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गुरुवार, 19 अगस्त 2021

चाहे जान मेरी ये | हिंदी देश भक्ती कविता/सागर गोरखपुरी | सैनिकों पर कविता | poem on soldiers | 26 जनवरी पर कविता | patriotism Poem |

                              चाहे जान मेरी ये

तेरे लिए क़ुर्बान हो जाऊं लहू का हर कतरा ये कहता हैं
देखकर दुश्मन शरहद पर खून जिश्म में खौलता है।
शान तिरंगे के खातिर कितनी रातें हमने गवाँई है
ऐसे ही झूमें तू सदा गगन में चाहे जान हमारी ये रहे ना रहे।।

हर बार जिऊँ मैं तेरे लिये सौ बार तुझपे ही मर जाऊं।
जन्मा हूँ मैं जिस माटी में उस माटी में ही मिल जाऊं।
तू ऐसे ही खुश हाल रहे अवाद रहे है दुआ मेरी।
ऐसे ही झूमें तू सदा गगन में चाहे जान हमारी ये रहे ना रहे।।
कभी लिपट भी जाऊं मैं तिरंगे से मेरे घर तक मुझे तुम ले जाना।
निहारती है माँ राहें मेरी एक बार उससे मुझे तुम मिला देना।
अब ना लौट सकूंगा रक्षाबन्धन में मेरी बहनों से ये बता देना।
दुनियाँ है मेरी वो छोटी सी मेरे भाई से जाकर ये कह देना।
उस गली चौबारे उन गलियों में हर जगह मुझे तुम घूमा देना।
मैं खेला हूँ जिस मिट्टी में उस मिट्टी में ही सुला देना।
अवाद रहे वो गांव मेरा चाहे जान मेरी ये रहे ना रहे।।

जो शहिद हुआ तेरे अस्मत पर तुझे छोड़ कहीं ना जाऊंगा।
गर थम गयी जो सांसे मेरी ज़िंदा मैं फिर लौट आऊंगा।
तुझसा कहाँ है इस जहां में कोई, माँ तुझसी कहाँ मिल पायेगी।
आबाद रहे तू सदा दिलों में चाहे जान मेरी ये रहे न रहे।। 
तेरी माटी को कोई छू सके इतनी कहाँ किसी में ज़ुर्रत है।
झूका सके जो तुझे ज़मीन पर इतनी कहाँ किसी में हिम्मत है।
अपने लहू से सींचा है इस गुलिस्ताँ को हमने।
 तेरी शरहद की निगहवान है आँखें।
आबाद रहे तू सदा दिलों में चाहे जान मेरी ये रहे न रहे।।

            दिनाँक 15 अगस्त 2021     समय 6.00 सुबह
                        
                                                   रचना (लेखक)
                                                 सागर (गोरखपुरी)

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