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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

कविता सुकून की तलाश | POEM : SUKUN MILTA NAHI | सुकून की तलाश /सागर गोरखपुरी | Poem on peace

                                        कविता

                                 सुकून की तलाश

 

कैसे कहूँ की सुकून की तलाश में फिरता हूँ मैं |

कभी एकांत, कभी समसानआवारा बनकर घूमता हूँ मै |

खाव्बों में भी अब तो सुकून मिलता नहीं मुझे यकीं मानों |

अब तो रातों में सितारों से हर रोज झगड़ता हूँ मैं ||

     फुर्सत के पल तलाशता रहता हूँ मै |

      तुझे ढूंढते हुए कितनी गलियों से गुज़र जाता हूँ मै |

      हर शख्श मुझे, अब तुझसा क्यूँ लगता है |

      अब तो उजालों में भी आहट से डर जाता हूँ मै ||

क्यूँ आँखों में नींद लिए फिरता हूँ मै |

चलते चलते हाथों से थैले छोड़ दिया करता हूँ मै |

ये तेरे इश्क का असर है या फिर मेरी उम्र का तकाजा |

क्यूँ भीड़ में रहकर भी इतना तनहा हो जाता हूँ मै ||

      दम घुटता है खुली हवा में, फिर भी जिंदा हूँ मै |

      आहटें हैं तेरी फिर भी क्यूँ ढूंढता हूँ मै तुझे |

      लौटा हूँ फिर से तेरे साये में एक बार मै |

शायद तुझमे जिंदा ही नहीं हूँ मै ||

दौड़ती रहती है तू हर वक़्त मेरे दिलों दीमाग पर |

शाया हो जैसे बादलों का घनी छाओं पर |

थक सा जाता हूँ  तो  बैठ  जाता हूँ इन्ही घनी छाओं में |

शुकून की तलाश में तो मारा मारा फिरता हूँ मै || 


          दिनांक 11 फ़रवरी 2021     समय 09.20 सुबह

                                                                       रचना(लेखक)                       सागर(गोरखपुरी)

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