हिंदी कविता
बेटी daughter
लड़खड़ाकर इन्हें भी ज़मी पर चलने दो।थोड़ा इन्हें भी तो ज़िन्दगी जी लेने दो।
क्या हुआ जो बेटी ने घर में जन्म लिया है ।
हक़ है उसे भी जीने का,तो उसे जी लेने दो।।
क्या फर्क पड़ता है बेटी और बेटे से।
क्या काम है जो बेटी कर सकती नहीं।
क्या चाँद पर बेटी कभी गयी नही।
क्या हवाओं में तेज कभी वो उड़ी नही।।
कब तक मरोगे इन्हें इन हाथों से।
आखिर कब तक ना इन्हें अपनाओगे।
बेटी तो है खुदा एक नायाब तोफा।
आखिर कब तक तुम इन्हें नकारोगे।।
इनसे इनकी खुशियां ना छीनो।
इन्हें भी इस दुनियां में आने दो।
इनका भी तो है ये खुला आसमां।
खुली हवा में इन्हें भी जी लेने दो।।
मां की लाडली,पिता की गुड़िया।
देश की शान इन्हें भी बन जाने दो।
बक्स दो इन्हें भी ज़िन्दगी इनकी।
अब इन्हें भी इस दुनियां में जी लेने दो।।
लड़खड़ाकर इन्हें भी ज़मी पर चलने दो।
थोड़ा इन्हें भी तो ज़िन्दगी जी लेने दो।।.......
दिनाँक 06 अक्टूबर 2020 समय 10.00 रात
रचना(लेखक)
अमित सागर(गोरखपुरी)
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