कविता
खिलाड़ी Player
चला हूँ मिलों न जाने कितना मैं।उससे भी कहीं जादा मैं दौड़ गया।
तकमें जीतें है कितने देश की खातिर।
उसकी गिनती भी अब मैं भूल गया।
बेरोजगार था पहले भी मैं,बेरोजगार ही रह गया।।
तलवे घिस गये पैरों के,कितने जूते मैने फाड़ दिए।
शर्दी,गर्मी,बारिश कितने हमने ऐसे ही गुजार दिए।
खून जितना शरीर में था,वो पसीनें में बह गया।
बेरोजगार था पहले भी मैं,बेरोजगार ही रह गया।।
हाथों में थे मैडल बहुत अखबारों था मेरा नाम।
छपते रहे तस्वीर मेरे,हर जगह था मेरा सम्मान।
अब हालत बत से बत्तर हैं,खाने को हैं हम मोहताज।
सपने जो देखें थें सारे,वो बिखर गयें हैं सब ख्वाब।।
दौड़ हूँ हर ट्रैक पर मैं,नामुमकिन जीत भी जीत गया।
हार गया मैं हौसले की जंग,थक कर मैं अब बैठ गया।
मजबूरी और लाचारी में सारे मैडल मै बेच गया।
बेरोजगार था पहले भी मैं,बेरोजगार ही रह गया।।
नये खिलाड़ी भी आये हैं अब इनका तो सम्मान करो।
इनके भी है बहुत से सपने,अब उनको तो साकार करो।
हमने तो दे दी कुर्बानी,इनकी मेहनत ना बेकार करो।
लाओ इनके लिए भी नए अवसर ,इनका ना अपमान करो।
देश की आन और शान हैं ये,अब इनको ना बेरोजगार करो।।
दिनाँक 21 नवम्बर 2020 समय 3.00 दोपहर
रचना(लेखक)
सागर(गोरखपुरी)
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