मुक़द्दर
जब मिलना हो कुछ भी तक़दीर में ।तो बहाने मिल ही जातें है।
शोहरत दिखती हो हाथों की लकीरों में।
तो काफिले बन ही जातें है।
लाख भटक जाओ ज़िन्दगी की राहों में।
मुक़द्दर में होगा आसमां तो रास्ते बन ही जयेंगे।।
दिल में हौसला और जूनून रखिये।
ख़्वाब छोटे नही कुछ बड़े सोचिए।
क्या फर्क पड़ता है जो मुश्किलें हैं मंजिलों के दरमियां।
मुक़द्दर में होगा आसमां तो रास्ते बन ही जयेंगे।।
कभी पिछड़ने या हार जाने से मत घबराइए।
उठिये और मंज़िल की तरफ दौड़ जाईये।
अपने हौशले को बिखरने और टूटने मत दीजिये।
मुक़द्दर में होगा आसमां तो रास्ते बन ही जयेंगे।।
यहाँ कोई किसी का नही सभी अजनबी हैं।
क्यूँ घबराते हो लोगों से सभी तेरी तरह ही है।
ये भी कोसते है हर वक़्त अपनी तकदीर को।
मुक़द्दर में होगा आसमां तो रास्ते बन ही जयेंगे।।
मुश्किलें आती हैं अच्छे वक़्त का इंतेजार कीजिये।
ख्वाबों के उड़ान को यूँ ही बेवजह मत रोकिये।
उठिये और चल दीजिये अपने सपनो की ओर।
मुक़द्दर में होगा आसमां तो रास्ते बन ही जयेंगे।।
दिनाँक 02 जुलाई 2021 समय 11.40 सुबह
रचना (लेखक)
सागर (गोरखपुरी)
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