हिन्दी कविता
कैदी The prisoner
कैदी
कैदी की उम्र कभी लंबी ना हो।
वक़्त मुलाक़ात की कभी छोटी ना हो।
शालाखों के पीछे जो ज़िन्दगी गुज़रती है।
कमबख्त बड़ी अजीब सी गुज़रती है।।
कभी मुल्क तो कहीं मजहब का नाम पूछतें हैं।
मैं कैदी हूँ सब मुझसे सिर्फ सवाल पूछतें है।
हर बार एक ही सवाल बार बार पूछतें हैं।
तू हिन्दू है या मुसलमान यही सवाल पूछतें हैं।।
मासूम था जब शरहदें पार कर ली थी।
गलती थी मेरी या गुस्ताखी कर ली थी।
पच्चीस बरस हो चुके हैं कैद सलाखों के पीछे।
अब तो आंखों की पुतलियाँ भी रोशनी से सवाल पूछती हैं।।
फांसी की गुजारिश मेरी मंजूर करलो।
नही तो फिर मुझे मेरे शरहद पार कर दो।
घुटन होती है मुझे इस अंधेरी कोठरी में।
मुझे इस गन्दी जिन्दगी से निजात दे दो।।
देखता हूँ उन हाथों को जिसे माँ चूमा करती थी।
खींच लिए हैं कमबख्तों ने उस हाथ के नाखूनों को।
बदन की तो हालत न पूछिये बता ना पाऊंगा।
इतने काले है कि कभी मैं दिखा ना पाऊंगा।।
वज़ीरे आजम से खत,पत्र,आवाज,गुहार ,पुकार।
सब लगाई है किसी के अब्बा ने तो किसी की मां ने।
मौसम से भी तेज़ सरकारें बदली है हमारे वतन में।
सब कुछ बदला है पर एक चीज नही बदली वो है।
हमारी रातें,तकलीफें,दर्द,आँशु,घुटन,हम पर ज़ुल्म,
आरोप,ज़िल्लत,ये कभी नही बदले सब कुछ बदला ।
मगर ये नही बदलें।।
कैदी की उम्र कभी लम्बी ना हो।
वक़्त मुलाक़ात की कभी छोटी ना हो।।.......
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