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पिता पर कविता
मई 18, 2022
पिता | पिता हिंदी कविता | सागर गोरखपुरी पिता | पिता की छोटी सी कविता | पिता पर चार पंक्तियाँ | poem on father
पिता
घनी छावँ का साया तुम ही तो थे।
धूप में बादलों की छाया तुम ही तो थे।
तूफ़ान में खड़े चट्टान की तरह।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।
इश्क़ तुम थे इबादत तुम थे।
त्योहारों के रौनक भी तुम थे।
खुले गगन में उड़ने की तुम मोहलत थे।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।
तुम मौज थे, मल्हार थे, ज़िन्दगी का राग थे।
मेरे दोस्त थे, हमराज़ थे, मजधार में पतवार थे।
तुम बरक़त थे, रहमत थे पिता तुम मेरी दुनिंयाँ थे।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।
मेरी लोरी थे, नींदों में कहानी थे लफ्जों की रवानी थे।।
मेरे ख्वाब थे, अरमान थे, मेरी खुशियों का जहान थे।
सब कुछ वही है पर अब तुम साथ नही।
खामोशी है फिर भी कोई आवाज नही।।
तूफ़ान में खड़े चट्टान की तरह।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।
दिनाँक 17 मई 2022 समय: 11.30 सुबह
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
मंगलवार, 17 मई 2022
सामाजिक कविता
मई 17, 2022
कश्मीर | कश्मीर पर कविता | poem on kashmir Valley | सागर गोरखपुरी की कविताएं | कश्मीर की खूबसूरती पर कविता | कश्मीर की सुंदरता पर कविता | कश्मीर जन्नत हिंदी कविता
कश्मीर
ऊँची घाटियों में खौप कितना दिखता है।
घनी आवादी में भी बिरान सा लगता है।
यूँ तो कश्मीर किसी जन्नत से कम नही।
लेकिन जाने क्यूँ ये बेबस और लाचार सा दिखता है।।
दुआ, सलाम, फ़िक़्र की तहज़ीब यहां दिखती है।
खुदा से भी खूब सूरत यहाँ नूर बरसती है।
दहशतगर्दों ने इस क़दर खौप फैला रखा है।
कश्मीर किसी कब्रिश्तान से कम नही लगता है।।
यहाँ की जुबान में जैसे केशर घुलती है।
इत्तर, किमाम, गुलमोहर वादी में पिघलती है।
हर चेहरे में सहमा इंसान दिखता है।
कश्मीर बड़ा लाचार सा दिखता है ।।
नमाज़ से सुबह है यहाँ शाम भी ढलती है।
बड़ी मस्कत भरी रात यहाँ कटती है।
ठंड है वादी में, दिलों में आग जलती है।
कश्मीर बडी बेजान सी लगती है।।
रौनक है, नूर है, इबादत और मोहब्बत है।
ईद है, बक़रीद है, रमजान और मोहर्रम है।
सब कुछ तो है घाटी में यहाँ।
फिर भी जाने क्यूँ कश्मीर परेशान सा लगता है।।
दिनाँक 15 मई 2022 समय 10.17 सुबह
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
मंगलवार, 10 मई 2022
सोमवार, 9 मई 2022
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