कविता
मयखाना Brewery
चल बैठ के मयखाने में आज जाम छलकातें हैं।पुरानी यादों को भी साथ बिठातें हैं।
दो पैग से आज काम न चलेगा पता है मुझे।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को बुझातें हैं ।
हर तरफ रोशनी की जगमग हैं दिल मेरा बेचैन सा है।
ढूंढता है एक छोटा सा कोना शायद वहीं आराम सा है।
चल दूर चले इस जद्दोजहद से, मयखाने में जाम छलकातें हैं।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को बुझातें हैं।।
कहतें है मिट जाती है थकान मयखानें में जाकर।
गम ठहर सा जाता है पैमानों को देखकर।
चल मिलकर एक लार्ज पैग बनातें हैं।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को बुझातें हैं।।
सोचता हूँ आज उसे ख्वाबों से निकाल सामने बिठा लूँ।
उसके लिए भी आज मैं एक पैग बना दुँ।
दिल मे जो है बात उसे आज सच बतातें हैं।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को बुझाते हैं।।
वक़्त के साथ कब मधुशाला, मयखाने में बदल गया।
छोटे छोटे पैगों से कब शराब लार्ज को गया ।
चल छोड़ा इन बातों को एक पटियाला पैग मंगाते हैं।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को बुझातें हैं।
चल बैठ के मयखाने में आज जाम छलकातें हैं।।
दिनाँक 15 मार्च 2021 12.45 दोपहर
रचना(लेखक)
सागर(गोरखपुरी)
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