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गुरुवार, 24 जून 2021

ठहर जाते | पिता पर कविता | पिता पर हिंदी कविता | Poem on Father | पिता पर सुंदर कविता |

                                     ठहर जाते

तेरे बांहों में मैं कभी झूल लिया करता था।
लिपटकर छाती से माथा चुम लिया करता था।
क्यूँ बेवज़ह यूँ ही सब छोड़ चले गये।
ठहर जाते कुछ वक्त तो मुलाक़ात हो जाती।।

कुछ कहना था तुझसे जो बात मेरे दिल में थी।
तेरे बैगैर इकपल कहाँ मेरी सांसें चलती थी।
तू नही है पर महसूस हर वक़्त होता है।
ठहर जाते कुछ वक़्त तो मुलाक़ात हो जाती।।
दिल दुखता है कि उस वक़्त मैं क्यूँ नही था।
तू इतना परेशान है मैं जान क्यूँ नहीं पाया था।
तेरे बिना मैं कितना अकेला सा हो गया हूँ।
ठहर जाते कुछ वक़्त तो मुलाक़ात हो जाती।।

बचपन की याद अब तो बस ख्याल में ही रह गयी।
कुछ बचा नही इन हाथों में बस खाक रह गयी।
तुझ बिन घर अब बड़ा सुना सा लगता है।
ठहर जाते कुछ वक्त तो मुलाक़ात हो जाती।।
तेरे बिना आंगन भी अब तो बेगाना सा लगता है।
खाली कमरा तेरा अब काटने को दौड़ता है।
अब तो सिर्फ यादें तेरी दिन रात आया करती है।
ठहर जाते कुछ वक्त तो मुलाक़ात हो जाती।।

तेरे छड़ी की वो टक टक की आवाज घर में गूंजती है।
हर पल तेरे चलने फिरने की आहट आया करती है।
मां की हालत भी अब तो कुछ ठीक नही लगती।
ठहर जाते कुछ वक्त तो मुलाक़ात हो जाती।।

                  दिनाँक  22 जून 2021    समय  8.00 सुबह
                                                    रचना (लेखक)
                                                  सागर (गोरखपुरी)




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