Hello friends my name is Amit Kumar Sagar and I am a government employee, with this platform, I will tell my thoughts, my poems, stories, shayari, jokes, articles, as well as my hobbies.

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सोमवार, 29 मार्च 2021

मार्च 29, 2021

कोरोना और मैं कविता | Poem no Corona and I | कोरोना पर कविता इन हिंदी | कविता कोरोना/ सागर गोरखपुरी

                             कोरोना और मैं

            इक ज़हर हवा में इस क़दर फैल गया।
            हर शख्स को ये बेवजह यूँ ही रौंद गया।
            देखती हूँ पलट के पीछे तो नज़रा ही बदल गया।
            सजाए थे जो ख्वाब बिखर के खाक हो गया।।

 देखा था मैनें भी उस वक़्त,  घर से बाहर निलकर।
 क़तारें दूर तलक लगी हुई थी परचून की दुकान पर ।
 सब्जियों के ठेले गली मोहल्ले में घुमां करते थे।
 सड़ी गली सब्जियों के दाम भी आसमान छुआ करतें थे।।
           कुछ वक्त गुज़रा, हालात और भी नासाज हो गयी।
           प्रवासी मजदूरों की तकलीफें बेहिसाब हो गयी।
           भूखे और लम्बे सफर ने उन्हें झकझोरकर रख दिया।
            घर पहुंचे तो घर वालों ने उन्हें नकार दिया।।

 एक अरसा हो चला है आर्थिक मंदी,कम ना हुई।
 देश की हालत नासाज है परेशानी कम ना हुई।
 इक छोटी सी गलती से पूरी दुनियाँ तबाह हो गई।
 देखकर ये मंज़र मैं सहम सी गई।।
         पड़ोस वाली दादी को मैं कोरोना से बचा ना सकी।
         कोशिश करके भी उन्हें अस्पताल लेजा ना सकी।
         ख़ौप इस क़दर कोरोना का हमारी जहन में था।
         चाहकर भी उन्हें मैं बचा ना सकी।।

हर सुबह मेरी बेचैनियों सी गुज़री, रात घबराहट में कट गयी।
सुबह से शाम,शाम से रात ज़िन्दगी बस उलझनों में बीत गयी।
काफी लंबा अरसा हो बीत चुका है लाचारी अभी कम ना हुई।
लाख उपाय करके भी मैं कोविड-19 से बच ना पाई।।

                     दिनाँक 20 मार्च 2021  समय   11.00 रात
                                              रचना(लेखक)
                                            सागर(गोरखपुरी)

शुक्रवार, 19 मार्च 2021

मार्च 19, 2021

मयखाना हिंदी कविता | शराब पर कविता | मयखाना/सागर गोरखपुरी | Poem on Brewery | मयखाना शायरी रेख़्ता |

                                 कविता

                       मयखाना Brewery

चल बैठ के मयखाने में आज जाम छलकातें हैं।
पुरानी यादों को भी साथ बिठातें हैं।
दो पैग से आज काम न चलेगा पता है मुझे।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को बुझातें हैं ।
हर तरफ रोशनी की जगमग हैं दिल मेरा बेचैन सा है।
ढूंढता है एक छोटा सा कोना शायद वहीं आराम सा है।
चल दूर चले इस जद्दोजहद से, मयखाने में जाम छलकातें हैं।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को बुझातें हैं।।
कहतें है मिट जाती है थकान मयखानें में जाकर।
गम ठहर सा जाता है पैमानों को देखकर।
चल मिलकर एक लार्ज पैग बनातें हैं।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को  बुझातें हैं।।
सोचता हूँ आज उसे ख्वाबों से निकाल सामने बिठा लूँ।
उसके लिए भी आज मैं एक पैग बना दुँ।
दिल मे जो है बात उसे आज सच बतातें हैं।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को  बुझाते हैं।।
वक़्त के साथ कब मधुशाला, मयखाने में बदल गया।
छोटे छोटे पैगों से कब शराब लार्ज को गया ।
चल छोड़ा इन बातों को एक पटियाला पैग मंगाते हैं।
भर के गिलास पैमानों से, सुलगते सीने को  बुझातें हैं।
चल बैठ के मयखाने में आज जाम छलकातें हैं।।

                 दिनाँक 15 मार्च 2021  12.45 दोपहर
 
                                                 रचना(लेखक)
                                               सागर(गोरखपुरी)


मंगलवार, 9 मार्च 2021

मार्च 09, 2021

एक छोटी सी ना हिंदी कविता | महिला पर कविता | महिला उत्पीड़न पर कविताएं | तेज़ाब अटैक पर कविता | hindi Poem on Acid attack | नारी अत्याचार पर कविता/ सागर गोरखपुरी | Poem on female oppression |

                                       कविता

                                एक छोटी सी ना 

छपाक सी बस  एक आवाज थी आयी।
जीवन बादरंगी मेरी, वो बना गया।
एक छोटी सी बस ना ही तो कही थी मैंने।
तेज़ाब से कमबख्त मुझे वो जला गया।।
           सोच के जिसे रोएं थरथरा जाते हैं मेरे।
           वही दर्द मुझे वो सौंप गया।
           खुशियाँ थी मैं बाबा के आंगन की।
           सारी खुशियाँ, पल में वो चुरा गया।
           एक छोटी सी बस ना ही तो कही थी मैंने।
आईने से नफरत सी हो गयी हैं मुझे।
ऐसा ज़ख्म मुझे वो दे गया।
खुद को देख मैं खुद सहम जाती हूँ।
इतना बदसूरत मुझे वो कर गया।
इक छोटी सी बस ना ही तो कही थी मैंने।।
            खुद की नज़रों से दुनियाँ हसीन लगती हैं मुझे।
            मेरी दुनियाँ ही वो मुझसे  छीन गया।
            कहने को तो समाज का इक हिस्सा हूँ मैं।
            सामाजिक ज़िल्लत मुझ पर वो थोप गया।
            एक छोटी सी बस ना ही तो कही थी मैंने।
दर्द, चुभन , आँशु, और  घुटन ।
इतने सौगातें मुझे वो सौंप गया।
उड़ते थे कभी हम, खुले निल गगन में।
आसमान भी हमसे वो छीन गया।
एक छोटी सी बस ना ही तो कही थी मैंने।
तेजब से कमबख़्त मुझे वो जला गया।।

            दिनाँक  08 मार्च 2021   समय 9.30 रात
                                              रचना(लेखक)
                                            सागर(गोरखपुरी)








                 

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

फ़रवरी 26, 2021

बेचैनियां हिंदी कविता | कविता तड़प | दिल का एहसास कविता | प्यार वाली कविता | बेचैनियां पर कविता | Love poem |

                                  कविता 

                   बेचैनियां Restlessness

गलती कर दी जो अपनी बेचैनियां तुझे सुना दी।
तूने पूछि जो बात बस वही मैने सच बता दी ।
मेरे दिल मे जो सुलगता हैं घुटन का धुंआ।
तूने रखकर दिल पर हाथ उसे शोला बना दिया।।

क्या चलता हैं मेरे दिलों दिमाग में ये मैं ही समझता हूँ।
कितनी उलझने समेटे फिरता हूँ ये मैं ही जानता हूँ।
तेरे तीखे सवालों का जबाब कहीं मिलता नहीं मुझे।
बुझते आग को छूकर फिर तूने अंगारा बना दिया।।
उथल पुथल सी हो जाती है ज़िन्दगी तेरे बैगैर इस क़दर।
अजनबी हो जातें हैं अपने ही घर मे, हम जायें किधर।
एक क़ैद पंछी सी हालत हो गयी है अब मेरी।
तेरे प्यार ने मुझे अपने ही घर मे बेगाना बना दिया।।

तेरे बिना ज़िन्दगी का कोई सबब नही है।
ज़िन्दा हूँ पर मुझमें कोई खनक नही है।
बेजान सी हो गयी है अब दुनिया मेरी।
वक़्त ने मुझे कितना अकेला बना दिया।।
सन्नाटो में भी अब तो आवाज सुनाई देती है।
बे खयाली में भी तू खयाल बन कर रहती हैं।
किनारों पर आके जैसे लहरें लौट जाती हैं।
ऐसा ही बिना लहरों के मुझे किनारा बना दिया।।

गलती कर दी जो अपनी बेचैनियां तुझे सुना दी।
तूने पूछी जो बात बस वही मैंने सच बता दी।।

                दिनाँक 24 फरवरी 2021  समय 11.00 रात
                                              रचना(लेखक)
                                            सागर(गोरखपुरी)


मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

फ़रवरी 16, 2021

कविता पिता जैसा भगवान नही देखा | कविता पिता पर / सागर गोरखपुरी | पिता का दर्द हिंदी कविता | poem On God did not see like father | poem on father |

                           पिता पर कविता

                 पिता जैसा भगवान नही देखा

एक शख्श है जिसे मैंने कभी सिहरते नही देखा।
कभी आंखों में आँशु लिए उसे रोते नही देखा।
सर्दी, गर्मी, बारिश में भी खड़ा रहा चट्टान सा।
पिता जैसा कहीं मैंने भगवान नही देखा।।
हर एक चीज की फिक्र करता है वो मेरी।
कभी मैने उसे खुद के लिए जीते नही देखा।
माँ के साथ थपकियां वो भी लगाता हैं मुझे।
लेकिन मुझसे पहले उसे सोते, मैने नही देखा।।
कितनी जिम्मेदारीयाँ उठाए फिरता है वो।
कभी उसे मैने यूँ ही थकते हुए नही देखा।
हमारे हर एक ख्वाहिशों का बाजार हैं वो।
कभी खुद के लिए कुछ लेते,मैंने नही देखा।।
परेशान रहता हैं हर वक़्त सिर्फ हमारे सपनो के लिए।
खुद के ख्वाबों के लिए हमने उसे जीते नही देखा।
मेरी माँ से कुछ खास बनती नही हैं उनकी मगर ।
 उसके बैगैर उसे मैंने हँसता नही देखा ।।
सारे रिश्तों के मायने बदल गये वक़्त के साथ।
लेकिन इसे मैंने कभी भी बदलते नही देखा।
हशर्तों के पुल बांधकर खड़ा रहा हर पल साथ मेरे।
अपनी ज़िम्मेदरियों से उसे मैंने कभी भागतें नही देखा।
पिता जैसा कहीं मैंने भगवान नही देखा।।

                दिनाँक  15 फरवरी 2021  समय 11.30 रात
                                             रचना(लेखक)
                                           सागर (गोरखपुरी)

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

फ़रवरी 11, 2021

कविता सुकून की तलाश | POEM : SUKUN MILTA NAHI | सुकून की तलाश /सागर गोरखपुरी | Poem on peace

                                        कविता

                                 सुकून की तलाश

 

कैसे कहूँ की सुकून की तलाश में फिरता हूँ मैं |

कभी एकांत, कभी समसानआवारा बनकर घूमता हूँ मै |

खाव्बों में भी अब तो सुकून मिलता नहीं मुझे यकीं मानों |

अब तो रातों में सितारों से हर रोज झगड़ता हूँ मैं ||

     फुर्सत के पल तलाशता रहता हूँ मै |

      तुझे ढूंढते हुए कितनी गलियों से गुज़र जाता हूँ मै |

      हर शख्श मुझे, अब तुझसा क्यूँ लगता है |

      अब तो उजालों में भी आहट से डर जाता हूँ मै ||

क्यूँ आँखों में नींद लिए फिरता हूँ मै |

चलते चलते हाथों से थैले छोड़ दिया करता हूँ मै |

ये तेरे इश्क का असर है या फिर मेरी उम्र का तकाजा |

क्यूँ भीड़ में रहकर भी इतना तनहा हो जाता हूँ मै ||

      दम घुटता है खुली हवा में, फिर भी जिंदा हूँ मै |

      आहटें हैं तेरी फिर भी क्यूँ ढूंढता हूँ मै तुझे |

      लौटा हूँ फिर से तेरे साये में एक बार मै |

शायद तुझमे जिंदा ही नहीं हूँ मै ||

दौड़ती रहती है तू हर वक़्त मेरे दिलों दीमाग पर |

शाया हो जैसे बादलों का घनी छाओं पर |

थक सा जाता हूँ  तो  बैठ  जाता हूँ इन्ही घनी छाओं में |

शुकून की तलाश में तो मारा मारा फिरता हूँ मै || 


          दिनांक 11 फ़रवरी 2021     समय 09.20 सुबह

                                                                       रचना(लेखक)                       सागर(गोरखपुरी)

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