचना(लेखक)
                                  अमित सागर(गोरखपुरी)


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