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शनिवार, 13 अगस्त 2022

फौजी की जुबानी | Peam of soldiers | Sagar Gorakhpuri | फौजी की ज़िंदगी पर कविता | फौजी पर कविता | वीरों पर कविता | देश के जवानों पर कविता | बहादुरी पर हिंदी कविता | त्याग और बलिदान पर कविता | सैनिकों पर कविता

                                     फौजी की जुबानी
तुम्हे ये पता है कि ज़िन्दगी सिर्फ एक मर्तबा मिलती है।
और हम है कि शरहद पर हर रोज जीते और मरते हैं।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।

मरने जीने का खौप कहाँ किसे है।
हाथों में खुद की जान लिए फिरते हैं।
दस्तक़ देते है हर रोज वहाँ हम।
जहाँ से लौटना थोड़ा मुश्किल है।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
हर रोज झूठ का सहारा हम लेते है।
जब जब माँ से बातें करते है।
पता नही उसे अब कहाँ हूँ मैं।
हर रोज पुरानी लोकेशन बताते हैं।
दिल की बीमारी है उसे इस लिए हर बात छिपाते है।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
ज़िन्दगी जीने का हुनर हम से बेहतर किसी में नही है।
हर मुश्किल को बड़े शालीके से हम सुलझाते है।
रिश्ते, नाते, दोस्ती, प्यार, सभी को बाखूबी निभाते हैं।
दुश्मन दिख जाये जो शरहद पर फौलाद बन जाते है।
रख दे जो दुश्मन कदम धरा पर विक्रम बत्रा भी बन जाते है।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।
धरती कहीं बर्फीली है कारगिल कहीं रेगिस्तान है।
हम ही हैं जिनका ह्रदय, कम ऑक्सीजन में भी करता काम है।
अंधी, तूफान सर्दी गर्मी ये सब भी हमसे परेशान हैं।
खड़े हुए हम जब भी जहां भी लौट जाते शैलाब है।
मरने जीने का खौप हमें कहाँ , हम तो दिलों में जिंदा रहते है।
ज़िंदा रहें तो शुर्खियों में, शाहिद हुए तो राजनीति बन जाते हैं।
हमें जानना हो तो बैठो दो पल साथ कभी।
कैसे शरहद पर हम, हर रोज जीते और मरते है।
बंदूकें ताक़त नही हैं हमारी, हमसफ़र है ये।
एक दूसरे के बिना कहाँ सांसे चलती है।।

दिनाँक : 27 जुलाई 2022                      समय : 03:30 दोपहर
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

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