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शनिवार, 24 जुलाई 2021

ये मुमकिन नही | Love Poem | हिंदी लव कविता | पतंगों पर कविता | प्यार पर हिंदी कविता | Poem on This is not possible | लव कविता / सागर गोरखपुरी

                            ये मुमकिन नही

तू मेरी मदहोश पतंग मैं तेरा डोर बन जाऊंगा।
तू बहके जिस तरफ उस ओर मुड़ जाऊंगा।
अपने खयालों की चरखी में ऐसे समेट लूंगा तुझे।
आहिस्ता आहिस्ता मैं तुझमें ही उलझ जाऊंगा।।

लड़े जब भी तू, मांझा तेरा मैं बन जाऊंगा।
कट भी जाये अगर तू, तेरी ओर दौड़ जाऊंगा।
लूट ले तुझे कोई ये मुमकिन ही नही है।
इतनी तेज दौडूंगा की तुझ तक पहुँच जाऊंगा।।
तेरी उँचाइयों से मुझे कोई गिला नही बस डर जाता हूँ।
हाथों से तू कहीं छुट ना जाए मैं यही सोचता हूँ।
डर लगता है बस मुझे उन तेज़ हवाओं से ।
तु हालात से टकराकर कहीं टूट तो नही जाएगी।
लूट ले तुझे कोई ये मुमकिन ही नही है।
इतनी तेज दौडूंगा की तुझ तक पहुँच जाऊंगा।।

बलखाती लहरों की तरह तू हवा में लहराती है।
जरा सी डोर जो खींच लूं, तो नखरें तू दिखती है।
हर पल मेरी नज़रें बस तुझे ही निहारती है।
उँची उड़ान में डोर थोड़ी खीच सी जाती है।
लूट ले तुझे कोई ये मुमकिन ही नही है।
इतनी तेज दौडूंगा की तुझ तक पहुँच जाऊंगा।।
ढलते शाम के साथ धड़कने भी बढ़ जाती है।
तू सितारों में जैसे कहीं छिप सी जाती है।
तेज़ खींच लूं तुझे अपने हाथों से ये सोचता हूँ।
डर जाता हूँ कहीं तु टूट तो नही जायेगी।
लूट ले तुझे कोई ये मुमकिन ही नही है।
इतनी तेज दौडूंगा की तुझ तक पहुँच जाऊंगा।।

                   दिनाँक  23 जुलाई 2021  समय  11.00 रात
 
                                                 रचना (लेखक)
                                               सागर (गोरखपुरी)



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