Hello friends my name is Amit Kumar Sagar and I am a government employee, with this platform, I will tell my thoughts, my poems, stories, shayari, jokes, articles, as well as my hobbies.

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शुक्रवार, 27 मई 2022

मई 27, 2022

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                                      सच्ची शायरी
"अच्छा होता की तू मिला ना होता।
मुझे ज़िन्दगी से कोई गिला ना होता।
एक मोड़ पर ऐसी साजिश की तुमने।
नींद में रहता मैं, शायद जगा ना होता।।"

दिनाँक : 23 मई 2022                         समय : 07.30 सुबह 
        
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी


मई 27, 2022

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                                 सच्चे प्यार की शायरी
"ज़िन्दगी थोड़ी कम होती तो बेहतर था।
रास्ते आसान होते तो भी बेहतर था।
इतनी मशक़्क़त भारी ज़िन्दगी है।
कुछ ख्वाब कम होते तो बेहतर था।।"

दिनाँक : 23 मई 2022                          समय : 06.35 सुबह
                                                  रचना(लेखक)
                                                 सागर गोरखपुरी

मई 27, 2022

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                                          नई शायरी
"सब्र, संतोष और इंसानियत रखिये।
दूसरों की कैफ़ियत पर हँसना छोड़िये।
यूँ तो ज़िन्दगी का कोई पल मुठी में कैद नही।
जो मिला ईश्वर से उसे बांटते चलिए।।"

दिनाँक 25 मई 2022                             समय  08.15 सुबह 
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

गुरुवार, 26 मई 2022

मई 26, 2022

लव शायरी | New Love Shayri | सागर गोरखपुरी की शायरी | Romantic shayri in hindi | प्यार पर हिंदी शायरी |

                                            लव शायरी
"अरसा गुज़र गया फिर भी तू है कहीं।
खयालों में ना सही फिजाओं तू है कहीं।
ढूंढता हूँ तुझे यादों के उन गलियों में।
 क्या तुझमे ज़िंदा मैं हूँ कहीं।।"

दिनाँक : 24 मई 2022                                समय : 08.10
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

बुधवार, 25 मई 2022

मई 25, 2022

प्यार की शायरी | प्यार पर शायरी | सागर गोरखपुरी की शायरी | सच्चे प्यार की शायरी | प्यार भी शायरी | Love shayri |

                                                  शायरी

"रूहानियत से अपना रिश्ता रखिये।
जिस्म का फितूर दिमाक से निकल फेंकिए।
कच्चे मोम सा बना है ये शरीर ।
बदन से जुड़ने से बेहतर है आत्मा से जुड़िये।।"

 
दिनाँक : 25 मई 2022                      समय : 07.30 सुबह
                                                रचना(लेखक)
                                               सागर गोरखपुरी



बुधवार, 18 मई 2022

मई 18, 2022

पिता | पिता हिंदी कविता | सागर गोरखपुरी पिता | पिता की छोटी सी कविता | पिता पर चार पंक्तियाँ | poem on father

   पिता
घनी छावँ का साया तुम ही तो थे।
धूप में बादलों की छाया तुम ही तो थे।
तूफ़ान में खड़े चट्टान की तरह।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।

इश्क़ तुम थे इबादत तुम थे।
त्योहारों के रौनक भी तुम थे।
खुले गगन में उड़ने की तुम मोहलत थे।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।
तुम मौज थे, मल्हार थे, ज़िन्दगी का राग थे।
मेरे दोस्त थे, हमराज़ थे, मजधार में पतवार थे।
तुम बरक़त थे, रहमत थे पिता तुम मेरी दुनिंयाँ थे।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।

मेरी लोरी थे, नींदों में कहानी थे लफ्जों की रवानी थे।।
मेरे ख्वाब थे, अरमान थे, मेरी खुशियों का जहान थे।
सब कुछ वही है पर अब तुम साथ नही।
खामोशी है फिर भी कोई आवाज नही।।

तूफ़ान में खड़े चट्टान की तरह।
भगवान मेरे तुम ही तो थे।।


दिनाँक  17 मई 2022                        समय: 11.30 सुबह
                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

मंगलवार, 17 मई 2022

मई 17, 2022

कश्मीर | कश्मीर पर कविता | poem on kashmir Valley | सागर गोरखपुरी की कविताएं | कश्मीर की खूबसूरती पर कविता | कश्मीर की सुंदरता पर कविता | कश्मीर जन्नत हिंदी कविता

                                                        कश्मीर


ऊँची घाटियों में खौप कितना दिखता है।
घनी आवादी में भी बिरान सा लगता है।
यूँ तो कश्मीर किसी जन्नत से कम नही।
लेकिन जाने क्यूँ ये बेबस और लाचार सा दिखता है।।

दुआ, सलाम, फ़िक़्र की तहज़ीब यहां दिखती है।
खुदा से भी खूब सूरत यहाँ नूर बरसती है।
दहशतगर्दों ने इस क़दर खौप फैला रखा है।
कश्मीर किसी कब्रिश्तान से कम नही लगता है।।
यहाँ की जुबान में जैसे केशर घुलती है।
इत्तर, किमाम, गुलमोहर वादी में पिघलती है।
हर चेहरे में सहमा इंसान दिखता है।
कश्मीर बड़ा लाचार सा दिखता है ।।

नमाज़ से सुबह है यहाँ शाम भी ढलती है।
बड़ी मस्कत भरी रात यहाँ कटती है।
ठंड है वादी में, दिलों में आग जलती है।
कश्मीर बडी बेजान सी लगती है।।
रौनक है, नूर है, इबादत और मोहब्बत है।
ईद है, बक़रीद है, रमजान और मोहर्रम है।
सब कुछ तो है घाटी में यहाँ।
फिर भी जाने क्यूँ कश्मीर परेशान सा लगता है।।

दिनाँक 15 मई 2022                         समय 10.17 सुबह
                                               रचना(लेखक)
                                              सागर गोरखपुरी

मंगलवार, 10 मई 2022

मई 10, 2022

शायरी इन हिंदी | प्यार पर शेर | सागर गोरखपुरी की शायरी | love shayari | romantic love shayari

                                            तुझसे मिलना
तुझसे मिलना कोई इत्तेफ़ाक़ नही हैं।
जुड़ना भी तुझसे कोई चमत्कार नही है।
लकीरें मिलती हैं शायद हाथों की हमारे।
हमरा एक हो जाना कोई इत्तेफ़ाक़ नही है।।

दिनाँक 10 मई  2022                        समय 01.25 दोपहर

                                                 रचना(लेखक)
                                                सागर गोरखपुरी

सोमवार, 9 मई 2022

मई 09, 2022

माँ पर शायरी | तू धूप मेरी | माँ शायरी इन हिंदी | mother,s Day shayri | सागर गोरखपुरी | माँ शायरी

                                                  माँ

तू धूप मेरी, तू छांव मेरी, दुआ मेरी तू माँ।
आसमां मेरी तू फ़िज़ां मेरी, सारा जहां मेरी तू माँ।
नींद मेरी, तू ख्वाब मेरी, है सुबह मेरी तू माँ।
तू इत्तर है, मेरी फिक्र, है जननी मेरी तू माँ।।

दिनाँक 09 मई 2022                            समय 07.11 सुबह
                                               रचना (लेखक)
                                              सागर गोरखपुरी

                      



शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

दिसंबर 10, 2021

दलित हिंदी कविता | अछूत पर हिंदी कविता | poem on The Untouchables | पिछड़ी जाति पर कविता | दलितों पर कविता | दलितों पर अत्याचार पर कविता | सागर गोरखपुरी

                                      दलित

शिक्षित है पर क्यूँ  तुमने उन्हें सम्मान न दिया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।

सब कुछ किया है तुम्हारी खातिर बत से बत्तर काम किया।
मल मूत्र मवेशियों का, तुम्हारा घर भी उन्होंने साफ किया।
बैलगाड़ी के बैल बने वो, तो कभी चरवाहों का काम किया।
देने को तुमने दिया उन्हें क्या, इस पर तुमने क्या कभी गौर किया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
पानी छीना माटी छीनी उन्हें अनाजों से मरहूम किया।
इन पर तुम्हारा हक़्क़ नही फिर भी पूरा अधिकार किया।
शिक्षा तो तुम्हारी नही थी पर इससे भी उन्हें मोहताज किया।
उनकी हर चीजों पर बस तुमने अपना अधिकार किया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।

झुके नही न थके कभी वो कदम को अपने रुकने न किया।
सहकर हर ज़ुल्म तुम्हारी एक नया इतिहास लिख दिया।
वर्ण व्यवस्था ऐसी थी कि ईश्वर को भी अपना बता दिया।
छोड़ा क्या उनके हिस्से में इस पर क्या कभी ज़िक्र किया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।
बात करते हो समानता की, क्या बराबरी में कभी उन्हें सम्मान दिया।
कॉप्टिशन में जीते ही नही, हार को अपने आरक्षण का नाम दिया।
नाकाम रहे तुम हर जगह इसका कारण भी उन्हीं को बता दिया।
वो डरे नही बस आगे बढ़े और एक अनोखा संबिधान लिख  दिया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।

हर तख्त पर बिराजमान सिर्फ तुम ही तो थे।
फिर भी उन्हें तुमने रेंगने पर मजबूर कर दिया।
देश असल में जिनका है उन्हें रोने पर मजबूर किया।
तुम हार न जाओ इस डर से तुमने उन्हें रौंद दिया।
दलित हैं तो तुमने उन्हें अछूत जैसा नाम दिया।।

दिनांक 07 दिसंबर 2021                                समय  14.20
                                                रचना(लेखक)
                                               सागर गोरखपुरी


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