खुल जाऊं क्या
खुल जाऊं क्या बंद दरवाजों की तरह।तू तेज़ हवाओं सा मुझसे गुज़र जा।
उड़ जाएंगें सारे धूल जो चौखट पर है।
तू पुरानी यादों का तूफान तो कभी ला।
खुल जाऊं क्या बन्द दरवाजों की तरह।।
ठहर गर फ़र्शत हो तेरे पास चन्द लम्हो की।
बना के झाड़न प्यार का आ झाड़ दें सारे धूल।
कितने वक़्त गुज़र गयें है खोले दिल के दरवाजें को।
तू कहे तो फिर से खोल दून,दस्तक दे तो कुछ बोल दून।।
तू कहे तो खुल जाऊं बंद दरवाजों की तरह।
तू कहे तो ठहर जाऊं मैं घटाओं की तरह।
तू समंदर है मेरा मैं खुला आसमान हूँ तेरा।
तू मौज है लहरों की मैं हूँ किनारा तेरा।।
मैं दूध में जैसे मिश्री,तू शहद बनके घुल जा।
मैं पान में डली जैसे तू खुशबू किमाम की बन जा।
तू कहे तो खुल जाऊं बंद दरवजें की तरह।
मैं आवारा डोर तेरा तू मदहोश पतंग बन जा।।
खुल जाऊं क्या बंद दरवजों की तरह।
तू तेज़ हवाओं सा मुझसे गुज़र जा।।........
दिनाँक 19 सितम्बर 2020 समय 11.30 रात्रि
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें