दलित
शिक्षित है पर क्यूँ तुमने उन्हें सम्मान न दिया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
सब कुछ किया है तुम्हारी खातिर बत से बत्तर काम किया।
मल मूत्र मवेशियों का, तुम्हारा घर भी उन्होंने साफ किया।
बैलगाड़ी के बैल बने वो, तो कभी चरवाहों का काम किया।
देने को तुमने दिया उन्हें क्या, इस पर तुमने क्या कभी गौर किया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
पानी छीना माटी छीनी उन्हें अनाजों से मरहूम किया।
इन पर तुम्हारा हक़्क़ नही फिर भी पूरा अधिकार किया।
शिक्षा तो तुम्हारी नही थी पर इससे भी उन्हें मोहताज किया।
उनकी हर चीजों पर बस तुमने अपना अधिकार किया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
झुके नही न थके कभी वो कदम को अपने रुकने न किया।
सहकर हर ज़ुल्म तुम्हारी एक नया इतिहास लिख दिया।
वर्ण व्यवस्था ऐसी थी कि ईश्वर को भी अपना बता दिया।
छोड़ा क्या उनके हिस्से में इस पर क्या कभी ज़िक्र किया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
बात करते हो समानता की, क्या बराबरी में कभी उन्हें सम्मान दिया।
कॉप्टिशन में जीते ही नही, हार को अपने आरक्षण का नाम दिया।
नाकाम रहे तुम हर जगह इसका कारण भी उन्हीं को बता दिया।
वो डरे नही बस आगे बढ़े और एक अनोखा संबिधान लिख दिया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
हर तख्त पर बिराजमान सिर्फ तुम ही तो थे।
फिर भी उन्हें तुमने रेंगने पर मजबूर कर दिया।
देश असल में जिनका है उन्हें रोने पर मजबूर किया।
तुम हार न जाओ इस डर से तुमने उन्हें रौंद दिया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
दिनांक 07 दिसंबर 2021 समय 14.20
रचना(लेखक)
सागर गोरखपुरी
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