हिंदी कहानी
लॉकडाउन Lockdown
अंतिम भाग
(अभी तक इस कहानी में आपने पढ़ा कि आलोक और सिमा मकान मालिक से बिनती करने जाते है और वापस आते समय उन्हें किसी की आवाज सुनाई देती है) "अब आगे"
किसी की आवाज सुनाई देती है शायद कोई उन्हें आवाज दे रहा था उस वक़्त 11 बज के 55 मिंट हुए थे आलोक ने सिमा से कहा तुम यहीं रुको मैं देखता हूं कौन है वहां, आलोक जब उसके पास पहुँचता है तो वो तेज़ आवाज में सिमा को आवाज देता है सिमा कवीर को लिए हुए आलोक के पास पहुंचती हैं तो उसके होश उड़ जातें है ज़मीन पर गिरा हुआ एक व्यक्ति जिसकी उम्र तकरीबन 60 से 65 साल के बीच रही होगी उसके सिर से खून बह रहा था सिमा ने घबरा के आलोक से पूछा कैसे हुए ये, शायद किसी गाड़ी ने इन्हें टक्कर मार दी है तभी सिमा ने कहा गाड़ी भी चलने नही आती लोगों को, इतना कहते ही सिमा ने जिस दुप्पटे से कवीर को बांध रखा था उसे खोलकर आलोक को दे देती है और कवीर को अपने गोद मे उठा लेती हैं आलोक नीचे से उन्हें उठता है और एक खाली दुकान के बरामदे में उन्हें ले जाता है खून से उस व्यक्ति का चेहरा बिल्कुल लाल हो चुका था तभी आलोक नीचे झुककर उस व्यक्ति के चेहरे को साफ करता है और उसी दुपटटे से उसकी चोट वाली जगह पर बांध देता था ।
फिर भी चेहरे से खून निकलना बंद नही हो रहा था तभी सिमा ने आलोक से कहा मैं इन्हें देखती हूँ तुम इन्हें अस्पताल ले जाने की लिये कुछ करो आलोक ने सिमा से कहा तुम इनका और कवीर का खयाल रखना मैं अभी आता हूँ आलोक भागते हुए चौराहे तक पहुँचता है और बारिश है कि रुकने का नाम नही ले रही थी आलोक ने चारों तरफ नज़र घुमाई पर लॉकडाउन के कारण ना तो कोई इंशान और ना ही कोई साधन दिखाई दे रहा था आलोक निराश होकर वापस सिमा के पास जाने लगता है तभी उसकी नज़र एक सब्जी वाले ठेले पर पड़ती है आलोक उसके चारों ओर देखता है कि कहीं उसमे कोई ताला तो नही लगा है ना, पर उसमे कोई ताला नही लगा था आलोक ने उस ठेले को पीछे खींचा और भागते हुए सिमा के पास पहुँचता है तभी सिमा आलोक से कहती है ये पिछले पांच मिनट से कुछ नही बोल रहें है आलोक घबरा जाता है और उन्हें अपने गोद मे उठाकर ठेले के ऊपर लिटा देता है फिर सिमा से कहता है तुम घर जाओ और सामान इकठा कर लो कल हमें मकान भी खाली करना होगा और मैं इन्हें अस्पताल ले जाता हूँ।
तभी सिमा ने कहा नही मैं भी साथ चलती हूँ तुम पागल मत बनो घर जाओ नही तो तुम्हारी और कवीर की भी तबियत खराब हो जाएगी तभी सिमा ने आलोक से कहा और तुम्हारी तबियत का क्या होगा मैं कहीं नही जा रही,मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूं आलोक सिमा को भी उसी ठेले पर बिठा देता है और तेज़ी से भागता हुआ 30 मिंट के बाद सरकारी अस्पताल पहुँचता है आलोक रिशेप्शन पर जाके नर्स को पूरी बात बताता है नर्स आलोक से पूछती है आप मरीज के क्या लगते हो तभी आलोक ने कहा मैं इनका कुछ नही लगता ये हमें जख्मी हालत में रोड के किनारे मिले थे तो इंसानियत के नाते मैं इन्हें यहां ले आया तभी नर्स ने कहा आपने बिल्कुल सही किया जो आप इन्हें यहां ले आये,नर्स ने आलोक को पेपर पर दस्तखत करने को कहा और आलोक उस पेपर पर अपने दस्तखत कर देता है।
इस पूरी कार्यवाही के दौरान ही उस व्यक्ति को ICU में ले जाया जा चुका था आलोक और सिमा वहीं एक बेंच पर बैठ जातें है आलोक पूरी तरह से भीग चुका था सिमा और कवीर उस प्लास्टिक के टुकड़े की वजह से बच जाते हैं लेकिन फिर भी सिमा के कपड़े घुटने से नीचे भीगे हुए थें आलोक सिमा के कंधे पर अपना सिर रखकर उसके हाथों को अपने हाथों में पकड़कर आंखे बंद कर लेता है सिमा भी एक हाथ से आलोक के बालों में उंगलियां घूमाने लगती है और कब सिमा की भी आंख लग जाती है उसे पता ही नही चलता,तकरीबन सुबह के 3 बजे होंगे जब नर्स ने आलोक और सिमा को चादर से ढक दिया था दोनों ने रात का खाना भी नही खाया था।
सुबह के 5 बजके 15 मिनट हुए थे जब एक व्यक्ति सिर को नीचे झुकाए हुए आलोक के पैर के पास बैठकर रो रहा था सिमा और आलोक की नींद अचानक से खुल जाती है सिमा को बड़ी हैरानी होती है कि उन्हें ये चादर किसने ओढाई,नर्स सामने खड़ी थी वो सिमा से इशारे में कहती है मैंने ओढाई चादर, सिमा नर्स के पास जाती है और हाथ जोड़कर नर्स को धन्यबाद कहती है तभी आलोक घबरा के उठ खड़ा होता है और हैरानी से उस अनजान व्यक्ति से पूछता है क्या हुआ भाई इतना कहते ही पास बैठा व्यक्ति अपने सिर को झुकाए हुए ही आलोक के पैर पकड़ कर रोने लगता है आलोक दुबारा से उस बेंच पर बैठ जाता है तभी वो सिमा कहकर आवाज लगता हैं सिमा झटके से आलोक की तरफ देखती है तो मकान मालिक आलोक के पैरों को पकड़ कर रो रहा था दोनों हैरानी से क्या हुआ मालिक आप यहां कैसे ? मकान मालिक जोर जोर से रोते हुए बार बार सिमा और आलोक से माफी मांग रहा था वो कह रहा था तुमने मेरे बाबा(पिता जी) की जान बचा दी इसका एहसान मैं कभी नही भूलूंगा, सिमा आलोक की तरफ देखती है और दोनों मकान मालिक को बेंच पर बिठाके ICU की तरफ भगतें है नर्स दरवाजा खोलकर उस मरीज से कहती है यही है वो जिन्होंने आपकी जान बचाई है मकान मालिक के पिता आलोक और सिमा को अपने गले लगा लेते है और कवीर नर्स के गोद चला जाता है।।
अब आप सोच रहे होंगे कि मकान मालिक को किसने बुलाया,नर्स ने उन्हें बुलाया था मरीज़ के जेब से एक डायरी मिली थी जिसमे उनके बेटे का नवम्बर लिखा हुआ था....
कहानी समाप्त।।...
(इस कहानी में हमने सीखा की इंशान चाहे अमीर हो या गरीब,हिन्दू हो या मुसलमान,चाहे वो किसी भी जाति विशेष से हो लेकिन उसके अंदर इंशानिया होना बहुत जरूरी है अगर आलोक और सिमा के अंदर इंसानियत नही होती तो शायद मकान मालिक के पिता जिंदा नही बचतें)
अगर आप सभी के आस पास भी सिमा और आलोक जैसे प्रस्तिथि वाले इंशान दिखें तो उनकी मदत करें।
दिनाँक 30 सितम्बर 2020 समय 11.00 रात
रचना(लेखक)
अमित सागर(गोरखपुरी)
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