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रविवार, 9 मई 2021

फुटपाथ | हिंदी कविता | POEM ON Sidewalk | फुटपाथ/सागर गोरखपुरी | फुटपाथ पर कविता | कविता ज़िन्दगी फुटपाथ की | फुटपाथ से फलक तक कविता |

                                       फुटपाथ

बड़ी अजीब है ये दुनिया जो फुटपाथों पर गुजरती है।
यहाँ कोई नही अपना रातें भी अजनबी सी कटती है।
हम थक्कर सो जातें है रातों को इसकी बाहों में ।
यहाँ सभी गैर हैं हमदर्द कोई अपना मिलता नही हैं।।

दिन भर यहां उथल पुथल सी ज़िंदगी होती है।
हर रोज यहाँ भूखे लोगों की लाश मिलती है।
हर किनारे पर कोई ना कोई ख्वाब सँजोए बैठा है।
कितनी जिल्लत और मुसीबत भरी रात यहाँ कटती है।।
वस्त्रहीन बेजान शरीर भूखा और नंगा बदन।
तप रहा है धूप में जल रहा है पूरा जिश्म।
सपने सारे खाक हो गयें मंज़िले कारवां भी छूट गया।
हार गया मैं खुद से ही, अब तो फुटपाथ ही मेरा घर बन गया।।

यहां हर किसी की अपनी एक कहानी है।
ना कोई राजा है ना कोई ना रानी है।
कोई घर से भाग आया है ख्वाबों का जहां तलाशने।
कोई बिना ख्वाबों के ही यहां उम्मीद लगाए बैठा है।।
भूख और भूखेपन से दोस्ती सी हो गयी है।
फुटपाथ पर यूँ ही ज़िन्दगी कहीं गुम हो गयी है।
चले थे घर से जब दिल में अरमान और उम्मीद लिए।
सोच ना था इन्ही फुटपाथों पर ज़िन्दगी यूँ ही बसर होगी।।

बड़ी अजीब है ये दुनिया जो फुटपाथों पर गुजरती है।
यहाँ कोई नही अपना रातें भी अजनबी सी कटती है।।

                दिनाँक 08 मई 2021       समय 04.45 शाम
                                               रचना(लेखक)
                                            सागर (गोरखपुरी)

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