हिन्दी कहानी
भटकती आत्मा(मंगला की)
Wandering soul (of Mangala)
भाग 12
यहाँ कोई "रजत" नहीं है 3 दिनों से मैंने किसी "रजत" को नहीं देख "मंगला" घबरा कर बोली, क्या मैं यहाँ 3 दिनों से हूँ नर्स ने कहा हाँ तुम 3 दिनों से यहाँ हो और मेरे पति "रजत" कहाँ है नर्स गुस्से से बोली आप 3 दिनों से यहाँ अकेली हो और आपके साथ कोई भी नहीं है मैंने नर्स से कहा मुझे अभी घर जाना है नर्स के लाख मना करने बाद भी मैं घर चली गयी।
शाम के 9.10 मिनट पर मै अपने घर रेलवे कालोनी A34/6 अपने सरकारी आवास पहुँचती हूँ "रजत" की माँ ने दरवाजा खोला मै हैरान होके उन्हें देखने लगी मै आगे बढ़ के उनके चरणस्पर्श करना चाहा पर उन्होंने अपना पैर पीछे खींच लिया वो मुझे अजीब सी नज़रों से देख रही थी मैंने पूछ आप कब आयी उन्होंने का 3 दिन हो गए मै हैरान थी और कुछ समझ नहीं आ रहा था मैं कमरे की तरफ भागी पर "रजत"कहीं नज़र नहीं आया तभी मेरी नज़र दिवार के ऊपर लगी "रजत" की तस्वीर पर पड़ती है।
मैं जोर से चीखी मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि "रजत" अब इस दुनियां में नहीं रहा, शायद उस दिन फ़ोन पर नर्स ने मुझसे ऐसा ही कुछ कहा था तभी मेरे कमरे में अचानक अँधेरा हो जाता है लाइट तो नहीं गयी थी लेकिन शायद किसी ने मेरे ऊपर एक बड़ा सा कम्बल डाल लिया था फिर उन्होंने मुझे चारपाई से बांध दिया था और बन्धते वक़्त वो मुझसे कह रहे थे कि तूने हमारे बेटे को मार दिया ,शादी के दूसरे दिन ही तुने हमारे बेटे को मौत के हवाले कर दिया,तू डायन है जो शादी होते ही मेरे बेटे खा गई।
"मंगला" की बातें सुनके अमित की आँखे भर आयी थी और उसकी आँखों से आँशु निकलने लगे थे तभी "मंगला" आगे बढ़ के "रज़िया"के दुप्पटे से अमित के आँशु पोछती है तभी अमित ने कहा आगे बताओ फिर क्या हुआ "मंगला" ने कहा
तभी मुझे लगा ।।........
भाग 12 समाप्त।।
(आगे की कहानी के लिये बने रहिये मेरे साथ)
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