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सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

सुनिका हिंदी कहानी भाग 1 | खिलाड़ी पर कहानी | हिंदी कहानी सुनिका |Sunika hindi story | Story on the player | Hindi story sunika |

                                हिंदी कहानी

                            सुनिका Sunika

                                    भाग 1

चारो तरफ  भीड़ उसमे से गूंजता हुआ एक नाम एक चीख और चारो तरफ अचानक सन्नाटा।

(ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है इसका किसी जाति, धर्म,प्रान्त,समुदाय,क्षेत्र से कोई वास्ता नही है अगर ऐसा लगता है तो ये सिर्फ महज इतेफाक है उसके लिए मुझे छमा करे)

स्थान                      कुनकुरी
प्रदेश                       छत्तीसगढ़
दिनाँक                    21 दिसम्बर 1998
दिन                        सोमवार
समय                      दोपहर के 2 बजे
मौसम                     चारो तरफ कोहरा और ठंड
मुख्य पात्र                सुनीता
सुनीता की मां           मंजू 
सुनीता के पिता         भरत लकड़ा(एक किसान)

 एक पुरानी साइकिल जिसकी हालत बिल्कुल खराब थी उस पर सवार एक व्यक्ति तेज़ी से चला जा रहा था अचानक से वो रोड के किनारे अपनी साइकिल को ज़मीन पर लिटाकर जोर से भरत भरत की आवाज लगाने लगा, भरत अपने खेत की गुड़ाई करने में मशरूफ था तभी भरत की नज़र उस व्यक्ति पर पड़ती है भरत उसकी तरफ देखकर बोलता है अरे क्यूँ चिल्ला रहा है क्या हुआ,उस व्यक्ति ने भरत से कहा तेरी पत्नी अंजू की तबियत खराब हो गयी है इतना सुनते ही भरत के पावों तले ज़मीन खिसक जाती है वो भागता हुआ अपने घर की तरफ चल देता है तभी पीछे से उस व्यक्ति ने भरत से कहा अपनी साइकिल तो लेता जा लेकिन भरत को सिर्फ अपनी पत्नी अंजू नज़र आ रही थी वो नंगे पैर चार किलोमीटर दौड़कर अपने घर पहुँचता है 
उसके परों से खून निकलने लगे थे उस दिन ठंड कुछ कम थी लेकिन कोहरा थोड़ा जादा ही पड़ रहा था,भरत अपने घर पहुँचता है तो वो अंजू को देख खुशी से रोने लगता हैं अंजू ने एक बड़ी ही प्यारी सी बेटी को जन्म दिया था भरत के हाथ कांप रहे थे और वो बार बार अंजू को देख रहा था तभी अंजू ने भरत को अपने पास बुलाया और उसके गोद मे उसकी बेटी को दे दिया भरत अपने कांपते हुए हाथों से अपनी बेटी को गोद में उठा लेता है और खुद अंजू के कंधे पर अपना सिर रखकर रोने लगता है अंजू की भी आंखे भर आती है तभी अंजू ने भरत से कहा लाओ इसे  मुझे दे दो और भरत  अपने कांपते हुए हाथों से अपनी बेटी को अंजू के गोद मे दे देता है।
समय बीतता चला जा रहा था पर गरीबी भरत और अंजू का पूछा नही छोड़ रही थी ठंड से फसलें भी खराब हो चुकी थी अब तो भरत और अंजू की बेटी भी चार महीने की हो चुकी थी और बीते 4 महीनों में उसने चलना और दौड़ना भी शुरू कर दिया था लेकिन इन सबके बीच एक चीज चौकाने वाली ये थी की भरत और अंजू की बेटी का सिर्फ 4 महीनों में दौड़ना और उसका कानो से ना सुनना ये दोनों चीजें अजीब थी।
लेकिन बोलने में उसका कोई जबाब नही था और हैं एक चीज तो मैंने आप को ही बताई नही,कि अंजू की बेटी का नाम,दोनों ने बड़े प्यार से  नाम "सुनीता" रखा था लेकिन उसके ना सुन पाने के कारण लोगो ने उसका नाम "सुनीता लकड़ा" से बदलकर "सुनिका" रख दिया
लेकिन लोगों को क्या पता ये ।...........

                                भाग 1 समाप्त

           (आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ) 


               दिनाँक 10 अक्टूबर 2020  समय 9.00 शाम
                                                                                     रचना(लेखक)
                                                                          अमित सागर(गोरखपुरी)


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