पिता पर कविता
पिता जैसा भगवान नही देखा
एक शख्श है जिसे मैंने कभी सिहरते नही देखा।कभी आंखों में आँशु लिए उसे रोते नही देखा।
सर्दी, गर्मी, बारिश में भी खड़ा रहा चट्टान सा।
पिता जैसा कहीं मैंने भगवान नही देखा।।
हर एक चीज की फिक्र करता है वो मेरी।
कभी मैने उसे खुद के लिए जीते नही देखा।
माँ के साथ थपकियां वो भी लगाता हैं मुझे।
लेकिन मुझसे पहले उसे सोते, मैने नही देखा।।
कितनी जिम्मेदारीयाँ उठाए फिरता है वो।
कभी उसे मैने यूँ ही थकते हुए नही देखा।
हमारे हर एक ख्वाहिशों का बाजार हैं वो।
कभी खुद के लिए कुछ लेते,मैंने नही देखा।।
परेशान रहता हैं हर वक़्त सिर्फ हमारे सपनो के लिए।
खुद के ख्वाबों के लिए हमने उसे जीते नही देखा।
मेरी माँ से कुछ खास बनती नही हैं उनकी मगर ।
उसके बैगैर उसे मैंने हँसता नही देखा ।।
सारे रिश्तों के मायने बदल गये वक़्त के साथ।
लेकिन इसे मैंने कभी भी बदलते नही देखा।
हशर्तों के पुल बांधकर खड़ा रहा हर पल साथ मेरे।
अपनी ज़िम्मेदरियों से उसे मैंने कभी भागतें नही देखा।
पिता जैसा कहीं मैंने भगवान नही देखा।।
दिनाँक 15 फरवरी 2021 समय 11.30 रात
रचना(लेखक)
सागर (गोरखपुरी)
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