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शनिवार, 24 अप्रैल 2021

कोरोना पर कविता : घर से बाहर | कोरोना पर कविता | कोरोना काल की कविताएं | Poem on corona | covid19 kavita in hindi | कोरोना महामारी: सागर गोरखपुरी

                              घर से बाहर

चल थाम के बैठ जातें है दिलों को।
घबराते नही समझातें है मन को।
कुछ पल के लिए छोड़ देतें हैं घुमना फिरना।
घर के बाहर तो मौत के सौदागर तम्माम बैठें है।।

मसीहा समझते थे जिनको वो हैवान हुए बैठें हैं।
बढ़ते महामारी में वो बईमान हुए बैठें हैं।
हर जगह इंतेक़ाल की दुकानदार खोले बैठें हैं।
घर के बाहर तो मौत के सौदागर तम्माम बैठें है।।
इस बार की हालत पहले से कहीं जादा बत्तर है।
बिलखते लोगों को ना घर और ना ऑक्सीजन मुअस्सर है।
निकाल लेते है बेजान जिस्म से कमबख़्त किडनियां ।
घर के बाहर तो मौत के सौदागर तम्माम बैठें है।।

दोष किसे दें अब तो खुद को ही कोष लेते हैं।
इन सारी परेशानियों को हंस के झेल लेते हैं।
वक़्त नासाज है चलो अपनो का खयाल रखें।
घर के बाहर तो मौत के सौदागर तम्माम बैठें है।।
कभी लगती थी कतारें ए.टी.एम के बाहर।
अब ऑक्सीजन के लिए भी कतार है।
खून की थैलियाँ भी अब तो वांछित नहीं है टैक्स से।
देश की हालत खस्ता और खराब है।।

घर से बाहर मत निकलो सभी।
घर के बाहर तो मौत के सौदागर तम्माम हैं।।


                   दिनाँक  23 अप्रैल 2021  समय  11.00 रात
                                                   रचना(लेखक)
                                                 सागर (गोरखपुरी)

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