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बुधवार, 21 सितंबर 2022

सितंबर 21, 2022

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                                             बेटियां
घर वही, आंगन वही, सारे रिश्ते नाते सब वही।
दिन वही, रातें वही, मां का आँचल पिता का शाया वही।
जब सब कुछ वही है तो मेरा आंगन मेरा क्यूं नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
बाबा मैं तेरी गुड़िया वही, आंगन की सोन चिरईया वही।
तेरी चिंता वही, फिक्र वही, पर उस घर में मेरी याद क्यूं नही।
जिस दहलीज़ से तूने बिदा किया उसमें क्यूं मेरा प्रवेश नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
माँ तुम वही, बाबा वही, पर भाई और मैं एक जैसे क्यूं नही।
हम सब एक जैसे ही तो है पर मैं तुम जैसी क्यूं नही।
मेरा कोई दोष नही जो जनमी बेटी बनकर मैं।
फिर क्यूं इतना क्रोध है मुझसे, बेटे के लिए क्रोध क्यूं नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
मुझे कुछ ना चाहिए उस दुनियां से, फिर भी क्यूं मेरे लिये वहां प्यार नही।
क्या इतने बेगाने हो गये हैं हम की दीवारों पर भी कोई निशान नही।
जननी है वहां की माटी मेरी, उस माटी से क्यूं मेरी पहचान नही।
जो घर कभी हमारा भी था बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही।।
                 "बेटियों के लिए उनका घर उनका क्यूं नही"।।


दिनाँक : 18 सितंबर 2022                     समय : 10: 10 सुबह
                                                रचना(लेखक)
                                               सागर गोरखपुरी


शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

सितंबर 09, 2022

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                                              माना की
माना की मेरे दिन, मेरी रातें,  मेरे पल, सब लौटा दोगे।
पर क्या मेरा वक्त लौटा पाओगे।
मेरा इंतेज़ार, मेरा ख्याल, मेरा ऐतबार, कभी याद कर पाओगे।
या यूँ ही जल्दीबाज़ी में इन्हें चौखट पर छोड़ आओगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।

माना की मैं गलत था, गलतियां की मैंने। 
क्या अपने गलतियों पर पर्दा डाल पाओगे।
झूठ के सहारे कब तक खुद को समझोगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।
माना की तुम कहती थी, चल बदल जाएंगे तुम्हारे लिए।
हर मुश्किलात में साथ चलेंगे तुम्हारे लिए।
क्या सच मे उन वादों पर तुम ठहर पाओगे।
या हर बार की तरह झूठी कसमें खाओगे।
क्या सच में तुम मुझे भूल पाओगे।।
माना की हर बार की तरह इस बार भी तुम वक़्त पर आओगे।
मेरे देर हो जाने पर, हक़्क़ से मुझ पर चिल्लाओगे।
क्या मेरे एक इल्तेज़ा पर अपना फैसला बदल पाओगे।
बिना शर्तो के बस एक बार, मेरे घर तक आओगे।
या यूँ ही जल्दी बाज़ी में सारे वादे चौखट पर छोड़ आओगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।

दिनाँक : 02 सितंबर 2022                    समय : 11: 10 सुबह
                                             रचना(लेखक)
                                            सागर गोरखपुरी

गुरुवार, 8 सितंबर 2022

सितंबर 08, 2022

कभी फुर्सत के पल | ज़िन्दगी पर शायरी | Poem On life | zindagi shayari in hindi | Best shayari on life | शुक्रिया ज़िन्दगी शायरी | ज़िन्दगी शायरी | सागर गोरखपुरी की शायरियां

कभी फुर्सत के पल मिले तो क़रीब आकर बैठ ऐ जिंदगी।
दिया है जो कुछ भी मुझे, उसका हिसाब तो कर ऐ जिंदगी।
तेरा शुक्रगुजार हूं कि तूने मुझे, ज़मीं से आसमां में उड़ने की आजादी दी।
कुछ ख्वाब अधूरे हैं उसे पूरा कर लेने की मोहलत दे ऐ जिंदगी।।


दिनाँक : 06 सितंबर 2022                    समय : 12:03 दोपहर
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

 

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