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शुक्रवार, 9 सितंबर 2022

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                                              माना की
माना की मेरे दिन, मेरी रातें,  मेरे पल, सब लौटा दोगे।
पर क्या मेरा वक्त लौटा पाओगे।
मेरा इंतेज़ार, मेरा ख्याल, मेरा ऐतबार, कभी याद कर पाओगे।
या यूँ ही जल्दीबाज़ी में इन्हें चौखट पर छोड़ आओगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।

माना की मैं गलत था, गलतियां की मैंने। 
क्या अपने गलतियों पर पर्दा डाल पाओगे।
झूठ के सहारे कब तक खुद को समझोगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।
माना की तुम कहती थी, चल बदल जाएंगे तुम्हारे लिए।
हर मुश्किलात में साथ चलेंगे तुम्हारे लिए।
क्या सच मे उन वादों पर तुम ठहर पाओगे।
या हर बार की तरह झूठी कसमें खाओगे।
क्या सच में तुम मुझे भूल पाओगे।।
माना की हर बार की तरह इस बार भी तुम वक़्त पर आओगे।
मेरे देर हो जाने पर, हक़्क़ से मुझ पर चिल्लाओगे।
क्या मेरे एक इल्तेज़ा पर अपना फैसला बदल पाओगे।
बिना शर्तो के बस एक बार, मेरे घर तक आओगे।
या यूँ ही जल्दी बाज़ी में सारे वादे चौखट पर छोड़ आओगे।
क्या सच मे तुम मुझे भूल पाओगे।।

दिनाँक : 02 सितंबर 2022                    समय : 11: 10 सुबह
                                             रचना(लेखक)
                                            सागर गोरखपुरी

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