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गुरुवार, 10 सितंबर 2020

हिन्दी आत्महत्या कहानी | खुदकुशी हिन्दी story | love story |

                     Hindi आत्महत्या story

                                  Suicide

                                हिंदी कहानी
                                   खुदकुशी

(ये कहानी काल्पनिक घटना पर आधारित है इसका किसी क्षेत्र,प्रान्त,जाति ,धर्म,और किसी व्यक्ति विशेष को ठेस पहुंचाना मेरा मकसद नही है अगर वास्तविक जीवन मे किसी को ठेस पहुंची हो तो मुझे छमा करे।)
  
स्थान.  -      भोपाल(मध्यप्रदेश) भारत
तारीख -     19 जनवरी 1999
दिन     -       मंगलवार
समय.  -       9.45 शाम
मौसम. -      ठड़ भरा और कोहरा गिरता हुआ।
पात्र     -.     1 भावना तोमर
                  2 वैभव सक्सेना
                 ( भावना के सामने वाले फ्लैट में रहता है)
               
बात उन दिनों की है जब वैभव सक्सेना भिंड(मध्यप्रदेश)के एक छोटे से गांव से निकल कर भोपाल जैसे बड़े शहर में अपनी आगे की पढ़ाई के लिए पहुँचता है वो MBA का छात्र था उसने अपनी मेहनत के दाम पर सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया था उसे मध्यप्रदेश सरकार ने स्कॉलरशिप भी प्रदान किया था जिससे उसके आगे की पढ़ाई हो सके।
भावना एक मध्यवर्गीय परिवार से है और अपने माता पिता के साथ भोपाल में रहती है वो एक ब्रेन कैंसर पेशेंट है उसे खुशी और खुश रहना बेहद पसंद है दुसरो को खुश देखना उनकी मद्दत करना ये उसकी फितरत है उसकी खुद की ज़िंदगी चन्द लम्हो की है पर उसे कोई फर्क नही पड़ता।

वैभव को कई साल हो चुके थे भोपाल में रहते हुए, पर भावना तोमर और वैभव सक्सेना ने एक दूसरे को पहले कभी नही देखा था  इसे सिर्फ हम महज़ इतेफाक ही कह सकतें है दोनों के कमरे आमने सामने थे और  खिड़कियाँ भी बिल्कुल आमने सामने थी एक दिन शाम को भावना अपने बालकनी में बैठकर रोड पर आते जाते लोगों को देख रही थी कि तभी उसकी नज़र वैभव सक्सेना के कमरे पर पड़ती है वैभव अपने कमरे के अन्दर हाथों में किताब लिए इधर उधर टहल रहा था लेकिन उसे कोई फर्क नही था कि कौन उसे खिडकी से देख रहा या नही देख रहा है बस उसकी नज़र किताब पर टिकी हुई थी।
भावना को उसकी सादगी और उसकी स्थिरता दोनों ही भागई थी अब तो भावना तोमर का,रोज का काम था हर शाम अपनी बालकनी में बैठ कर  वैभव सक्सेना की खिड़की की तरफ देखते रहना शायद उसे उस दिन का इन्तेज़ार था जब वैभव सक्सेना उसकी तरफ देखेगा कई महीने हो चुके थे ना तो भावना ने बालकनी में बैठना बन्द किया और नही कभी वैभव सक्सेना ने खिड़की की तरफ देखा ना जाने क्या उम्मीद और लगाओ हो गया था भावना को वैभव से।
 शुरुआत के दिनों में तो भावना की सेहत में काफी सुधार था लेकिन अब उसका कैंसर उस पर हॉबी होने लगा है जिससे उसके सेहत और उसकी तबियत में काफी गिरावट दिखती है अब तो उसे चलने में भी थोड़ी तकलीफ होती है ठंड बढ़ चुकी थी जनवरी का महीना शुरू हो चुका था कोहरा भी कुछ ज्यादा ही गिरने लगा था अब तो वैभव सक्सेना की खिड़की भी ठीक से दिखाई नही देती फिर भी भावना हर शाम उसकी खिड़की को देखा करती थी एक दिन अचानक भावना की नज़र वैभव सक्सेना के कमरे की लाइट पर पड़ती है जो लगातार जल और बुझ रही थी भावना को बड़ी खुशी हुई  उसमें जीने की चाह बढ़ने लगी उसे ऐसा लग रहा था जैसे जीवन मे उमंग सा भर गया हो ।
अगली सुबह भावना ने वैभव सक्सेना को पहली बार नीचे रोड पर जाते हुए देखा था वो थोड़ी जल्दी में दिख रहा था।
भावना की अपेछा से कही जादा वो अच्छा था भावना ने उसे जाते तो देखा था पर वैभव कब आया कुछ पता नही था
शाम हो चुकी थी और भावना बत्ती जलने का इन्तेज़ार कर रही थी शाम के 9.00 बज रहे थे तारीख 16 जनवरी 1999 जब वैभव सक्सेना के कमरे की बत्ती जली धुन्ध बहोत थी इस कारण रोशनी में थोड़ी चमक कम थी पर महससू हो रहा था कि बत्ती जल और भुझ रही है कई घण्टों तक ऐसा ही चलता रहा भावना की भी तबियत भी कुछ ठीक नही थी इस लिए वो भी सोने चली गयी।
अगली सुबह भावना की ताबिताय बिगड़ रही थी उसने अपनी माँ से कहा मुझे बालकनी तक ले चलो भावना की माँ ने उसे बालकनी में बिठा दिया उस दी भावना ने वैभव सक्सेना का बहुत इन्तेज़ार किया पर वैभव ना तों उसे रोड पर दिखा और ना तो वो अपने रूम में था रूम की बत्ती लगातार जल और बुझ रही थी कई घंटे हो चुके थे भावना को वैभव सक्सेना की खिड़की को देखते हुए, उसकी घबराहट अब बढ़ने लगी थी वो अपनी बालकनी से उठी और बिना अपनी माँ को बताए बग़ैर ही वो वैभव सक्सेना के कमरे की तरफ चल देती है माँ ने पीछे से आवाज दी थी पर भावना ने अनदेखा कर दिया था भावना बड़ी मुश्किलों से वैभव सक्सेना के कमरे तक पहुंचती है उसने बहोत देर तक कमरे की घण्टी बजाई दरवाजे और कुंडे को भी खड़खडाय पर अंदर से कोई जबाब नही मिला।
भावना ने दरवाजे को धक्का देने की कोशिस की लेकिन दरवाजा अन्दर से खुला हुआ था जैसे ही उसने कमरे के अंदर प्रवेश किया वो जोर चिल्लाई वैभव सक्सेना उसके सामने पंखे से लड़का हुआ था और उसने खुदकुशी कर ली थी ये देखकर भावना की तबियत बिगड़ने लगी उसे आंखों से धुंधला दिखने लगा था और वो बेहोश हो गयी।
जब भावना की आँख खुली तो वो अस्पताल में थी 9.45 मिनट शाम, 19 अगस्त 1999 दिन मंगलवार माँ सामने खड़ी थी उन्होंने इशारे से भावना से कहा तुम्हारा एक खत आया है जो तुम्हारे सिरहाने रखा हुआ है भावना ने उसे निकाल कर पढ़ने की कोशिस की लेकिन उसे धुंधला सा दिखाई दे रहा था उसने अपनी माँ को पास बुलाया और उनसे पढ़ने को कहा ,माँ ने खत उठाया तो उसमें भेजने वाले का नाम नही था माँ ने लिफाफा खोला और पत्र पढ़ना शुरू किया उसमे पत्र में लिखा था।
" प्यारी "भावना" सबसे पहले तुम मुझे आत्महत्या जैसे अपराध के लिए माफ कर दो तुम्हारे विश्वास पर मैं खरा नही उत्तर सका,आत्महत्या करने का इतने बड़ा फैसला मैने ले तो लिया पर इस समाज की कुरीतियों से मैं लड़ ना सका,मेरी शिक्षा मेरी डिग्रियां मेरा सम्मान मेरी उपलब्धियां ये सब बेकार है इस समाज मे यहाँ सिर्फ दौलत, शोहरत,ऊंची जाति,धर्म, डोनेशन, भ्रस्टाचार से भरा हमार समाज कभी नही समझेगा हमारी मजबूरियां,मैं तुम्हारे घर तक आया था पर तुम्हारी माँ ने मेरी हालत देखकर मुझे तुमसे मिलने से मना कर दिया उनकी कोई गलती नही थी क्योंकि वो भी तो इसी समाज मे रहती है।
मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और ये भी जनता हूँ कि तुम एक ब्रेन कैंसर पेशेंट हो और हर शाम तुम खिड़की पर मेरा इन्तेज़ार करती हो तुम्हारा वक़्त तुम्हारी मुम्मीद नही लौटा पाऊंगा अब हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।
    I Love you.....
                                                तुम्हारा अजनबी दोस्त
                                                            "वैभव"
भावना भी सिर्फ 6,7 दिनों की मेहमान थी और उन 6,7 दिनों में उसने कभी वैभव सक्सेना की खिड़की को देखना बंद नही किया आखिर कर एक सप्ताह बाद भावना की भी म्रत्यु हो जाती है।।
                                कहानी समाप्त।।

(इस कहानी में हमने सीखा कि आज भी हमारा समाज वहीं      का वहीं है आज भी कई नवयुवक इस समाज की कुरीतियों से हार कर अपनी जान दे देते और इस कहानी में ये भी पढ़ा कि प्यार किसी भी सामाजिक बंधन को नही मानता।)

   दिनाँक 09 सितंबर 2020  समय 1.44 मिनट दोपहर

                                         रचना(लेखक)

                                      सागर (गोरखपुरी)


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