हिन्दी कविता
मर्द
शक्ल पर भोलापन दिखता नही।
पर दिल मे सादगी बेशुमार है ।
खूबियां भले ना दिखती हो उसकी हमें।
पर खूबियों का उसमे गुब्बार सा है।।
हर मुश्किलों में हँसना फितरत है उसकी।
हर अदा उसकी खुश मिज़ाज़ है।
देखकर मुश्किलें डर सा जाता है ओ।
पर चेहरे पे उसके, डर का ऐहसास नही।
ये मर्द ही तो है जो सब कुछ सह जाता है।।
थक जाते है कंधे काम से उसके।
फिर भी घर में कभी ना बताता है ओ।
खुश रखना सबको आदत है उसकी।
पर अपनी हालत कभी ना बताता ओ।।
कलाकार छुपा है उसके अन्दर ।
कई रोल जीवन में वो निभाता है।
माँ का लाडला कभी,बहनों का दुलारा बन जाता है।
भाई का तो गुड फ्रेंड है ओ।
जोरू का गुलाम भी कभी बन जाता है।
ये मर्द ही तो है जो इतने रोल निभाता है ।।
खुशियां ढूंढता ओ खुद मगर।
खुश हूँ मैं ये सबको दिखता है।
तपते बदन में भी भीग के ओ।
अपनो की दवाइयां ओ लाता है।।
देख के ओ अपनो की तकलीफें।
ओ अपने दर्द भी छिपाता है।
ये मर्द ही तो है जो सब कुछ सह जाता है।।
समाप्त।।
दिनाँक 18 अगस्त 2020 समय 2.30 दोपहर
रचना(लेखक)
अमित सागर(गोरखपुरी)
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