हिन्दी कहानी
भटकती आत्मा(मंगला की)
Wandering soul (of Mangala)
भाग 9
उसने देखा की ये तो रज़िया है अमित ने रज़िया कहा ही था कि उसने भारी आवाज़ में कहा तुम आ गए,मै तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी अमित थोड़ा पीछे हटता है उसे पता चल गया था कि "मंगला"की आत्मा रज़िया के अंदर प्रवेश कर चुकी है तभी "मंगला" ने अमित को इशारा किया पास बैठने का अमित डरते हुए उसके पास जाकर थोड़ी दूरी पर बैठ जाता है वो डर रहा था "मंगला" खुद बा खुद उठ कर अमित के करीब जाती है अमित ने कहा रज़िया घर चलो उसने कहा I am Mangal, not Rajiya(मै मंगला हूं रजिया नही) अमित को यकीन हो चूका था कि वो "मंगला" ही है क्योंकि इतनी अच्छी अंग्रेजी जो बोल रही थी रज़िया ने तो बिलकुल भी पढ़ाई नहीं की थी।
तभी "मंगला" ने अमित की आँखों में देखते हुए अपने हाथों को अमित के हाथों के ऊपर रख दिया था अमित के शरीर में कंपन सी होने लगती है वो डर गया था अमित उठ के जाने की कोशिश कर रहा था तभी "मंगला" ने कहा बैठ जाओ और अमित बैठ जाता है "मंगला" ने कहा हम बहुत खुश थे अपने परिवार में,अमित ने कहा आगे बताओ और फिर "मंगला" की आत्मा ने रज़िया के बाल को पीछे की किया, अब रज़िया की आँखे बिलकुल नीली दिख रही थी।
"मंगला" ने कहा मैं एक राष्ट्रीय स्तर की हाँकी की खिलाडी थी और BSc 3th year की छात्रा भी थी खेल के दौरान मेरी मुलाकात "रजत" से हाँकी के नेशनल कैम्प में हुई, हम एक दूसरे को पसन्द करने लगे थे हमारी ये मुलाक़ात रिश्तों में बदल गयी,हम दोनों का रहन सहन बिलकुल अलग था और हमारे प्रान्त भी अलग थे "रजत" उत्तर प्रदेश से था और मै बेस्ट बंगाल से ,पापा के लाख मना करने के बाद भी हमने शादी कर ली, "रजत" अलाहाबाद में रेलवे में नौकरी करता था "मंगला" ने अमित से कहा हमारी शादी से कुछ ही महीने पहले "रजत" का तबादला गोरखपुर (उo प्रo) में हो गया था हम माकन नम्बर A 34/6 में थे हम बहुत खुश थे हमारी पहली रात थी शाम के 7.30 मिनट हुए थे और "रजत" बहार गया हुआ था तभी फोन की घंटी बजी।।.........
भाग 9 समाप्त।।
(आगे की कहानी के लिए बने रहिये मेरे साथ)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें